बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती आज, PM जारी करेंगे 150 रुपए का सिक्का

भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती यानी जनजातीय गौरव दिवस पर पीएम मोदी 150 रुपए का चांदी का सिक्का जारी करेंगे। पीएम बिहार के जमुई में सिक्का जारी करेंगे। जानें वीर योद्धा और समाज-सुधारक लोकनायक बिरसा मुंडा कौन हैं...

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Vikram Jain
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Lord Birsa Munda 150th birth anniversary
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भारत के महान योद्धा और समाज सुधारक भगवान बिरसा मुंडा की आज 15 नंवबर को जयंती मनाई जा रही है। आज 'धरती आबा' भगवान बिरसा मुंडा की जयंती यानी जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 150 रुपए का चांदी का सिक्का जारी करेंगे। पीएम मोदी बिहार के जमुई में 150 रुपए का सिक्का जारी करेंगे। भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 150 रुपए का सिक्का जारी करेंगे। साथ ही पीएम मोदी जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान भी लॉन्च करेंगे। इसको लेकर केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने जानकारी दी है।

क्या है सिक्के की खासियत?

इसको लेकर वित्त मंत्रालय ने अधिसूचना जारी है, जिसमें बताया गया है कि भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती 15 नवंबर, 2024 को 150 रुपए का सिक्का जारी किया जाएगा। यह सिक्का 99.9 प्रतिशत शुद्ध चांदी का होगा, इसका डायमीटर 44 मिमी और वजन 40 ग्राम होगा। इस सिक्के के किनारे पर 200 दांत होंगे। सिक्के के सामने के हिस्सा पर अशोक स्तंभ का सिंह होगा, दूसरे हिस्से पर भगवान बिरसा मुंडा की छवि अंकित होगी। इसे मुंबई टकसाल ने तैयार किया गया है। जिस पर भगवान बिरसा मुंडा जी की 150वीं जयंती लिखा है। देश में अब तक 150 रुपए का सिक्का 14 बार जारी हो चुका है, अब 15वीं भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर 15 नवंबर को जारी होगा। 

स्वतंत्रता आंदोलन में भगवान बिरसा मुंडा का अतुलनीय योगदान

आदिवासी जन चेतना के लोकनायक भगवान बिरसा मुंडा का नाम एक वीर योद्धा और समाज-सुधारक थे। उन्होंने अपना जीवन को जनजातीय समाज की उन्नति और अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया। हर साल 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर भारत में राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है। यह दिन उनकी शहादत और योगदान को याद करने करने के साथ ही जनजातीय समाज की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत, संघर्ष और स्वाभिमान का भी उत्सव है। वे भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और जनजाति लोकनायक थे। जानें भगवान बिरसा मुंडा का जीवन और संघर्ष और योगदान

उलगुलान आंदोलन के नायक बिरसा मुंडा हैं जनजातीय गौरव के प्रतीक

प्रारंभिक जीवन और जन्म

भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातू गांव में हुआ था, सामान्य आदिवासी परिवार के बिरसा मुंडा के जीवन की शुरुआत बहुत कठिनाइयों में हुई, और उन्हें बाल्यावस्था से ही आर्थिक संघर्ष और सामाजिक असमानता का सामना करना पड़ा। वे एक ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े और उनके आस-पास के लोग गरीबी, सामाजिक भेदभाव, और ब्रिटिश शासन के अत्याचारों का शिकार थे।

प्रेरणा और जागरूकता

भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों द्वारा आदिवासी लोगों के साथ किए जा रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। वे उन कुरीतियों और शोषण के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित हुए, जो उनके समाज को दीमक की तरह खोखला कर रहे थे। खासकर ब्रिटिश शासन द्वारा जमींदारी प्रथा को लागू करना और आदिवासियों के लिए भूमि अधिकारों का हनन करना उन्हें बेहद दुखदाई लगता था। इसके अलावा, धर्मांतरण और आदिवासी संस्कृति पर हमले ने उन्हें विद्रोह की ओर प्रेरित किया। उन्होंने जनजातीय समाज की उन्नति और अधिकारों के लिए निरंतर कार्य किया।

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उलगुलान आंदोलन के नायक हैं बिरसा मुंडा

भगवान बिरसा मुंडा ने "उलगुलान" (महान विद्रोह) आंदोलन का नेतृत्व किया, जो आदिवासियों द्वारा ब्रिटिश शासन और उनके समर्थकों के खिलाफ एक शक्तिशाली जनक्रांति थी। उलगुलान का उद्देश्य ब्रिटिश शासन द्वारा लागू की गई जनजातियों के शोषणकारी नीतियों, जैसे कि जमींदारी प्रथा, धरती से आदिवासी समाज को बाहर करने की नीतियां, और धर्मांतरण के खिलाफ था।

"धरती आबा" धरा पितृ के रूप में सम्मान

बिरसा ने आदिवासी लोगों को संगठित किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा था कि "हमारी धरती और हमारी संस्कृति को बचाने के लिए हमें संघर्ष करना होगा"। उनका आंदोलन झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में फैल गया और आदिवासी समुदायों के बीच एक मजबूत जागरूकता का संचार हुआ। उन्हें "धरती आबा" (पृथ्वी का पिता) के नाम से पूजा जाता था और उनके आंदोलन ने ब्रिटिश प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा कर दी थी। भगवान बिरसा मुंडा के नेतृत्व ने जनक्रांति की लहर पैदा कर दी।

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समाज सुधारक के रूप में योगदान

भगवान बिरसा मुंडा का योगदान केवल स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था, बल्कि वे एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने आदिवासी समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ भी कड़ा विरोध किया। विशेष रूप से, उन्होंने नशाखोरी और जाति भेदभाव जैसी बुराइयों को खत्म करने के लिए आवाज उठाई। उन्होंने आदिवासी समाज को समझाया कि वे अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों में सुधार करें और समाज में व्याप्त अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ संघर्ष करें।

उन्होंने "बिरसाइत आंदोलन" भी चलाया, जिसमें उन्होंने अपने अनुयायियों को आचार विचार की शुचिता, सत्य, और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। बिरसा ने आदिवासी समाज को यह संदेश दिया कि यदि वे एकजुट हो जाएं, तो वे अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकते हैं और अंग्रेजों के खिलाफ भी जीत सकते हैं।

धर्म, संस्कृति और शिक्षा का महत्व

भगवान बिरसा मुंडा ने धर्म और संस्कृति को आदिवासी समाज के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने आदिवासी समाज को अपनी संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा, उन्होंने शिक्षा के महत्व को भी समझाया और आदिवासी समुदाय को शिक्षा की ओर प्रेरित किया। उनके विचारों में, शिक्षा आदिवासी समाज की स्वतंत्रता और विकास का मुख्य साधन थी।

 अल्पायु में वीरगति को प्राप्त हुए लोकनायक

बिरसा मुंडा का निधन 9 जून 1900 को रांची में हुआ, जब वे केवल 25 वर्ष के थे। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका आंदोलन और उनके विचार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आदिवासी संघर्ष का अहम हिस्सा बने रहे। आज, बिरसा मुंडा को आदिवासी समुदाय के एक महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनकी जयंती, 15 नवंबर, को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाई जाती है, और इस दिन उनके योगदान को सम्मानित किया जाता है। उनकी विरासत और उनका संघर्ष आज भी झारखंड और भारत के अन्य आदिवासी क्षेत्रों में प्रेरणा का स्रोत हैं।

जनजातीय गौरव दिवस की स्थापना

10 नवंबर 2021 को केंद्र की मोदी सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषणा की थी। इसका उद्देश्य भगवान बिरसा मुंडा और अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का सम्मान करना है। इस दिन देशभर में जनजातीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर, उनकी परंपराओं और उनके गौरवशाली इतिहास को समझने और सम्मानित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह स्मृति दिवस पूरे देश में गौरव पूर्वक मनाया जाता है।

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