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अटल बिहारी वाजपेयी का पहला चुनाव। Photograph: (BHOPAL)
भारत की राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का नाम एक सुनहरे अध्याय की तरह याद किया जाता है। उनका लोकसभा में प्रवेश मात्र एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की दिशा और दशा को बदलने वाली महत्वपूर्ण घटना थी। इस यात्रा की शुरुआत 1957 में हुई, जब अटल जी ने जनसंघ के प्रतिनिधि के तौर पर लोकसभा में अपनी जगह बनाई। यह समय था जब भारतीय राजनीति में पंडित नेहरू का वर्चस्व था और जनसंघ अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहा था। 1957 में जनसंघ ने अटल बिहारी वाजपेयी को एक नहीं बल्कि तीन क्षेत्रों से मैदान में उतारा था।
अटल बिहारी वाजपेयी की लोकसभा में एंट्री
अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक जीवन एक ऐसी कहानी है, जो संघर्ष, समर्पण और असाधारण वक्तृत्व कला से भरी हुई है। 1957 में जनसंघ के लिए यह एक निर्णायक पल था। इस साल हुए दूसरे आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को लखनऊ, बलरामपुर (अब श्रावस्ती) और मथुरा सीटों से उम्मीदवार बनाया गया। यह पार्टी की दोहरी रणनीति थी: एक तो उनकी लोकसभा में उपस्थिति सुनिश्चित करना और दूसरा, अटल जी के प्रभावशाली भाषणों के जरिए पार्टी को व्यापक प्रचार देना।
लोकसभा में थी मुखर आवाज की जरूरत
अटल जी को लोकसभा में देखने की दीन दयाल उपाध्याय और संघ परिवार की चाहत अकारण ही नहीं थी, 1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु के बाद पार्टी को लोकसभा में एक ऐसी मुखर आवाज की जरूरत थी जिसे गौर से सुना जाए, इस समय बहुत कम उम्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अदभुत और प्रभावशाली भाषण शैली का जादू सुनने वालों के सिर चढ़ने लगा था, संघ-जनसंघ की पारखी नजरें अपने इस नायाब हीरे को तराशने में जुटी हुई थीं।
अटल बिहारी की अद्भुत वक्तृत्व कला
अटल बिहारी वाजपेयी की वक्तृत्व कला इतनी प्रभावशाली थी कि उन्होंने पंडित नेहरू जैसे महान नेता को भी मुग्ध कर दिया। जब सोवियत संघ के प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव भारत दौरे पर आए थे, तब पंडित नेहरू ने उन्हें अटल जी का परिचय देते हुए कहा था, “यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।” उनकी भाषण कला और तर्कपूर्ण संवाद ने उन्हें जनता और संसद में एक प्रमुख नेता बना दिया था।
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पहला उपचुनाव: 1955 में लखनऊ सीट पर हार
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1955 में लखनऊ उपचुनाव में जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस की शिवराजवती नेहरू ने जीत दर्ज की थी और अटल जी को 33 हजार 986 वोट मिले थे। हालांकि, इस हार ने उन्हें निराश नहीं किया, बल्कि यह उनके लिए एक सबक और प्रेरणा बन गई।
तीन सीटों पर उम्मीदवार बने अटलजी
1957 में जब आम चुनाव हुआ, तब जनसंघ ने अटल बिहारी वाजपेयी को लखनऊ, बलरामपुर और मथुरा सीटों से उम्मीदवार बनाया। यह रणनीति इस उद्देश्य से बनाई गई थी कि अटल जी किसी भी हाल में लोकसभा में पहुंचें और उनकी भाषण कला से पार्टी को व्यापक समर्थन मिले। हालांकि, लखनऊ और मथुरा सीटों पर अटल जी को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन बलरामपुर से उन्होंने जीत हासिल की।
दो पर मिली हार, एक सीट पर जीत
1957 चुनाव में लखनऊ सीट से अटल बिहारी को 57 हजार 34 वोट मिले थे। इस बार वे तीसरे की जगह दूसरे स्थान पर रहे, इस सीट से कांग्रेस के पुलिन बिहारी मुखर्जी को जीत मिली थी, मुखर्जी को 69 हजार 519 मिले थे। अटल जी को मथुरा में असफलता हाथ लगी थी। अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों के लिए उमड़ता जनसैलाब के उलट बैलेट बॉक्स खुलने पर जनसंघ में सन्नाटा पसर गया था। मथुरा में मतदाताओं ने उन्हें चौथे स्थान पर पहुंचा दिया था। आजादी के पहले की पहली निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 95 हजार 202 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी। 62 हजार 209 वोट के साथ कांग्रेस के दिगंबर सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे। निर्दलीय पूरन को 29,177 और अटल बिहारी वाजपेयी को 23 हजार 620 वोट मिले थे। लेकिन बड़ी बात यह अटल जी बलरामपुर जीत गए थे। जनसंघ और दीनदयाल की अटल बिहारी को हर हाल में लोकसभा में भेजने की इच्छा बलरामपुर की जनता ने पूरी कर दी।
अटल जी की राजनीति में पहली बड़ी सफलता
बलरामपुर की सीट पर अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस के हैदर हुसैन को हराकर 1,18,380 वोट प्राप्त किए, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी को 1,08,568 वोट मिले। यह जीत जनसंघ के लिए एक बड़ी सफलता साबित हुई, क्योंकि इससे पार्टी को न केवल एक प्रभावशाली सांसद मिला, बल्कि पार्टी के विस्तार और लोकप्रियता में भी इज़ाफा हुआ।
अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफर
अटल जी की लोकसभा में पहली बार उपस्थिति और उनका प्रभावी भाषण उस समय के भारतीय राजनीति में मील का पत्थर साबित हुआ। पंडित नेहरू ने अटल जी को देखा और माना कि वह भविष्य में देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। अगले कुछ दशकों में अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के एक अत्यंत प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे। उनकी लोकसभा में प्रवेश की यह घटना सिर्फ उनकी व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए भी ऐतिहासिक रही। अटल जी ने अपने समय में न केवल भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि उन्होंने भारतीय लोकतंत्र की प्रतिष्ठा को भी मजबूती प्रदान की।
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