IIT कानपुर में क्‍लाउड सीडिंग कामयाब, सूखे की समस्या होगी खत्म, आर्टिफिशियल रेन हो सकेगी, अब बारिश कराने के लिए तैयार करेंगे बादल

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Pratibha Rana
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IIT कानपुर में क्‍लाउड सीडिंग कामयाब, सूखे की समस्या होगी खत्म, आर्टिफिशियल रेन हो सकेगी, अब बारिश कराने के लिए तैयार करेंगे बादल

Kanpur. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल रेन के लिए बादल निर्माण परियोजना पर काम शुरू कर दिया है। आर्टिफिशियल रेन के लिए उपकरणों का पहला परीक्षण सफल रहा है। 2017 में शुरू हुई परियोजना में अब अगले सप्ताह उपकरण और तकनीक का व्यावहारिक परीक्षण किया जाएगा। मशीनों का परीक्षण सफल रहने पर अगले चरण में आर्टिफिशियल बादलों से बारिश कराने का प्रयोग किया जाएगा।



छह वर्ष पहले बनी थी परियोजना 



दशकों से सूखे की समस्या का सामना करते रहे बुंदेलखंड के किसानों को बारिश का लाभ दिलाने को ध्यान में रखकर प्रदेश और केंद्र सरकार ने आईआईटी कानपुर को छह साल पहले आर्टिफिशियल बारिश की परियोजना का जिम्मा दिया था। संस्थान के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल के नेतृत्व में विज्ञानियों की टीम प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। प्रो. अग्रवाल का मानना है कि कृत्रिम बादलों से बारिश कराया जाना संभव है।



अगले सप्ताह दूसरे परीक्षण की तैयारी 



प्रो.अग्रवाल के मुताबिक आर्टिफिशियल बारिश कराने के लिए आइआइटी में विशेष तरह के उपकरण और मशीन तैयार की गई है, इनको हवाई जहाज के डैनों से इस तरह जोड़ा गया कि उड़ान प्रभावित न हो और बादलों के निर्माण के लिए जरूरी रसायनों का छिड़काव किया जा सके। तैयार उपकरणों का 21 जून को पहली बार हवाई जहाज की उड़ान के साथ परीक्षण किया गया। अगले सप्ताह एक और परीक्षण उड़ान होगी। उसके बाद कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी होगी। 



हवाई जहाज में जोड़े गए उपकरण, आसमान में छिड़केंगे रसायन मिश्रण



हवाई जहाज में जोड़े गए उपकरणों की मदद से विशेष रसायन मिश्रण को आसमान में मौजूद बादलों के बीच छोड़ा जाएगा। इससे हाइड्रोजन-आक्सीजन अनुपात से पानी बनने की प्रक्रिया पूरी होगी और बारिश हो सकेगी। अभी पूरा परीक्षण केवल यह जानने के लिए है कि मशीनें सही से काम कर रही हैं या नहीं।



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पांच हजार फीट की ऊंचाई पर अमेरिकी सेसना विमान का किया उपयोग 



आईआईटी निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने बताया कि कृत्रिम बादल निर्माण के लिए अमेरिकी सेसना विमान में कंपनी की मदद से जरूरी परिवर्तन किए गए हैं। पांच हजार फीट की ऊंचाई पर किए गए प्रयोग के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय से अनुमति ले ली गई है। अभी बादलों के ऊपर जाकर जरूरी रसायनों का छिड़काव होगा लेकिन उन्हें बारिश कराने के लिए उत्प्रेरित नहीं किया गया। अगले चरणों में इस दिशा में काम किया जाएगा।



ऐसे बनते हैं आर्टिफिशियल बादल 



आर्टिफिशियल बादल निर्माण के लिए देश में सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सरकार की ओर से भी प्रयास किए गए पर सफल नहीं रहे। विज्ञानियों के अनुसार हाइड्रोजन और आक्सीजन के अणुओं से मिलकर पानी बनता है। आसमान में बादल आकर बगैर बरसे इसलिए चले जाते हैं कि हाइड्रोजन और आक्सीजन के अणु एक अनुपात दो में नहीं बन पाते। आर्टिफिशियल बादल से सालों कराने में विभिन्न रासायनिक एजेंटों जैसे सिल्वर आयोडाइड, सूखी बर्फ, नमक और अन्य तत्वों का उपयोग किया जाता है। इसमें नमक को सबसे बेहतर माना गया है। आईआईटी कानपुर अगले चरण में इन्हीं रासायनिक एजेंटों के प्रयोग का परीक्षण करने की तैयारी में है।


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