इंदौर हाईकोर्ट ने डाकुओं का एनकाउंटर करने वाले अफसर को वीरता पुरस्कार दिए जाने की याचिका पर सरकार को आदेश दिया है। इसमें कोर्ट ने अफसर को 15 अगस्त को वीरता पुरस्कार देने के आदेश सरकार को दिए हैं। हद तो तब हो गई जबकि पुलिस अफसर विवेक सिंह ने अपनी जान पर खेलकर डाकुओं का एनकाउंटर किया था। उसके एवज में सरकार से वीरता पुरस्कार पाने के लिए उन्हें अपनी ही सरकार से 22 साल तक लड़ाई लड़नी पड़ी। इसके बाद अब हाईकोर्ट ने उन्हें वीरता पुरस्कार देने का आदेश दिया है।
सरकार ने की थी हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना
हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने केंद्र सरकार को एक अवमानना याचिका पर आदेश दिया है कि जिस पुलिस अफसर ने डकैतों को मुठभेड़ में मारा। उसे 15 अगस्त पर वीरता पुरस्कार दिया जाए। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट मृगेंद्र सिंह ने तर्क रखे थे। उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट ने दिसंबर 2024 में पुरस्कार देने के आदेश दिए थे, लेकिन सरकार ने इसका पालन नहीं किया। इस पर अवमानना दायर की गई थी।
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22 साल पहले डाकुओं का किया था एनकाउंटर
ग्वालियर जिले में पुलिस अफसर विवेक सिंह ने 22 साल पहले 24 जून 2003 को डकैतों का एनकाउंटर किया था। उन्हें राष्ट्रपति पुलिस पदक वीरता पुरस्कार देने की अनुशंसा की गई थी, लेकिन मामला केंद्र सरकार के पास अटक गया। कई वर्षों तक निराकरण नहीं होने पर उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
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राज्य सरकार ने ही तय समय में नहीं भेजा प्रस्ताव
याचिका को लेकर हुई सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि राज्य सरकार द्वारा गृह मंत्रालय की गाइडलाइन के मुताबिक तय समय में उक्त प्रस्ताव नहीं भेजा गया था, इसलिए लंबित है। राज्य सरकार द्वारा जवाब में कहा गया था कि नियमानुसार घटना के एक वर्ष के भीतर 18 दिसंबर 2003 को ही प्रदेश सरकार केंद्र सरकार को अनुशंसा भेज चुकी थी।
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महीनेभर में देना था वीरता पुरस्कार
सभी के तर्क सुनने के बाद हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए भारत सरकार को निर्देशित किया कि वह यह सुनिश्चित करे कि याचिकाकर्ता को एक महीने के भीतर वीरता पुरस्कार मिले। चार माह बीतने के बाद भी आदेश का पालन नहीं हुआ तो अवमानना दायर की गई थी। मंगलवार को हाई कोर्ट ने 15 अगस्त पर पुरस्कार देने के आदेश दिए। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता विवेक सिंह चौहान इंदौर में भी पदस्थ रहे हैं।
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