SC आरक्षण में क्रीमी लेयर पर CJI गवई का बड़ा बयान, बोले एक IAS का बच्चा मजदूर के बच्चे के बराबर कैसे?

चीफ जस्टिस बीआर गवई ने SC आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की वकालत की है। उन्होंने कहा कि IAS अधिकारी का बच्चा गरीब मजदूर के बच्चों के बराबर नहीं हो सकता। उन्होंने संविधान में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व की आवश्यकता पर जोर दिया।

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Sanjay Dhiman
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CJI speaks on Sc resarvation

Photograph: (the sootr)

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NEW DILHI. देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने एक बार फिर आरक्षण के मसले पर अपनी बात रखी। उन्होंने साफ कहा कि वह अनुसूचित जाति (SC) के आरक्षण में भी क्रीमी लेयर लागू करने के पक्ष में हैं। क्रीमी लेयर यानी वे लोग जो सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ चुके हैं। गवई ने बताया कि एक IAS अधिकारी के बच्चों को आप गरीब खेत मजदूर के बच्चों के जैसा नहीं मान सकते। यह बात उन्होंने 'India and the Living Indian Constitution at 75 Years' कार्यक्रम में कही।

उनके मुताबिक, आरक्षण का असली फायदा उन तक पहुंचना चाहिए, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। वह उन लोगों को आरक्षण से बाहर रखने की वकालत करते हैं जो इसका लाभ उठा चुके हैं। गवई ने IAS अधिकारी और खेतिहर मजदूर के बच्चों की तुलना को गलत बताया। उन्होंने कहा कि समानता का सिद्धांत कहता है कि असमानों के साथ असमान व्यवहार होना चाहिए। 

OBC की तरह SC में भी हो क्रीमी लेयर

CJI गवई ने ओबीसी आरक्षण में लागू क्रीमी लेयर का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इंद्रा साहनी केस के तहत जो नियम ओबीसी पर लागू है। वही अनुसूचित जातियों पर भी लागू होना चाहिए। 

उन्होंने माना कि उनके इस विचार की काफी आलोचना हुई है, लेकिन वह अपने रुख को सही मानते हैं। 2024 में भी उन्होंने राज्यों को यह सलाह दी थी। सलाह थी कि SC और ST (अनुसूचित जनजाति) में भी क्रीमी लेयर की पहचान हो। ताकि जो लोग पहले से लाभ ले चुके हैं, उन्हें आरक्षण का फायदा न मिले। 

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  • SC आरक्षण में क्रीमी लेयर (आर्थिक-सामाजिक रूप से आगे बढ़े लोग) लागू होनी चाहिए, यह  CJI बीआर गवई का मानना है।
  • उनका तर्क है कि एक IAS अधिकारी के बच्चे को गरीब खेत मजदूर के बच्चों के बराबर नहीं माना जा सकता।
  • वह चाहते हैं कि ओबीसी की तरह अनुसूचित जातियों (SC) में भी क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू किया जाए।
  • CJI ने कहा कि संविधान स्थिर नहीं है, इसे समय के साथ समाज की जरूरतों के हिसाब से बदलना चाहिए।
  • उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय संविधान को दिया, क्योंकि उसी की वजह से वह सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुँचे।

CJI ने कहा संविधान एक 'जीवंत दस्तावेज'

मुख्य न्यायाधीश गवई ने संविधान की प्रकृति पर भी रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि हमारा भारतीय संविधान स्थिर या जड़ नहीं है। डॉ. बीआर अंबेडकर मानते थे कि संविधान को समय के साथ बदलना चाहिए। यह एक विकासशील और जीवंत दस्तावेज होना चाहिए। अनुच्छेद 368 संविधान में संशोधन का प्रावधान करता है। उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. अंबेडकर के संविधान-विमर्श वाले भाषणों को हर कानून के छात्र को पढ़ना चाहिए।

समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व है जरूरी

गवई ने डॉ. अंबेडकर के विचारों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि केवल समानता से देश में प्रगति संभव नहीं है। उन्होंने चेताया कि अकेली स्वतंत्रता शक्तिशाली लोगों को कमजोरों पर हावी होने दे सकती है। इसलिए, समानता (Equality), स्वतंत्रता (Liberty) और भाईचारा (Fraternity) तीनों ही जरूरी हैं। उनका मानना है कि ये तीनों सिद्धांत आरक्षण की अवधारणा को मजबूती देते हैं। 

संविधान की देन हैं उनकी सफलता

भावुक होकर CJI गवई ने अपनी सफलता का श्रेय संविधान को दिया। उन्होंने कहा कि वह अमरावती के एक साधारण नगर निगम स्कूल से पढ़े। संविधान की वजह से ही वह देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचे। उन्होंने याद दिलाया कि संविधान के कारण ही देश में दो SC राष्ट्रपति बने हैं। और आज की राष्ट्रपति एक ST समुदाय से हैं। उन्होंने बताया कि बीते वर्षों में महिलाओं की समानता और अधिकारों के लिए सकारात्मक बदलाव आया है। 

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क्रीमी लेयर (Creamy Layer) क्या होती है 

क्रीमी लेयर का मतलब है आरक्षित वर्ग के वे लोग जो सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत हो चुके हैं। इन्हें अब आरक्षण की जरूरत नहीं मानी जाती है। ओबीसी आरक्षण में तो क्रीमी लेयर लागू है। लेकिन SC आरक्षण में यह लागू नहीं है। CJI गवई चाहते हैं कि आरक्षण का लाभ उन जरूरतमंदों को मिले जो अभी भी पिछड़े हैं। उनका तर्क है कि एक बार लाभ मिल जाने पर अगली पीढ़ी को आरक्षण की सुविधा से बाहर रखा जाए।

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