भारतीय स्टेट बैंक ( SBI ) की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ( Arundhati Bhattacharya ) ने बैंकों को सख्त नसीहत देते हुए कहा कि बैंकों में पैसा रखने का दौर अब खत्म हो गया है। आज की युवा पीढ़ी निवेश पर अधिक रिस्क लेने के लिए तैयार है। इसमें SIP ( सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान ) का बड़ा योगदान है। भट्टाचार्य का मानना है कि बैंकिंग प्रणाली को समय के साथ बदलना होगा, क्योंकि आज का युवा बैंक डिपॉजिट की बजाय शेयर बाजार में निवेश को प्राथमिकता दे रहा है।
डिपॉजिट पर बैंकों की निर्भरता खत्म
मीडिया साक्षात्कार में अरुंधति भट्टाचार्य ने बताया कि अब बैंकों की डिपॉजिट पर निर्भरता घटती जा रही है। अब लोग SIP ( Systematic Investment Plan ) के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं। इससे बैंकों को अपने ट्रेजरी ऑपरेशन को सुधारने की जरूरत है। हर विकसित अर्थव्यवस्था में यह ट्रेंड देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि बैंकिंग प्रणाली को डिपॉजिट और मार्केट डेट के बीच एक बेहतर संतुलन बनाना होगा।
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SIP के माध्यम से निवेश कर रहा है आम आदमी
अरुंधति भट्टाचार्य ने SIP को एक क्रांतिकारी तरीका बताया, जिससे देश की आम जनता अब म्यूचुअल फंड के माध्यम से शेयर बाजार में निवेश कर रही है। कोई भी व्यक्ति छोटी राशि से SIP के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकता है। उदाहरण के तौर पर, दो हजार रुपए से भी शेयर बाजार में निवेश शुरू किया जा सकता है। यह तरीका छोटे निवेशकों को शेयर बाजार तक पहुंचाने का सबसे आसान साधन है।
बैंकों को करना होगा काम में सुधार
अरुंधति भट्टाचार्य ने बैंकों को आगाह करते हुए कहा कि SIP की बढ़ती लोकप्रियता के चलते बैंकों को अपने ट्रेजरी डिपार्टमेंट को अधिक सक्रिय करना होगा। इस डिपार्टमेंट को अब एसेट और लायबिलिटी के बीच संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभानी होगी। पहले इस विभाग को सुस्ती के आरोप झेलने पड़ते थे, लेकिन अब उन्हें निवेश के नए साधनों पर ध्यान देना होगा।
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आरबीआई गवर्नर की भी थी चेतावनी
अरुंधति भट्टाचार्य का यह बयान उस समय आया है, जब कुछ समय पहले भारतीय रिजर्व बैंक ( RBI ) के गवर्नर शक्तिकांत दास ( Shaktikanta Das ) ने भी बैंकों में घटते डिपॉजिट पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि लोग अब बैंकों में डिपॉजिट करने की बजाय म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों में निवेश कर रहे हैं। SIP के माध्यम से लोग हर महीने एक निश्चित राशि शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं, जिससे बैंकों को अपनी डिपॉजिट रणनीति में बदलाव करना होगा।
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