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मध्यप्रदेश की फॉरेस्ट टीम और एसटीएफ ने फरवरी महीने में पारदी गैंग को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद पूछताछ में बाघ शिकार का बड़ा खुलासा हुआ। गिरोह ने बताया कि उन्होंने बीते दस वर्षों में बालाघाट रेंज सहित कई इलाकों में कुल 10 बाघों का शिकार किया है। सबसे हैरान करने वाली बात ये सामने आई कि यह शिकार म्यांमार के तस्कर लाल नी सुंग के इशारे पर किया गया था, जो बाघ की खाल और अंगों की तस्करी के लिए इस गैंग से संपर्क करता था।
न गोली, न जहर बाघों को ऐस करते थे शिकार
गिरोह के शिकार करने का तरीका बेहद बेरहम और चालाक था। वे न तो गोली चलाते थे और न ही ज़हर देते थे, क्योंकि इससे बाघ की खाल खराब हो सकती थी। इसके बजाय वे बाघ के रास्तों पर लोहे का 'पंजा ट्रैप' लगाते थे, जिसमें फंसने के बाद बाघ को तब तक थकाया जाता जब तक वह गिर न जाए। फिर लाठियों से मारकर उसकी जान ली जाती थी ताकि खाल को नुकसान न हो। यह सुनकर वन विभाग और STF अधिकारी भी दंग रह गए। यह मामला प्रदेश में वन्यजीव सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता खड़ा करता है।
सोशल मीडिया से इंटरनेशल मार्केट में तस्करी
देश में बाघ संरक्षण परियोजना (Tiger Conservation Project) के तहत बाघों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसके बाद भी पुराने शिकारी अब तस्करी के लिए नए तरीके खोज रहे हैं। ऐसे ही बाघ तस्कर नेटवर्क (Tiger Smuggling Network) का खुलासा 5 राज्यों की पुलिस ने केंद्रीय एंजेसी के साथ मिलकर किया है। ये नेटवर्क सोशल मीडिया के जरिये बाघों के अंगों की चीन तक तस्करी कर रहे थे। वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau - WCCB) ने इस पर कड़ी नजर रखते हुए नेटवर्क को पकड़ा। हालांकि ये नेटवर्क कितना बड़ा है इसकी जांच जारी है।
बाघ अंगों की तस्करी का नया नेटवर्क
जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में बाघ शिकारी गैंग (Tiger Poaching Gangs) सक्रिय हैं। हाल ही में महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश सीमा पर बहेलिया गैंग (Baheliya Gang) के अजीत पारदी के पकड़े जाने के बाद नेटवर्क का खुलासा हुआ। जांच में पता चला कि म्यांमार और उत्तर-पूर्व के रास्ते चीन तक बाघ के अंगों की तस्करी हो रही है।
हवाला और जीरो बैलेंस खातों से भुगतान
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तस्करों को हवाला नेटवर्क (Hawala Network) के जरिये पेमेंट किया जाता है। भारत में यह पैसा जीरो बैलेंस बैंक खातों (Zero Balance Accounts) में जमा किया जाता है, जहां से इसे तुरंत निकाल लिया जाता है। शिकारियों का ये नेटवर्क पिछले तीन सालों में भारत में 100 से अधिक बाघों के शिकार के लिए जिम्मेदार माना गया है।
अंधविश्वास बना बाघों की जान का दुश्मन
‘टाइगर स्टेट’ के खिताब से नवाजे गए मध्यप्रदेश में अब बाघों की हत्या के पीछे अंधविश्वास का काला सच सामने आ रहा है। बीते पांच वर्षों में मानवजनित शिकार के मामलों में करीब 35% घटनाएं अंधविश्वास से प्रेरित पाई गई हैं। ताजा मामला सिवनी जिले के पेंच टाइगर रिजर्व से सामने आया है, जहां 26 अप्रैल 2025 को एक मरी हुई बाघिन की लाश मिली।
जांच के दौरान दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया, जिन्होंने कबूल किया कि उन्होंने बाघिन के दांत और पंजे इसलिए निकाले क्योंकि एक जादू टोने वाले ने उन्हें विश्वास दिलाया था कि इससे वे अपनी पत्नियों पर ‘दबदबा’ बना सकेंगे। आरोपियों ने बताया कि तांत्रिक ने कहा था कि बाघ के अंगों से वैवाहिक जीवन में नियंत्रण बना रहता है, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने यह खौफनाक हरकत की।
मिजोरम होते हुए चीन तक तस्करी
शिकारियों ने अब सोशल मीडिया (Social Media) के जरिये संपर्क साधना शुरू कर दिया है। वे गुवाहाटी और शिलांग में ट्रांसपोर्टर के माध्यम से तस्करी का माल पहुंचाते हैं। यह खेप मणिपुर, मिजोरम होते हुए चीन पहुंचती है। तस्कर जांच एजेंसियों से बचने के लिए बाघ की हड्डियों पर फिटकरी पाउडर या दूसरे कैमिकल का लेप लगाते हैं। इससे हड्डियों की गंध खत्म हो जाती है और तस्करी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
2025 में बाघ शिकारियों की गिरफ्तारियां
- जनवरी में, महाराष्ट्र में अजीत के गिरोह की गिरफ्तारी हुई, जिससे सोनू सिंह और लालनेइसुंग की गिरफ्तारी हुई।
- फरवरी में, शिलॉन्ग में निंग सान लुन की गिरफ्तारी हुई, जबकि हरियाणा के कालका में सीबीआई और डब्ल्यूसीसीबी ने शिकारी पीर दास को गिरफ्तार किया। इसके अलावा, मध्य प्रदेश के वन अधिकारियों ने 1000 किलो गांजा जब्त किया।
- मार्च में, मणिपुर में कप लियांग मुंग की गिरफ्तारी हुई, जबकि 2023 गढ़चिरौली शिकार मामले में वांछित सुमन देवी बावरिया को सोनीपत, हरियाणा से गिरफ्तार किया गया।
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भारत में बाघों की संख्या
भारत में बाघों (Tigers In India) की आबादी में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है, लेकिन शिकार माफिया की नई तकनीकों ने इस प्रगति पर पानी फेर दिया है। 2022 में किए गए अखिल भारतीय बाघ आकलन के अनुसार, देश में बाघों की संख्या 3,682 तक पहुंच गई थी, जो 2018 में 2,967 और 2014 में 2,226 थी।
बाघ शिकार का इतिहास
भारत में बाघों की हत्या और शिकार (India’s illegal wildlife trade) सिलसिला राजा महाराजाओं के समय से चला आ रहा है। हालांकि इसके लिखित आंकड़े मुगल काल से देखने को मिलते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपि रिपोर्ट के अनुसार मुगल शासक अकबर ने हाथी या बाघ के शिकार पर ट्रॉफी देने की शुरुआत की। जबकि जहांगीर ने अपने शासनकाल के पहले 12 सालों में 86 बाघों और शेरों को मार डाला।
80 हजार बाघ अंग्रेजों के समय मारे गए
अंग्रेजों से हुई। 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद, अंग्रेजों ने शिकार में मारे गए किसी भी बाघ पर मारने वाले के लिए विशेष पुरस्कार की पेशकश की। इसके अलावा, 1770 में शिकार करना ब्रिटिश अधिकारियों के लिए एक आम मनोरंजन था, और जिला स्तर के प्रशासन शिकार की सुविधा देते थे। कोटा के महाराजा ने रात में शिकार के लिए स्पॉटलाइट के साथ रोल्स रॉयस फैंटम को सजाया था। वहीं मध्य भारत में रीवा के राजाओं को अपने राज्याभिषेक के बाद 109 बाघों को मारा। इंडिया टूडे की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 1875 से 1925 के बीच ब्रिटिश शासनकाल में 80,000 से अधिक बाघ मारे गए।
दुनिया में कुल 5574 टाइगर शेष
ग्लोबल टाइगर फ़ोरम के अनुसार, दुनिया भर में जंगलों में केवल 5,574 बाघ बचे हैं। भारत में बाघों की संख्या 3,682 है, जो दुनिया में बाघों की कुल संख्या का 75% है। यह भारत को बाघों के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला देश बनाता है।
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