HYDERABAD. भारत का तीसरा मून मिशन यानी चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) शुक्रवार,14 जुलाई को लॉन्च हो गया। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित इसरो (ISRO) के सतीश धवन सेंटर से LVM3-M4 रॉकेट (बाहुबली) के जरिए चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतारने के लिए स्पेस में लॉन्च किया गया। इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने लॉन्च की सफलता के बाद कहा कि यदि सब कुछ प्लान के अनुसार चला तो चंद्रयान-3, 23 अगस्त को शाम करीब 5.47 बजे चांद पर उतरेगा। इसके बाद लैंडर- विक्रम और रोवर- प्रज्ञान दुनिया के अब तक रहस्य बने चांद के दक्षिणी ध्रुव से कई महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी जुटाएंगे।
दक्षिण ध्रुव पर अमेरिका और चीन की भी नजरें
चंद्रयान-2 की तरह ही चंद्रयान-3 का मकसद भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है। चांद का दक्षिणी ध्रुव वो स्थान है जहां आज तक कोई नहीं पहुंच सका है। यदि चंद्रयान-3 का लैंडर 'विक्रम' वहां सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग कर लेता है, तो ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा। इतना ही नहीं, चांद की सतह पर लैंडर उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा। चांद की सतह पर अब तक अमेरिका, रूस और चीन ही पहुंच पाए हैं। सितंबर 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश की थी, लेकिन तब लैंडर की हार्ड लैंडिंग हो गई थी। पिछली गलतियों से सबक लेते हुए चंद्रयान-3 में कई बदलाव भी किए गए हैं। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका और चीन समेत दुनिया की नजरें भी हैं। चीन ने कुछ साल पहले दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडर उतारा था। इतना ही नहीं, अमेरिका तो अगले साल दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की तैयारी भी कर रहा है।
लैंडिंग के लिए चांद का दक्षिणी ध्रुव ही क्यों चुना?
जैसा पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव है, वैसा ही चांद का भी है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में है और यह पृथ्वी का सबसे ठंडा इलाका है। ऐसा ही चांद का दक्षिणी ध्रुव है। उसका सबसे ठंडा इलाका। इस इलाके का ज्यादातर हिस्सा छाया में रहता है क्योंकि यहां सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं। इस कारण यहां तापमान कम होता है। पहले चंद्रयान-2 और अब चंद्रयान-3 के जरिए चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने की कोशिश है। ऐसा अंदाजा है कि हमेशा छाया में रहने और तापमान कम होने की वजह से यहां पानी और खनिज हो सकते हैं। इसकी पुष्टि पहले हुए मून मिशन में भी हो चुकी है।
दक्षिणी ध्रुव पर क्या खास है?
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने एक रिपोर्ट में बताया था कि ऑर्बिटरों से परीक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और यहां दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। इस हिस्से के बारे में बहुत सी जानकारियां जुटाना बाकी है। 1998 में नासा के एक मून मिशन ने दक्षिणी ध्रुव पर हाइड्रोजन की मौजूदगी का पता लगाया था। नासा का कहना है कि हाइड्रोजन की मौजूदगी वहां बर्फ होने का सबूत देती है।
कई हिस्सों में तपामान माइनस 248 डिग्री सेल्सियस तक
नासा की मानें तो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बड़े-बड़े पहाड़ और कई गड्ढे (क्रेटर्स) हैं। यहां सूरज की रोशनी भी बहुत कम पड़ती है। जिन हिस्सों पर सूरज की रोशनी आती है वहां 54 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होता है, लेकिन जिन हिस्सों पर सूरज की रोशनी नहीं पड़ती, वहां तापमान माइनस 248 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। नासा का दावा है कि कई सारे क्रेटर्स ऐसे हैं जो अरबों साल से अंधेरे में डूबे हैं। यहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पड़ी। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि पूरा दक्षिणी ध्रुव अंधेरे में ही डूबा रहता है। दक्षिणी ध्रुव के कई इलाके ऐसे भी हैं जहां सूरज की रोशनी आती है। उदाहरण के लिए, शेकलटन क्रेटर के पास कई ऐसी जगहें हैं जहां साल के 200 दिन सूरज की रोशनी रहती है।
चांद का दक्षिणी ध्रुव दुनिया के लिए रहस्यमयी
चांद का दक्षिणी ध्रुव काफी रहस्यमयी है। दुनिया अब तक इससे अनजान है। नासा के एक वैज्ञानिक का कहना है कि हम जानते हैं कि दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और वहां दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। हालांकि, ये अब तक अनजान दुनिया ही है। नासा का कहना है कि चूंकि दक्षिणी ध्रुव के कई क्रेटर्स पर कभी रोशनी पड़ी ही नहीं और वहां का ज्यादातर हिस्सा छाया में ही रहता है, इसलिए वहां बर्फ होने की कहीं ज्यादा संभावना है। ऐसा भी अंदाजा है कि यहां जमा पानी अरबों साल पुराना हो सकता है। इससे सौरमंडल के बारे में काफी अहम जानकारियां हासिल करने में मदद मिल सकेगी।
पानी या बर्फ मिली भी तो उससे होगा क्या?
नासा के मुताबिक, अगर पानी या बर्फ मिल जाती है तो इससे हमें ये समझने में मदद मिलेगी कि पानी और दूसरे पदार्थ सौरमंडल में कैसे घूम रहे हैं. उदाहरण के लिए, पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों से मिली बर्फ से पता चला है कि हमारे ग्रह की जलवायु और वातावरण हजारों साल में किस तरह से विकसित हुई है। पानी या बर्फ मिल जाती है तो उसका इस्तेमाल पीने के लिए, उपकरणों को ठंडा करने, रॉकेट फ्यूल बनाने और शोधकार्य में किया जा सकेगा।
वहां पहुंचना कितना मुश्किल?
चांद का दक्षिणी ध्रुव अजीब जगह है। सबसे बड़ी चुनौती तो यहां का अंधेरा ही है। यहां पर चाहे लैंडर उतारना हो या किसी अंतरिक्ष को, काफी मुश्किल है क्योंकि चांद पर पृथ्वी की तरह वायुमंडल नहीं है। नासा का तो ये भी कहना है कि हम कितनी भी बेहतरीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर लें और कितना ही एडवांस्ड लैंडर वहां उतार दें, तब भी ये जान पाना मुश्किल है कि दक्षिणी ध्रुव की जमीन दिखती कैसी है। और कुछ उपकरण तो यहां बढ़ते-घटते तापमान के कारण खराब भी हो सकते हैं। हालांकि, दुनिया इस हिस्से तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। नासा अगले साल दक्षिणी ध्रुव पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की तैयारी कर रहा है।
ये जानकारियां जुटाएंगे विक्रम और प्रज्ञान ?
चंद्रयान-3 का भी वही मकसद है, जो चंद्रयान-2 का था यानी, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना। इसरो के इस तीसरे मून मिशन की लागत करीब 615 करोड़ रुपए बताई जा रही है। इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 के तीन मकसद हैं। पहला- विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करना। दूसरा- इसके रोवर प्रज्ञान को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना और तीसरा- वैज्ञानिक परीक्षण करना। विक्रम लैंडर के साथ तीन और प्रज्ञान रोवर के साथ दो पेलोड होंगे। पेलोड को हम आसान भाषा में मशीन भी कह सकते हैं। रोवर भले ही लैंडर से बाहर आ जाएगा, लेकिन ये दोनों आपस में कनेक्ट होंगे। रोवर को जो भी जानकारी मिलेगी, वो लैंडर को भेजेगा और वो इसरो के डेटा सेंटर तक। लैंडर और रोवर के पेलोड चांद की सतह का अध्ययन करेंगे। ये चांद की सतह पर मौजूद पानी और खनिजों का पता लगाएंगे। इसके अलावा यह जानकारी भी जुटाएंगे कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं।