NEW DELHI. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% रिजर्वेशन जारी रहेगा। 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच पर फैसला सुनाया। बेंच की अगुआई चीफ जस्टिस यूयू ललित कर रहे थे। इन जजों का कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं करता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मोदी सरकार की जीत माना जा रहा है। ईडब्ल्यूएस कोटे की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शीर्ष अदालत में संविधान के 103वें संशोधन को चुनौती दी गई है, जिसके जरिए ईडब्ल्यूएस कोटे का प्रावधान किया गया है। 2019 में लागू किए गए ईडब्ल्यूएस कोटा को तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके समेत कई याचिकाकर्ताओं ने संविधान के खिलाफ बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी।
तीन जजों ने समर्थन में सुनाया फैसला
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए जा रहे आरक्षण के फैसले को सही ठहराया। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपनी राय सुनाते हुए कहा कि सवाल बड़ा ये था कि क्या EWS आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है? क्या इससे SC /ST/ ObC को बाहर रखना मूल भावना के खिलाफ है? EWS कोटा संविधान का उल्लंघन नही करता। EWS रिजर्वेशन सही है। ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता। ये भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि मैंने जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की राय पर सहमति जताई है।
आरक्षण के विरोध में रहे जस्टिस रवींद्र भट
जस्टिस एस रवींद्र भट ने कहा कि इस अदालत ने 7 दशक में पहली बार भेदभावपूर्ण सिद्धांत को मंजूरी दी है। आर्थिक मानकों के आधार पर ये आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं करता, लेकिन इससे एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को बाहर रखना भेदभाव दिखाता है। 103वां संशोधन एक तरह का भेदभाव पैदा करता है। आरक्षण वंचितों को दिया गया और इससे दूसरे वंचित समूहों को बाहर नहीं रखा जा सकता। संशोधन के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए प्रावधान नहीं किया जा सकता।
जस्टिस भट ने ये भी कहा कि आरक्षण की कल्पना इसलिए की गई थी, ताकि सालों से वंचित रहे लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सके। आर्थिक रूप से कमजोर ज्यादातर लोग एससी और ओबीसी हैं, लेकिन उन्हें ये कहकर बाहर रखना कि उनके लिए पहले से ही आरक्षण है, नाइंसाफी होगी। संशोधन के जरिए जो वर्गीकरण किया गया है, वो मनमाना है और इससे भेदभाव पैदा होता है। हमारा संविधान बहिष्कार की अनुमति नहीं देता और ये संशोधन सामाजिक न्याय के ताने-बाने को कमजोर करता है। इस तरह ये बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है। ये समान अवसर के सिद्धांत का भी उल्लंघन है। चीफ जस्टिस यूयू ललित भी जस्टिस भट के फैसले के साथ थे।
5 जजों की बेंच में सुनवाई
मामले में सात दिनों तक चली सुनवाई के बाद बेंच ने 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। 8 नवंबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित रिटायर हो रहे हैं। इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी शामिल हैं।
आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को दिया रिजर्वेशन
केंद्र सरकार ने 2019 में संसद में 103वां संविधान संशोधन प्रस्ताव पारित कर आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी। इससे संविधान के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
केंद्र सरकार की तरफ से पेश वकील ने ईडब्ल्यूएस को नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के को सही बताते हुए कहा था कि इस कानून से संविधान के मूल ढांचे को मजबूती मिलेगी। इसे संविधान का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता ।
सीजेआई ललित का आज आखिरी वर्किंग डे, कार्यवाही का हुआ लाइव टेलीकास्ट
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ललित का 7 नवंबर को आखिरी कार्यदिवस है। सीजेआई यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच की कार्यवाही का सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर लाइव टेलीकास्ट किया गया। हालांकि सीजेआई ललित मंगलवार को रिटायर होंगे, लेकिन गुरु नानक जयंती के कारण उस दिन अवकाश रहेगा।