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कॉमेडी के जरिए दिव्यांगों का मजाक उड़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समय रैना सहित पांच कॉमेडियंस को सोशल मीडिया पर माफी मांगने का आदेश दिया है। अगली सुनवाई में इन्हें जमानत के तौर पर दी जाने वाली सजा भी तय हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (25 अगस्त) को कॉमेडियन समय रैना समेत पांच कॉमेडियंस को सख्त शब्दों में फटकार लगाई और उन्हें अपने यूट्यूब चैनल व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक तौर पर माफी पोस्ट करने का आदेश दिया। ये आदेश दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) का मजाक उड़ाने वाले असंवेदनशील चुटकुलों के मामले में आया।
सुप्रीम कोर्ट में हुई मामले की सुनवाई
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच SMA Cure Foundation की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस संगठन ने कोर्ट से अपील की थी कि समय रैना, विपुल गोयल, बलराज परमीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर उर्फ सोनाली आदित्य देसाई और निशांत जगदीश तंवर के जरिए बनाए गए चुटकुले दिव्यांगों के सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं और इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।
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कॉमेडी किसी की गरिमा की कीमत पर नहीं – SC
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हास्य जीवन का हिस्सा है, लेकिन जब यह किसी समुदाय या वर्ग की संवेदनशीलता को आहत करने लगे तो यह अस्वीकार्य हो जाता है। जस्टिस बागची ने टिप्पणी की, हास्य अच्छी बात है, लेकिन दूसरों की गरिमा की कीमत पर नहीं। जब कॉमेडी व्यावसायिक भाषण का रूप ले ले और किसी वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुंचाए, तो यह गंभीर समस्या बन जाती है।
जस्टिस सूर्य कांत ने आगे कहा कि कॉमेडियनों को सिर्फ माफी ही नहीं मांगनी चाहिए, बल्कि दिव्यांगों के अधिकारों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए भी अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना चाहिए।
5 कॉमेडियंस को SC से फटकार मामले पर एक नजर
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सभी कॉमेडियन रहे कोर्ट में मौजूद
पांचों कॉमेडियन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने व्यक्तिगत रूप से मौजूद थे। कोर्ट ने उनकी भविष्य की सुनवाई में व्यक्तिगत उपस्थिति को छूट दे दी है, लेकिन चेतावनी भी दी कि अनुपस्थिति को गंभीरता से लिया जाएगा।
माफी के साथ जुर्माने पर भी विचार
बेंच ने कहा कि कॉमेडियनों को सिर्फ माफी मांगकर नहीं बचना चाहिए, बल्कि उन्हें जुर्माने या अन्य दंड का सामना भी करना पड़ सकता है। जस्टिस कांत ने टिप्पणी की, पश्चाताप की डिग्री अपराध की डिग्री से अधिक होनी चाहिए। कोर्ट ने संकेत दिया कि अगली सुनवाई में कॉमेडियंस पर लगाए जाने वाले जुर्माने पर भी फैसला किया जाएगा।
कुछ हद तक काबू करने बनाए जाएंगे नियम
भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह इस मुद्दे पर दिशानिर्देशों का मसौदा पेश करेंगे। हालांकि उन्होंने साफ किया कि हास्य और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूरी तरह से रोक संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) किसी भी हाल में अनुच्छेद 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) से ऊपर नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ मजाक का नहीं बल्कि दिव्यांगों की गरिमा और सम्मान से जुड़ा है।
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