सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट्स की सुसाइड्स पर उठाया बड़ा कदम, कोर्ट ने जारी किए 15 नए सख्त रूल्स

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्टूडेंट्स की सुसाइड हमारी एजुकेशन सिस्टम की बड़ी फेलियर है। कोर्ट ने अब देशभर के स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटरों के लिए 15 नए रूल्स जारी किए हैं, जिनमें मेंटल हेल्थ सपोर्ट और पढ़ाई का प्रेशर कम करने पर जोर दिया गया है।

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Kaushiki
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Student suicides failure of the system
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स्टूडेंट्स की बढ़ती सुसाइड्स अब सिर्फ एक पर्सनल प्रॉब्लम नहीं, बल्कि हमारे पूरे एजुकेशन सिस्टम की इंस्टीट्यूशनल फेलियर बन रहा हैं। ये बड़ी बात सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश की एक 17 साल की NEET स्टूडेंट की मौत के मामले में सुनवाई करते हुए कही।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने साफ-साफ बोला कि स्टूडेंट्स की लगातार हो रही मौतें, जिन्हें अक्सर रोका जा सकता है।

यह बताती हैं कि हमने मेंटल हेल्थ, पढ़ाई के प्रेशर, सोशल स्टिग्मा और इंस्टीट्यूशनल सेंसिटिविटी जैसे जरूरी पॉइंट्स को नजरअंदाज किया है। कोर्ट ने जोर देकर कहा, "अब इस क्राइसिस को और इग्नोर नहीं किया जा सकता।" आइए जानें क्या है ये पूरा मामला...

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एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस के लिए स्ट्रिक्ट रूल्स

इस केस की इन्वेस्टिगेशन अब CBI को दे दी गई है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा कदम उठाया है। बेंच ने देशभर के सभी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस जिनमें स्कूल, कॉलेज और कोचिंग सेंटर भी शामिल हैं उनके लिए 15 कॉम्प्रिहेंसिव और स्ट्रिक्ट रूल्स जारी किए हैं।

कोर्ट ने क्लियर किया कि जब तक पार्लियामेंट या स्टेट असेंबली इस पर कोई स्पेशल लॉ नहीं बनातीं, तब तक ये गाइडलाइंस पूरे देश में लागू होंगी और सबको माननी होंगी। यह डिसीजन स्टूडेंट्स की वेलफेयर और उनके मेंटल हेल्थ को सेफ रखने की डायरेक्शन में एक हिस्टोरिकल स्टेप है।

मॉनिटरिंग कमेटी बनाने का ऑर्डर

बता दें कि, कोर्ट ने स्टेट्स को भी इंस्ट्रक्शंस दिए हैं कि वे अगले दो महीने के अंदर कोचिंग सेंटरों के रजिस्ट्रेशन और स्टूडेंट्स की शिकायतें सॉल्व करने पर एक नोटिफिकेशन जारी करें।

इसके साथ ही, हर जिले में DM की लीडरशिप में एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाने का भी ऑर्डर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मेंटल हेल्थ को कॉन्स्टिट्यूशन के आर्टिकल 21 के तहत दिए गए 'राइट टू लाइफ' (Right to Life) का एक इम्पोर्टेंट पार्ट बताया है और कहा है कि हर इंस्टीट्यूट की यह रिस्पांसिबिलिटी है कि वह स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ को प्रोटेक्ट करे।

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स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ के लिए 15 जरूरी रूल्स

सुप्रीम कोर्ट ने जो 15 रूल्स जारी किए हैं, वे स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ और एजुकेशनल एनवायरनमेंट में सुधार लाने के लिए एक डिटेल्ड प्लान देते हैं:

मेंटल हेल्थ पॉलिसी:

  • सभी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस को 'उम्मीद', 'मनोदर्पण' और 'नेशनल सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी' पर बेस्ड अपनी मेंटल हेल्थ पॉलिसी बनानी और अप्लाई करनी होगी।
  • इसे हर साल अपडेट करना होगा और अपनी वेबसाइट व इन्फॉर्मेशन बोर्ड्स पर साफ-साफ डिस्प्ले करना होगा।

मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स:

  • जिन इंस्टीट्यूशंस में 100 से ज्यादा स्टूडेंट्स हैं, वहां ट्रेन्ड काउंसलर, साइकोलॉजिस्ट या सोशल वर्कर अपॉइंट करने होंगे।
  • छोटे इंस्टीट्यूशंस बाहर के एक्सपर्ट्स के साथ टाई-अप कर सकते हैं।

मेंटरशिप प्रोग्राम:

  • एग्जाम टाइम में या कोर्स चेंज करते टाइम, हर स्टूडेंट ग्रुप को एक मेंटर या काउंसलर दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें सही गाइडेंस मिल सके।

बैच बनाने पर बैन:

  • कोचिंग इंस्टीट्यूशंस स्टूडेंट्स की परफॉरमेंस के बेस पर बैच नहीं बना सकते और न ही किसी स्टूडेंट को उसकी परफॉरमेंस को लेकर शेम कर सकते हैं। यह भेदभाव रोकने के लिए जरूरी है।

हेल्पलाइन और कॉन्टैक्ट सिस्टम:

एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस में मेंटल हेल्थ सर्विसेज, हॉस्पिटल्स और हेल्पलाइन से कॉन्टैक्ट का पूरा सिस्टम होना चाहिए। हेल्पलाइन नंबर्स को प्रमुखता से डिस्प्ले किया जाना चाहिए।

स्टाफ ट्रेनिंग:

  • इंस्टीट्यूट के सभी टीचर्स और स्टाफ को साल में दो बार मेंटल हेल्थ और सुसाइड के साइंस को पहचानने की ट्रेनिंग देनी होगी।

भेदभाव नहीं:

  • वीक सेक्शन के स्टूडेंट्स, जैसे SC, ST, OBC, EWS, LGBTQ+, डिसेबल्ड, अनाथ या मेंटल क्राइसिस से जूझ रहे स्टूडेंट्स के साथ किसी भी तरह का डिस्क्रिमिनेशन नहीं होना चाहिए।

सेफ्टी कमिटीज:

  • सेक्सुअल हैरेसमेंट, रैगिंग और डिस्क्रिमिनेशन के मामलों में एक्शन लेने के लिए एक कमिटी बनानी होगी।
  • विक्टिम स्टूडेंट्स को पूरी हेल्प और प्रोटेक्शन मिलनी चाहिए।

पेरेंट्स अवेयरनेस:

  • पेरेंट्स के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाएं ताकि वे अपने बच्चों में स्ट्रेस के साइंस को पहचान सकें और उन पर अननेसेसरी प्रेशर न डालें।

एनुअल रिपोर्ट:

  • इंस्टीट्यूशंस हर साल एक रिपोर्ट बनाएंगे, जिसमें काउंसलिंग और मेंटल हेल्थ सर्विसेज की पूरी डिटेल्स होंगी।
  • इस रिपोर्ट को UGC जैसी रेगुलेटरी बॉडीज को भेजना कम्पलसरी होगा।

ब्रोड करिकुलम:

  • स्टडी के साथ-साथ स्पोर्ट्स, आर्ट और पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • एग्जाम सिस्टम भी स्टूडेंट के फेवर में होना चाहिए, ताकि प्रेशर कम हो।

करियर काउंसलिंग:

  • स्टूडेंट्स और पेरेंट्स के लिए रेगुलर करियर काउंसलिंग का सिस्टम हो।
  • उन्हें अलग-अलग करियर ऑप्शंस की इन्फॉर्मेशन दी जाए, ताकि स्टूडेंट्स अपनी इंटरेस्ट के हिसाब से डिसीजन ले सकें।

हॉस्टल सेफ्टी:

  • हॉस्टल ऑपरेटर्स यह इन्श्योर करें कि कैंपस नशा, वायलेंस या हैरेसमेंट से पूरी तरह फ्री हो और स्टूडेंट्स को सेफ एनवायरनमेंट मिले।

सुसाइड प्रिवेंशन डिवाइस:

  • हॉस्टल्स में रूफ, बालकनी और फैंस जैसी जगहों पर सेफ्टी डिवाइस लगाए जाएं ताकि सुसाइड के इंसिडेंट्स को रोका जा सके।

कोचिंग सेंटरों पर स्पेशल वॉच:

  • कोटा, जयपुर, चेन्नई, दिल्ली जैसे बड़े कोचिंग सेंटरों में रेगुलर काउंसलिंग और टीचिंग प्लान पर वॉच रखने के लिए स्पेशल एफर्ट्स किए जाएंगे।

सरकार की जवाबदेही और आगे का प्लान

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सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल गवर्नमेंट से इन रूल्स को अच्छे से लागू करने पर 90 दिनों के अंदर एक एफिडेविट मांगा है। इस एफिडेविट में स्टेट्स के साथ कोआर्डिनेशन और नेशनल टास्क फोर्स की प्रोग्रेस रिपोर्ट का डिटेल्स देना होगा।

यह सुप्रीम कोर्ट का डिसीजन एजुकेशन फील्ड में एक नई शुरुआत लाएगा, जहां स्टूडेंट्स की मेंटल हेल्थ और उनका ओवरऑल डेवलपमेंट पढ़ाई में एक्सेलेंस जितना ही इम्पोर्टेंट माना जाएगा।

उम्मीद है कि इन गाइडलाइंस को स्ट्रिक्टली फॉलो करने से देश में स्टूडेंट्स की सुसाइड्स के दुखद नंबर्स में कमी आएगी और उन्हें एक सेफ, सपोर्टिव और स्ट्रेस-फ्री एनवायरनमेंट मिलेगा।

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