सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ( Constitutional bench of Supreme Court ) ने सवाल किया है कि पिछड़ी जातियों ( backward castes ) में मौजूद संपन्न उप जातियों को आरक्षण की सूची से ‘बाहर’ क्यों नहीं किया जाना चाहिए ? और वो क्यों न सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करें! दरअसल मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ( Judge DY Chandrachud ) की अध्यक्षता वाली सात जजों की पीठ में शामिल जस्टिस विक्रम नाथ ( Justice Vikram Nath ) ने पूछा था कि ‘इन्हें आरक्षण सूची से निकाला क्यों नहीं जाना चाहिए?’ उन्होंने कहा, “इनमें से कुछ उप-जातियों ने बेहतर किया है और संपन्नता बढ़ी है। उन्हें आरक्षण से बाहर आना चाहिए और सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए।”
सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि ये संपन्न उप- जातियां आरक्षण के दायरे से बाहर निकलकर उन उप- जातियों के लिए अधिक जगह बना सकती हैं जो अधिक हाशिये पर या बेहद पिछड़ी हुई हैं। बेंच में शामिल जस्टिस बीआर गवई ( Justice BR Gavai ) ने कहा कि, “एक शख़्स जब IAS या IPS बन जाता है तो उसके बच्चे गांव में रहने वाले उसके समूह की तरह असुविधा का सामना नहीं करते हैं। फिर भी उनके परिवार को पीढ़ियों तक आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा।” जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि ये संसद को तय करना है कि ‘ताक़तवर और प्रभावी’ समूह को आरक्षण की सूची से बाहर करना चाहिए या नहीं?
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क्यों उठा आरक्षण का यह मामला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ इस सवाल का जवाब तलाश रही है कि क्या राज्य अनुसूचित जातियों ( SCHEDULED CASTE ) की श्रेणी में उप-जातियों की पहचान कर सकता है, जो अधिक आरक्षण के लायक हैं।
पंजाब सरकार ने दिया है ऐसा आरक्षण
दरअसल पंजाब सरकार ने इस पर जिरह करते हुए कहा है कि राज्य SCHEDULED CASTE की सूची में उप-जातियों की पहचान कर उन्हें सशक्त बनाने के लिए अधिक आरक्षण दे सकते हैं, क्योंकि ये हाशिये पर मौजूद पहली जातियों से भी बहुत पिछड़ी हैं। पंजाब के एडवोकेट- जनरल गुरमिंदर सिंह ने तर्क दिया कि अगर समुदाय सामान्य और पिछड़े वर्ग में बाँटे जा सकते हैं तो ऐसा पिछड़े समुदायों में भी किया जा सकता है। साथ ही यह भी जोड़ा कि अगर सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ी जातियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति है तो ऐसा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में करने की भी अनुमति हो सकती है।
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आखिर पंजाब ही क्यों कर रहा कोर्ट में बहस
पंजाब सरकार अपने कानून “ पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण)- क़ानून 2006” ( Punjab Scheduled Castes and Backward Classes (Reservation in Services) – Law 2006 ) के वैध होने का बचाव सुप्रीम कोर्ट में कर रहा है। इस कानून में वाल्मीकि और मजहबी सिख समुदायों को आरक्षण में प्राथमिकता दी गई है। SC - SCHEDULED CASTE का आधा आरक्षण पहले इन दो समूहों को दिया गया है। 2010 में राज्य के हाई कोर्ट ने इन प्रावधानों को खत्म कर दिया था और उसने ईवी चिन्नईया केस में पांच जजों की संवैधानिक पीठ के फैसले को इसका आधार बताया था। उस फैसले में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 के मुताबिक एससी सूची में किसी समूह को केवल राष्ट्रपति ही शामिल कर सकते हैं। बता दें कि संवैधानिक पीठ ने घोषित किया था कि एससी ‘सजातीय समूह’ है और उप-जातियां बांटना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। पंजाब के एडवोकेट- जनरल गुरमिंदर सिंह ने तर्क दिया है कि 2006 के कानून में उप-जातियां बांटना ‘समानता का उल्लंघन नहीं, बल्कि समानता के लिए सहायता के रूप में है।’ उन्होंने कहा कि ‘पिछड़ों में भी अति पिछड़ों या कमजोर में भी बेहद कमजोर’ को प्राथमिकता देना किसी को बाहर करने की प्रक्रिया नहीं है।