सुप्रीम कोर्ट ने आज "बुलडोजर न्याय" के खिलाफ महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि केवल आपराधिक आरोपों या दोषसिद्धि के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना असंवैधानिक है। अदालत ने इस प्रकार की कार्यवाही को “कानून के शासन और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत” का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह न्यायपालिका का काम है कि वह किसी व्यक्ति को दोषी ठहराए, न कि कार्यपालिका…
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दो जजों की पीठ का फैसला
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि कार्यपालिका किसी व्यक्ति को केवल अपराध के संदेह में सजा नहीं दे सकती और इस आधार पर उसकी संपत्ति को ध्वस्त नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्था में इस प्रकार की मनमानी कार्रवाई का कोई स्थान नहीं है। न्यायालय ने कहा कि सरकारी अधिकारी जो कानून को अपने हाथ में लेते हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
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फैसले की पांच मुख्य बातें
कार्यपालिका का दायरा सीमित
कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराने का अधिकार केवल न्यायपालिका के पास है, कार्यपालिका के पास नहीं। बिना जांच और सुनवाई के घर तोड़ना कानून की बुनियादी प्रक्रिया का उल्लंघन है। इस प्रकार की कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाले आवास के अधिकार का भी उल्लंघन है।
कानूनी प्रक्रिया के पालन की अनिवार्यता
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी संपत्ति के ध्वस्तीकरण से पहले अधिकारियों को एक कारण बताओ नोटिस देना होगा। यह नोटिस पंजीकृत डाक से भेजा जाएगा और संपत्ति के बाहरी हिस्से पर चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण का विवरण और ध्वस्तीकरण के आधार का भी उल्लेख करना अनिवार्य है।
व्यक्तिगत सुनवाई का अधिकार
आरोपी को अपनी बात रखने का अवसर देना अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि बैठक के विवरण को रिकॉर्ड किया जाएगा और अंतिम आदेश में आरोपी के पक्ष को शामिल किया जाएगा। इसके साथ ही, ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया का वीडियो रिकॉर्ड करना आवश्यक होगा और इसे एक डिजिटल पोर्टल पर सार्वजनिक करना होगा।
परिवार के सदस्यों को न हो सजा
कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर कहा कि किसी आरोपी के परिवार को सजा देना अन्याय है। केवल आरोपी के कारण पूरे परिवार को परेशानी में नहीं डाला जा सकता। यह फैसला पूरे देश के लिए लागू है और इसे एक राज्य तक सीमित नहीं रखा गया है।
निर्देशों का उल्लंघन करने पर होगी कड़ी कार्रवाई
अगर किसी अधिकारी द्वारा निर्देशों का उल्लंघन किया जाता है, तो उसे अवमानना कार्यवाही का सामना करना होगा। अधिकारी ध्वस्त की गई संपत्ति की पुनर्स्थापना के लिए जिम्मेदार होंगे और उन्हें मुआवजा देना होगा।
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