Gyanpith Award 2023 : रामभद्राचार्य और गुलजार को राष्ट्रपति मुर्मू ने दिया सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार

नई दिल्ली में शुक्रवार को एक भव्य समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य को वर्ष 2023 का 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान कर देश को गौरवान्वित किया। उन्हें संस्कृत भाषा में अद्वितीय, समर्पित साहित्यिक योगदान के लिए प्रदान किया।

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Reena Sharma Vijayvargiya
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नई दिल्ली में आयोजित एक गरिमामय समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को जगतगुरु रामभद्राचार्य को 2023 का 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया। संस्कृत भाषा में उनके साहित्यिक योगदान के लिए यह पुरस्कार उन्हें दिया गया। साथ ही प्रसिद्ध गीतकार और लेखक गुलज़ार को भी 2023 के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

रामभद्राचार्य : दिव्य दृष्टि से समाज सेवा और साहित्य में योगदान

जगतगुरु रामभद्राचार्य एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। दृष्टिहीन होने के बावजूद उन्होंने संस्कृत साहित्य में अपने कार्यों से जो स्थान हासिल किया, वह प्रेरणादायक है। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने अपनी 'दिव्य दृष्टि' से समाज और साहित्य दोनों की सेवा की है।

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गुलज़ार के लिए राष्ट्रपति का संदेश

गुलज़ार पुरस्कार समारोह में उपस्थित नहीं हो सके, लेकिन राष्ट्रपति मुर्मू ने उन्हें जल्द स्वास्थ्य लाभ की कामना की। उन्होंने कहा, "गुलज़ार साहब जैसे साहित्यकारों की कलम समाज को दिशा देती है।"

साहित्य का समाज में योगदान

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य समाज को जोड़ता है और उसकी आत्मा को जाग्रत करता है। उन्होंने ‘वंदे मातरम’ से लेकर रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे साहित्य ने आज़ादी के आंदोलन और सामाजिक बदलावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की भूमिका

राष्ट्रपति ने भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की सराहना करते हुए कहा कि यह संस्था 1965 से भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को सम्मानित कर रही है और इसने हमेशा उत्कृष्ट लेखन को बढ़ावा दिया है।

महिला लेखकों की प्रेरणादायक उपस्थिति

मुर्मू ने ज्ञानपीठ सम्मानित लेखिकाओं जैसे अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, कुर्रतुल ऐन हैदर, महाश्वेता देवी, आदि का उल्लेख किया और कहा कि आज की युवा महिलाएं इनसे प्रेरणा लें और साहित्य के माध्यम से समाज में बदलाव लाएं।

इसलिए दिया जाता है ज्ञानपीठ पुरस्कार 

भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान समझा जाने वाला ज्ञानपीठ पुरस्कार किसी भी भारतीय भाषा में उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान देने वाले लेखक या लेखिका को दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओं में साहित्य को बढ़ावा देना और उन साहित्यकारों को सम्मानित करना है जिन्होंने भाषा, विचार और लेखन के माध्यम से समाज को नई दिशा दी हो।

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ज्ञानपीठ पुरस्कार का उद्देश्य

भारतीय भाषाओं का सम्मान : यह पुरस्कार भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं (जैसे हिंदी, बंगाली, कन्नड़, मलयालम, ओडिय़ा, तमिल, तेलुगु आदि) में लिखे गए साहित्य को पहचान देने के लिए है।

उत्कृष्ट साहित्य का सम्मान : उपन्यास, कविता, निबंध, नाटक, कहानी आदि के क्षेत्र में किए गए असाधारण कार्य को प्रोत्साहन देने हेतु।

लेखकों की पहचान और प्रेरणा : लेखकों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना और आने वाली पीढय़िों को साहित्य सृजन हेतु प्रेरित करना।

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पुरस्कार की शुरुआत कब हुई?

ज्ञानपीठ पुरस्कार की शुरुआत 1961 में भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट द्वारा की गई थी। यह ट्रस्ट भारतीय उद्योगपति साहू शांति प्रसाद जैन और उनकी पत्नी रामेश्वरी देवी जैन द्वारा स्थापित किया गया था।

ये दिया जाता है पुरस्कार में 

एक शॉल और वाग्देवी (सरस्वती) की कांस्य प्रतिमा व प्रशस्ति पत्र के साथ ही 11 लाख (2023 तक की जानकारी के अनुसार)

: साहित्य पुरस्कार 

 

 

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