प्रेमानंद महाराज को जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बताया बालक समान, पहले कहा था मूर्ख

जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज पर उठे विवाद पर स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने प्रेमानंद को "बालक समान" कहा और संस्कृत के अध्ययन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने किसी भी अपमानजनक टिप्पणी से इनकार किया।

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Sandeep Kumar
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देश दुनिया न्यूजः चित्रकूट के तुलसी पीठाधीश्वर और पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने हाल ही में प्रेमानंद महाराज पर दिए गए बयान का स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने कहा कि प्रेमानंद महाराज उनके लिए "बालक समान" हैं और उनका किसी का अपमान करने का इरादा नहीं था। यह विवाद तब उत्पन्न हुआ जब रामभद्राचार्य ने एक वीडियो में प्रेमानंद महाराज को संस्कृत बोलने और श्लोकों का अर्थ समझाने की चुनौती दी थी।

प्रेमानंद से सहानुभूति : जगद्गुरु

जगद्गुरु ने प्रेमानंद से जुड़े विवाद पर यह भी स्पष्ट किया कि उनका प्रेमानंद महाराज के प्रति कोई अपमानजनक भावना नहीं है। उन्होंने कहा कि जब भी प्रेमानंद महाराज उनसे मिलेंगे, वह उन्हें आशीर्वाद देंगे और उनके स्वास्थ्य के लिए भगवान श्रीराम से प्रार्थना करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने प्रेमानंद की लंबी उम्र के लिए भी शुभकामनाएं दीं।

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क्या थी रामभद्राचार्य की टिप्पणी

जगद्गुरु ने पहले कहा था कि प्रेमानंद महाराज की लोकप्रियता क्षणभंगुर है। उन्होंने यह टिप्पणी प्रेमानंद के चमत्कारी दावों पर की थी, जिसमें वे दावा कर रहे थे कि उनके पास कुछ विशेष शक्तियां हैं। रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद को चुनौती दी थी कि वे एक अक्षर संस्कृत का बोलकर दिखाएं, और श्लोकों का अर्थ समझाएं।  उन्होंने कहा था पहले विद्वान लोग ही धर्म का ज्ञान दिया करते थे, लेकिन आजकल मूर्ख लोग कथावाचन कर रहे हैं।

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संस्कृत का महत्व और हिन्दू धर्म की एकता

रामभद्राचार्य ने कहा कि उनका उद्देश्य सभी हिंदुओं को संस्कृत का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करना था। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति और संस्कृत का अध्ययन करना सभी हिंदुओं के लिए अनिवार्य है, ताकि वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझ सकें। उन्होंने यह भी कहा कि वह खुद 18 घंटे प्रतिदिन संस्कृत पढ़ते हैं और सभी को ऐसा करने की सलाह देते हैं।

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हिंदू धर्म की एकता की आवश्यकता

रामभद्राचार्य ने कहा कि वर्तमान में सनातन धर्म पर चारों ओर से आक्रमण हो रहे हैं। उन्होंने हिंदुओं की एकता पर बल दिया और कहा कि इस समय हमें पारस्परिक भेदभाव छोड़कर एकजुट होने की आवश्यकता है। उन्होंने राम मंदिर के लिए 500 वर्षों के संघर्ष का उल्लेख किया और कहा कि हम अब श्री कृष्ण भूमि और काशी विश्वनाथ भी प्राप्त करेंगे।

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