8 साल में रामायण कंठस्थ करने वाले गिरिधर मिश्रा कैसे बनें जगद्गुरु रामभद्राचार्य

जगद्गुरु रामभद्राचार्य को 16 मई 2025 को 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया, जो भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है। वे संस्कृत के महान विद्वान हैं और 22 भाषाओं के ज्ञाता हैं।

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Kaushiki
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य
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नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 16 मई 2025 को देश के महान संस्कृत विद्वान और धार्मिक गुरु, जगद्गुरु रामभद्राचार्य को 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। यह सम्मान उन्हें भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिया।

ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान माना जाता है, जो साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। वे तुलसी पीठ के संस्थापक और संस्कृत के अद्वितीय विद्वान हैं, जिन्हें 22 भाषाओं का ज्ञान है। उनकी जीवन गाथा प्रेरणादायक है, जिसमें उन्होंने बचपन से ही महान साहित्य कंठस्थ कर लिया था।

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रामभद्राचार्य - विकिपीडिया

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

रामभद्राचार्य का जन्म मकर संक्रांति के दिन हुआ था। उनके पिता मुंबई में नौकरी करते थे, जबकि उनकी माता शची देवी थी। दो महीने की उम्र में ही वे एक संक्रमण के कारण अपनी दृष्टि खो बैठे।

हालांकि, अंधेपन ने उनकी शिक्षा और ज्ञान की खोज में बाधा नहीं डाली। उनके दादा ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी और रामायण, महाभारत जैसी महाकाव्यों की कहानियां सुनाकर उनका मार्गदर्शन किया।

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अद्भुत स्मृति और शिक्षा की उपलब्धियां

चार साल की उम्र में रामभद्राचार्य कविता पाठ करने लगे थे। पांच साल की उम्र में 700 श्लोकों के साथ भगवद्गीता को मात्र 15 दिनों में रट गए। सात वर्ष की उम्र तक वे पूरी रामचरितमानस कंठस्थ कर चुके थे।

आठ साल की उम्र में उन्होंने भागवत और रामकथा का पाठ भी शुरू किया। उन्होंने वेद, उपनिषद और पुराणों का भी गहरा अध्ययन किया। रामभद्राचार्य ने न्यूनीकरणों के बावजूद 22 भाषाओं में प्रवीणता हासिल की।

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रामभद्राचार्य - विकिपीडिया

सामाजिक और धार्मिक योगदान

रामभद्राचार्य ने दिव्यांग विश्वविद्यालय की स्थापना की, जहां वे आजीवन कुलाधिपति हैं। वे राष्ट्रीय संत समिति के संस्थापक भी हैं। अयोध्या राम मंदिर के फैसले में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।

उनकी लेखनी और वाणी ने धार्मिक और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा दिया है। रामभद्राचार्य संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान हैं, जिन्होंने साहित्य और धर्म के क्षेत्र में अपार योगदान दिया है।

पद्म विभूषण से सम्मानित रामभद्राचार्य ने जीवनभर संस्कृत साहित्य की सेवा की है। उनका लेखन और व्याख्यान धार्मिक और सामाजिक कल्याण के लिए मार्गदर्शक साबित हुए हैं। 

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पुरस्कार समारोह और सम्मान

ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ रामभद्राचार्य को शॉल, श्रीफल, मोमेंटो, मां सरस्वती की प्रतिमा और नगद पुरस्कार का चेक भी दिया गया। पुरस्कार लेते हुए रामभद्राचार्य ने कहा कि, यह सम्मान उन्हें संस्कृत भाषा में दिया जा रहा है, जिसके लिए वे सभी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि वे जीवनभर साहित्यिक सेवा करते रहेंगे और अपनी लेखनी से भारत की उन्नति में योगदान देंगे।

ज्ञानपीठ पुरस्कार क्या है

ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान है, जो देश के विभिन्न भाषाओं में श्रेष्ठ साहित्यिक योगदान के लिए दिया जाता है। इसकी शुरुआत 1955 में हुई थी।

यह पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ संस्था के तहत प्रदान किया जाता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार का उद्देश्य साहित्य के क्षेत्र में असाधारण कार्य करने वाले लेखकों को सम्मानित करना और उनकी प्रतिभा को देश-विदेश में पहचान दिलाना है।

पुरस्कार में एक माला, पदक और नकद राशि दी जाती है। यह सम्मान भारतीय साहित्य की विविधता और समृद्धि को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रामभद्राचार्य का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर हम मेहनत और लगन से काम करें तो कोई भी मुश्किल हमें रोक नहीं सकती। रामभद्राचार्य एक ऐसे गुरु हैं जो ज्ञान और धर्म की रोशनी फैलाते हैं।

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