आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- RSS भगवा को गुरु मानता है, लेकिन तिरंगे का बहुत सम्मान

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बेंगलुरु में अपने बयान में कहा कि भारत में मुस्लिम और ईसाई भी हिंदू पूर्वजों के वंशज हैं। उन्होंने संघ की भूमिका और तिरंगे के सम्मान की बात की, साथ ही हिंदू राष्ट्र को संविधान के खिलाफ नहीं बताया।

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Jitendra Shrivastava
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Photograph: (TEHSOOTR)

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BANGALURU. बेंगलुरु में मोहन भागवत ने कहा, भारत में मुस्लिम-ईसाई भी हिंदू पूर्वजों के वंशज हैं। संघ को तीन बार बैन का सामना करना पड़ा, फिर मान्यता मिली। संघ समाज को जोड़ने और तिरंगे का सम्मान करने की बात भी करता है।

रविवार 9 नवंबर को बेंगलुरु में आरएसएस के 100 साल के कार्यक्रम में मोहन भागवत ने समाज को जोड़ने और देश की विविधता की बात कही। उन्होंने सीधे कहा कि भारत के सभी लोग चाहे वे किसी भी धर्म के हों, उनके पूर्वज हिंदू थे।

भागवत ने बार-बार यह दोहराया कि मुस्लिम और ईसाई समुदाय भी उन्हीं पूर्वजों की संतान हैं, यानी मुस्लिम-ईसाई पूर्वज हिंदू हैं जो सदियों से इस देश में रहे हैं। यह बयान सोशल मीडिया और राजनीतिक हल्कों में काफी चर्चा में है।
छोटे-छोटे कार्यक्रमों में बोले भागवत ने हिंदू संस्कृति को आधार बताया। उनका कहना है कि भारत की मूल पहचान हिंदू शब्द में ही छुपी है। उन्होंने कहा, "कोई भी परिभाषा तलाशें, आखिर में हिंदू नाम ही मिलेगा।"

पहले 5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला...

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👉 मोहन भागवत बोले, भारत के मुस्लिम व ईसाई भी हिंदू पूर्वजों के वंशज हैं।
👉 आरएसएस को तीन बार प्रतिबंध का सामना करना पड़ा, बाद में पहचान मिली।
👉 संघ भगवा को गुरु मानता है, लेकिन तिरंगे को दिल से सम्मान देता है।
👉 संघ का लक्ष्य हर गांव और हर वर्ग तक पहुंचना और समाज को जोड़ना है।
👉 भागवत ने कहा, भारत का हिंदू राष्ट्र होना संविधान के खिलाफ नहीं है।

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संघ की स्थापना और RSS बैन होने की कहानी

आरएसएस की शुरुआत 1925 में नागपुर में हुई थी। तब से संघ कई बार विवादों में रहा। मोहन भागवत ने बताया कि संघ को कुल तीन बार बैन किया गया। हर बार संगठन ने समाज में अपनी मौजूदगी का एहसास कराया और अंत में मान्यता मिली।

इस मामले में भागवत ने सरकार और ब्रिटिश दौर के रजिस्ट्रेशन प्रणाली का भी जिक्र किया। उनके मुताबिक, आज भी संघ और हिंदू धर्म कोई रजिस्टर्ड संस्था नहीं है, लेकिन देश और समाज की नजर में इसकी बड़ी पहचान है।

तिरंगे और भगवा झंडे पर संघ का रुख

कई बार संघ पर तिरंगे से दूरी रखने के आरोप लगे हैं। भागवत ने इसे साफ करते हुए कहा कि संघ के लिए भगवा झंडा गुरु है। लेकिन हमें तिरंगे का भी पूरा सम्मान है। ऐसे बयान देकर उन्होंने समाज में फैले भ्रम को दूर करने की कोशिश की।

भागवत ने स्पष्ट कहा, "हमारे कार्यकर्ता बिना स्वार्थ के समाज को जोड़ने का काम करते हैं।" इसीलिए, संघ के लिए तिरंगा उतना ही आदरणीय है, जितना भगवा।

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हर गांव, हर वर्ग तक पहुंचेगा संघ

मोहन भागवत ने संघ की आगे की रणनीति पर भी बात की। उनका कहना है कि संगठन अब सिर्फ किसी खास वर्ग या इलाके तक सीमित नहीं रहेगा। संघ का मकसद है, हर गांव-हर जाति, हर वर्ग तक पहुंचना। उनका मानना है कि भारत की विविधता, समाज की असली ताकत है। इसी विविधता को जोड़ना ही संघ का लक्ष्य है।

हिंदू पहचान और भारतीय संविधान

भागवत ने अपने बयान (mohan bhagwat statement) में साफ कहा कि हिंदू राष्ट्र की बात, संविधान के खिलाफ नहीं है। उनका तर्क है कि भारत की संस्कृति, संविधान से मेल खाती है। संघ का लक्ष्य है, समाज को जोड़ना और लोगों में अपनापन बढ़ाना। ऐसे में हिंदू पहचान को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए।

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भागवत के हालिया बयान और समाज की सच्चाई

नागपुर और अन्य जगहों पर दिए अपने हाल के भाषणों में भागवत ने कहा कि समाज सिर्फ कानूनों से नहीं मजबूत होता। उसमें संवेदनशीलता, संस्कृति से जुड़ाव और एक-दूसरे के प्रति अपनापन जरूरी है। दशहरे पर अपने भाषण में उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य अनुशासन, सेवा और जागरूकता फैलाना है।

ऐतिहासिक प्रसंग: संघ की शुरुआती कहानी

विजयादशमी, 1925 को नागपुर में डॉक्टर हेडगेवार और पांच लोगों ने संघ की शुरुआत की थी। सालों तक संगठन ने विरोध भी झेला, लेकिन आज हर वर्ग तक इसकी पहुंच है। इसमें त्याग और सेवा की भावना हमेशा सामने रही है।

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पूरा मामला: राजनीति, समाज और संस्कृति को लेकर चर्चा

भागवत का यह बयान सिर्फ एक समुदाय या संघ के संदर्भ में नहीं है। यह समाज के हर वर्ग की संस्कृति और एकता को लेकर है। उनका मकसद था कि विविधता की पहचान को एक सूत्र में पिरोकर देश को मजबूत बनाना। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत का राष्ट्रवाद हजारों साल पुराना है। इस आधार को समझना और अपनाना ही असली जिम्मेदारी है।

FAQ

मोहन भागवत ने मुस्लिम और ईसाई पूर्वजों को हिंदू क्यों बताया?
मोहन भागवत का कहना है कि भारत की मूल संस्कृति हिंदू रही, जिससे सभी लोग जुड़े हैं।
आरएसएस को तीन बार बैन क्यों किया गया था?
राजनीति और सामाजिक विवाद के कारण संघ को तीन बार प्रतिबंध मिला, बाद में मान्यता दी गई।
संघ तिरंगे झंडे को भी सम्मान क्यों देता है?
मोहन भागवत के अनुसार संघ तिरंगे को राष्ट्रीय गर्व की तरह आदर देता है, भगवा को गुरु मानते हैं।

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