BHOPAL. शादी में महंगे, खूबसूरत लहंगे और डेस्टिनेशन मैरिज अब हर दुल्हन की चाहत है।लेकिन, इसका खर्चा परिवारों पर भारी पड़ने लगा है। ऐसी दिखावटी शादियों पर अब लगाम लगाने की शुरुआत हो चुकी है। दरअसल सिख समाज के सबसे बड़े संगठन अकाल तख्त गुरुद्वारा साहिब ने सिख समुदाय को निर्देशित किया है कि वह आनंद कारज यानी शादियों को परंपरागत और साधारण तरीके से ही गुरुद्वारों में नियमों के अनुसार संपन्न कराएं। बता दें कि अकाल तख्त सिख समुदाय की धार्मिक और सामाजिक रीति नीतियों पर मार्गदर्शन देनी वाली सबसे बड़ी संस्था है। इसके निर्देश पूरी दूनिया की सिख कम्यूनिटी स्वीकार करती है।
लहंगा नहीं पहन सकेगी दुल्हन
दरअसल सिख धर्म में आनंद कारज यानी शादी को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है। इसमें लहंगा पहनने पर रोक लगा दी गई है। आनंद कारज के दौरान दुल्हन पर चुन्नी या फूलों की छाया करने के प्रचलन पर भी रोक लगा दी गई है। शादी कार्ड के बाहर और अंदर दोनों जगह दुल्हन और दूल्हे के नाम के आगे कौर और सिंह का लिखना जरूरी कर दिया गया है। इनका पालन सही से नहीं किया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
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जानिए क्यों लिया गया फैसला ?
गुरुद्वारा साहिब में आनंद कारज के दौरान सिख दुल्हन के लिए ड्रेस कोड तय कर दिया गया है। इस आदेश के मुताबिक लावां-फेरे के दौरान दुल्हन सलवार-कमीज, सिर पर चुन्नी पहने और भारी लहंगे ना पहने।लावां के समय दुल्हन भारी लहंगे पहन लेती हैं, जिस वजह से उन्हें चलने और उठने-बैठने में परेशानी होती है। गुरु महाराज के सामने नतमस्तक होने में भी उन्हें मुश्किल आती है। लावां के समय गुरुद्वारों में दुल्हन पर फूलों या चुन्नी की छाया करने पर रोक लगा दी गई है।
सिख शादियों का तरीका
आनंद कारज के लिए सभी दिन को शुभ माना गया है। यानी शादी के लिए लग्न, मुहूर्त आदि देखने की कोई जरूरत नहीं है। हिंदू धर्म में शादी में 7 फेरे लिए जाते हैं, जबकि सिख में 4 फेरे लेने की रिवाज है। सिख धर्म में शादी के समय दूल्हे को गुरु ग्रंथ साहिब के सामने बैठाया जाता है और फिर दुल्हन उसके बायीं ओर आकर बैठती हैं। शादी किसी भी अमृतधारी सिख द्वारा कराई जाती है। आखिर में पति और पत्नी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने सिर झुकाते हैं।
सिख शादियों में किस तरह की रस्में होती हैं?
- आनंद कराज
- मेहंदी और कलीरे
- सेहराबंदी और बारात
- मिलनी
- अरदास
- लावन
- सिख्या (सीख)