बाल विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हमने बाल विवाह की रोकथाम पर बने कानून (PCMA) के उद्देश्य को देखा और समझा। इसके अंदर बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है, जो अप्रभावी साबित हुआ। हमें जरूरत है, अवेयरनेस कैंपेनिंग की। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी ने 2017 में याचिका दायर की थी।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ था
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रमों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ये कार्यक्रम और व्याख्यान वास्तव में जमीनी स्तर पर चीजों को नहीं बदलते हैं। हम यहां किसी की आलोचना के लिए नहीं हैं, यह एक सामाजिक मुद्दा है। सरकार इस पर क्या कर रही है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बेंच को वर्तमान स्थिति के बारे में बताते हुए कहा था कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्यों में बाल विवाह के मामले ज्यादा देखे गए हैं। असम को छोड़कर पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।
क्या कहा CJI ने?
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून को पर्सनल लॉ के जरिए बाधित नहीं किया जा सकता। इस तरह की शादियां नाबालिगों को जीवनसाथी चुनने की आजादी देने के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।
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50% की आई कमी
विधि अधिकारी ने कहा था कि 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 ने बाल विवाह पर आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। पिछले तीन साल में हालात काफी हद तक सुधर गए हैं। 2005-06 की तुलना में बाल विवाह के मामलों में 50% की कमी आई है।
बाल विवाह के खिलाफ असम में कई फैसले
बताया गया कि जुलाई 2024 में असम सरकार की कैबिनेट ने असम मुस्लिम निकाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को हटाकर अनिवार्य रजिस्ट्रेशन लॉ को लाने के लिए एक बिल को मंजूरी दी थी। क्योंकि 1935 के कानून के तहत स्पेशल कंडीशन में कम उम्र में निकाह करने की अनुमति दी जाती थी।
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असम सरकार के प्रयासों की हुई थी सराहना
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन रिपोर्ट ने बाल विवाह से निपटने के लिए असम सरकार के प्रयासों की सराहना की थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि कानूनी कार्रवाई के जरिए असम में बाल विवाह के मामलों को कम किया गया है। 2021-22 और 23-24 के बीच राज्य के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी आई है।
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