आतंकियों ने कहा था- मोदी को बता देना, ​महिलाओं का सिंदूर उजाड़ने वालों को ऑपरेशन सिंदूर से ही जवाब

ऑपरेशन सिंदूर साक्षी है उस दर्द का, जिसने हर भारतीय को अपने घर से बाहर आकर एकजुट होने की जरूरत महसूस कराई। 'ऑपरेशन सिंदूर' उस खून का बदला है, जिसे आतंकियों ने बहाया।

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Ravi Kant Dixit
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22 अप्रैल का वह दिन...जम्मू कश्मीर के पहलगाम की वादियां...निर्दोष पर्यटकों पर गोली दागते आतंकी और चारों तरफ चीखें। देश में गुस्सा। कौन भूल सकता है वो दर्दनाक मंजर। 22 अप्रैल स्याह अक्षरों में दर्ज हो गया। हर भारतीय के दिल में गहरा घाव। आतंकियों ने धर्म के नाम पर मौत का जो जहर फैलाया, उसे देखकर इंसानियत का सिर झुक गया।

इस कायराना हमले में मारे गए 26 निर्दोष लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे, जिनका केवल यह अपराध था कि वे पहलगाम की वादियों में खुशियां तलाशने गए थे। आतंकियों ने उन्हें अपनी बर्बरता का शिकार बनाया। महिलाओं से कहा, जाओ जाकर मोदी को बता देना।

और वह तस्वीर... जब एक महिला अपने पति के शव के पास बैठी बिलख रही थी। अभी उसके हाथों की मेंहदी का रंग भी नहीं गया था। वह तस्वीर शायद हमारी आंखों से कभी नहीं मिटेगी। उस महिला के आंसू, जो अपने सुहाग को खो चुकी थी, वह आवाज... जो उसके गले में अटककर रह गई थी, वह दर्द और चीखें, यह सब कैसे भुलाया जा सकता है। उसने रोते हुए कहा था, आतंकियों ने मेरे पति से धर्म पूछा और मार डाला। जब मैंने कहा कि मुझे भी मार दो तो उन्होंने कहा, तुमको नहीं मारेंगे...जाओ जाकर मोदी को बता दो।

उफ्फ! वो मंजर याद करके भी रूह कांप जाती है। वो शब्द, वो दर्द, वो तकलीफ...वह उन 26 जिंदगियों का शोक था, जो आतंक के पंजे में फंस गईं। इस कायराना हमले के बाद हर भारतीय के दिल में गहरी पीड़ा थी। मन में लावा उमड़ रहा था, कभी नहीं भुलाए जाने वाला गुस्सा, जिसे शांत करना किसी भी कीमत पर जरूरी था।

और फिर, 15 दिन बाद 'ऑपरेशन सिंदूर' लॉन्च हुआ। यह नाम एक मिशन के साथ आतंकियों के लिए काल बनकर आया। यह नाम उस बहनों के, बेटियों के उस सिंदूर का बदला है, जिसे आतंक ने मिटाया। उस सिंदूर का प्रतिशोध, जिसे हर महिला अपने जीवन के अच्छे दिनों माथे पर सजाती है। ऑपरेशन सिंदूर उसी सिंदूर का बदला है। 

यह ऑपरेशन उन सिसकियों का जवाब है, जो 15 दिन तक किसी बंद कमरे में गूंजती रहीं। यह ऑपरेशन उन आंसुओं का जवाब है, जो एक पत्नी के गालों पर सूख गए थे, जो अपने पति के शव के पास बैठी थी, क्योंकि वह नहीं जानती थी कि वह अपने आंसुओं को कैसे रोक पाएगी। उसके आंसू जम गए थे।

ऑपरेशन सिंदूर साक्षी है उस दर्द का, जिसने हर भारतीय को अपने घर से बाहर आकर एकजुट होने की जरूरत महसूस कराई। 'ऑपरेशन सिंदूर' उस खून का बदला है, जिसे आतंकियों ने बहाया। यह उन परिवारों के लिए है, जिन्होंने अपने बेटे, बहन, भाई और पति खो दिया। यह उन आंखों के लिए है, जो अब तक आंसुओं से भरी हुई हैं। कुल जमा कहें तो ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ भारत का आतंकियों पर हमला नहीं, यह एक वादा है, एक संकल्प है कि भारत कभी नहीं भूलता।

आज, जब हम 'ऑपरेशन सिंदूर' का नाम ले रहे हैं तो हमारे दिलों में संतोष का भाव है, क्योंकि यह नाम श्रद्धांजलि है उन 26 जिंदगियों को, जो आतंक के हाथों अपनी जान गंवा बैठे।

15 दिन बाद बदला लिया

भारत ने आतंकी हमले के 15 दिन बाद बदला लिया है। यह संयोग ही है कि 4 साल पहले 13वें दिन ही भारत ने पुलवामा का बदला लिया था। सारांश यही है कि चाहे बालाकोट हो या उरी, चाहे पहलगाम हो या पुलवामा, जब जब आतंक सिर उठाएगा, भारत ऐसे ही जवाब देगा।

शौर्यं तेजः संयमश्च, यत्र भारतसैनिका:।
विजयं तेषु नित्यं स्यात्, जयतु भारतमाता॥

जहां भारत की सेना है, वहां शौर्य, तेज और अनुशासन है। उन्हें सदैव विजय मिले, 
भारत माता की जय!

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