Vande Bharat Train : रेलवे ने छुपाई ट्रेन की यह सच्चाई

पीएम मोदी से लेकर मंडल अध्यक्ष तक वंदे भारत की  तारीफ करते हैं। लेकिन हकीकत इससे काफी अलग है। जैसे इस ट्रेन के संचालन हेतु भारतीय रेलवे या कहें रेल मंत्रालय ने कई तकनीकी पहलुओं को या तो छिपाया है।

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Ravi Singh
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Vande Bharat
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वंदे भारत ट्रेन मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में से एक है। वैसे तो पीएम मोदी से लेकर मंडल अध्यक्ष तक वंदे भारत की  तारीफ करते हैं। लेकिन हकीकत इससे काफी अलग है। जैसे इस ट्रेन के संचालन हेतु भारतीय रेलवे या कहें रेल मंत्रालय ने कई तकनीकी पहलुओं को या तो छिपाया है। भारत की सर्वाधिक तेज गति से चलने वाली वंदे भारत ट्रैन को तमगा देना बेमानी है, क्योंकि अभी भी इसकी औसत स्पीड 90 किलोमीटर प्रति घंटा भी नहीं छू पा रही है। 

वंदे भारत ट्रेन चलाने से पहले इस हलू को किया दरकिनार 

सबसे पहले आपको बता दें कि जब भी किसी नई ट्रेन का संचालन शुरू किया जाता है, तब उसके लिए जरूरी स्पेयर पार्ट्स और अतिरिक्त रैक की व्यवस्था पहले होती है। जैसा कि नई कार खरीदने से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है की जरूरी स्पेयर पार्ट्स और सर्विस सेंटर का नेटवर्क कितना सुदृढ़ है। पर वंदे भारत ट्रेन चलाने से पहले इसी पहलू को दरकिनार किया गया।

 अतिरिक्त रैक नही हैं 

इसके कारण जब भी Vande Bharat Train के कोच में कोई तकनीकी समस्या आई तो दूसरी ट्रेन के कोच यानी डब्बे लगाकर वंदे भारत ट्रेन चलाई गई। उदाहरण है नई दिल्ली से वाराणसी चलने वाली Vande Bharat Train में तेजस एक्सप्रेस के कोच लगाकर चलाया गया। रेलवे ने तब तकनीकी समस्या कारण बताया था। सूत्रों ने बताया की वो समस्या काफी बड़ी थी। जिसे ठीक करने मे समय लग गया था। ऐसा ही नागपुर से बिलासपुर चलने वाली वंदे भारत ट्रेन में हुआ था।  ECR ने इसी समस्या का उल्लेख करके वंदे भारत ट्रेन के अतिरिक्त रैक की मांग की थी। किसको रेलवे बोर्ड ने मंजूर किया था। और बाद ने एक अतिरिक्त रैक दिया गया था। पर अभी कई जोन हैं जिनके पास इसके अतिरिक्त रैक नही हैं जैसे पश्चिम मध्य रेलवे।

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राजनीतिक लाभ के लिए इस ट्रेन को जल्दबाजी में शुरू किया गया। रेलवे से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जब पहली Vande Bharat Train चली थी, तक इसमें कई कमी थी। इस ट्रेन में वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली कंपनी के इंजीनियर का पूरा एक दल चलता था। यदि कोई समस्या आती थी तो वहीं ऑन स्पॉट उसको जुगाड़ करके सही कर देते थे। इस वक्त वंदे भारत में तेजस के कोच लगाने का एक कारण यह भी है की वंदे भारत ट्रेन के अतिरिक्त रैक नही दिए गए थे। मतलब यदि किसी जोन से चलने वाली वंदे भारत ट्रेन के डब्बों में कोई बड़ी तकनीकी खामी आ जाए तो इस ट्रेन को बंद करना पड़ेगा क्योंकि रैक उपलब्ध नहीं है। जैसा नागपुर बिलासपुर वंदे भारत ट्रेन के मामले में हुआ। पश्चिम मध्य रेलवे में भी कमोवेश यही स्थिति है।

पूर्वोत्तर रेलवे ने अतिरिक्त रैक की मांग की थी। जो हाल ही में पूरी हुई

अब दूसरी बड़ी समस्या यह है कि इसके संचालन में इतना दबाव है की रात के वक्त कम समय में इसका रूटिन मेंटेनेंस नहीं हो सकता है। रानी कमलापति से नई दिल्ली चलने वाली वंदे भारत ट्रेन रात में लगभग 1 बजे तक पिट लाइन में लगती है। जिसके बाद सुबह 4.30 बजे तक इसे दोबारा तैयार करके प्लेटफॉर्म में लगाना होता है। मतलब रात में लगभग 4 घंटे ही मिलते हैं जांच के लिए। ऐसे में बड़ी समस्या आने पर ट्रेन को शॉर्टकट तरीके से जुगाड़ करके चलाने की संभावना हो सकती है। क्योंकि पीट लाइन में मौजूद स्टाफ और इंजीनियरों के पास न तो पर्याप्त स्पेयर पार्ट्स होते हैं और न ही इन्हें कई पार्ट्स को खोलने या सुधारने की इजाजत होती है। जैसे बैटरी बॉक्स को रेलवे के इंजीनियर नहीं खोल सकते। इसको खोलने का अधिकार के कंपनी के लोगों को होता है।

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गौरतलब है की रानी कंपलापति से दिल्ली और रीवा से रानी कंपलापति स्टेशन के बीच चलने वाली Vande Bharat Train के बैटरी बॉक्स में आग लगने की घटना हुई थी। सूत्रों के अनुसार, बैटरी बॉक्स को रेलवे के इंजीनियर नहीं खोल सकता है। और यदि इसमें कोई गड़बड़ी हो तो वह पता भी नहीं चलता।  इसमें पहले कोई सेंसर भी नहीं लगा था। यानी बैटरी में कोई समस्या आ जाए, आज लग जाए या हीट होने लगे तो पता केबिन में ड्राइवर को कोई अलर्ट नहीं जाता था। हालांकि आग लगने की घटना के बाद अब सेंसर लगा दिया गया है। 

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पत्थर बाजी के कारण Vande Bharat Train में कांच टूटने की समस्या है। अब टूटे हुए कांच या यूं कहें की दरार वाले कांच भी एक रात के मेंटेनेंस में नहीं बदला जा सकता है, क्योंकि यह बाहर से लगे होते हैं। और इसको चिपकाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है। और इसके सूखने में कम से कम 24 घंटे लगते हैं। पर ट्रेन बनाने वाली कंपनी ने हाई स्पीड सिलिकॉन उपलब्ध करवाया है। जो 6 घंटे में सूख जाता है। इसका प्रगोय भी एक रात के समय में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसके लिए उस दिन का इंतजार करना होता है जिस दिन वंदे भारत ट्रेन की छुट्टी होती है। यानी हफ्ते  में एक दिन यह ट्रेन नहीं चलती। इस दिन कांच बदले जाते है। 

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वंदे भारत ट्रेन को जल्दी बनाने का दबाव था। इसलिए इसमें कई तकनीकी पहलुओं को पूरा करने का समय नहीं मिला। ज्यादा ट्रेन चलाने के लिए 16 कोच वाली Vande Bharat Train को 8 कोच करके एक ट्रेन से दो ट्रेन बना दिया है। आइसीएफ द्वारा वंदे भारत ट्रेन के प्रोटोटाइप बनाने वाली कंपनी के इंजीनियर हर स्टेशन की पीट लाइन पर मौजूद रहते हैं। इस ट्रेन को चले लगभग 4 साल हो गए है। बावजूद इसके रेलवे द्वारा जरूरी आवश्यकताओं की संपूर्ण पूर्ति नहीं की जा सकी है। 

एक और चौंकाने वाली बात है कि पहली ट्रेन के चलने के दिन से आज तक कई संरक्षा से जुड़ी कमियां सामने आ रहीं हैं। जबकि होना यह चाहिए था की इसमें तकनीकी उन्नयन हो जाना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हुआ। इसका प्रमुख कारण है जल्दबाजी में बनाई गई ट्रेन है।  रेलवे से सीआरएस मंजूरी एवं इसके संरक्षा मानकों से संबंधित सर्टिफिकेट के बारे में आरटीआई के माध्यम जानकारी मांगी गई है पर अभी तक रेलवे ने इसका जवाब नहीं दिया है। जिससे मामला थोड़ा संदेहास्पद हो गया है। 

 

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