प्राचीन काल में छठ पूजा को किस नाम से जाना जाता था? जानें पूजा से जुड़ी वो बात जो कर देगी हैरान

छठ पर्व को प्राचीन काल में मुख्य रूप से सूर्य षष्ठी और छठी मैया की पूजा के नाम से जाना जाता था। व्रतियों का नदी या पोखर में खड़े रहना केवल धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि सूर्य की किरणों से आरोग्य और ऊर्जा लेने का गहरा वैज्ञानिक कारण है।

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Kaushiki
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Chhath Puja 2025
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Chhath Puja 2025: इस वर्ष 2025 में छठ पूजा का महान पर्व 25 अक्तूबर से शुरू होकर 28 अक्तूबर तक चलेगा। यह पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है बल्कि प्रकृति की शक्ति और सूर्य देव के प्रति असीम आभार व्यक्त करने का सबसे पवित्र विधान है।

यह चार दिवसीय महापर्व शुद्धता, संयम और तपस्या का प्रतीक है। इस पर्व की सबसे खास बात है उगते और डूबते सूर्य को नदी या पोखर के जल में खड़े होकर अर्घ्य देना।

आइए, जानते हैं कि इस पर्व को प्राचीन काल में किस नाम से जाना जाता था और व्रती ठंडे पानी में खड़े रहकर यह पूजा क्यों करते हैं, इसके पीछे का गहरा वैज्ञानिक रहस्य क्या है।

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छठ पूजा - विकिपीडिया

प्राचीन काल में छठ पर्व का नाम

छठ पर्व को, जो मुख्य रूप से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है प्राचीन काल में कई नामों से जाना जाता था:

  • सूर्य षष्ठी

    इस पर्व का सबसे प्रमुख और प्राचीन नाम सूर्य षष्ठी है। 'सूर्य' यानी सूर्य देव और 'षष्ठी' यानी छठा दिन। चूंकि यह पूजा तिथि के छठे दिन मनाई जाती है और इसका मुख्य आराध्य देव सूर्य हैं, इसीलिए इसे सूर्य षष्ठी कहा जाता था। इसका सीधा अर्थ है सूर्य देव की पूजा का छठा दिन।

  • छठी मैया की पूजा

    छठ पर्व में एक और प्रमुख देवी की पूजा होती है- वह हैं छठी मैया। यह माता संतान की रक्षक और दीर्घायु देने वाली मानी जाती हैं। ये प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसीलिए इस पर्व को कई जगह छठी मैया की पूजा के नाम से भी जाना जाता था। यह पूजा संतान की खुशहाली, सफलता और उत्तम स्वास्थ्य के लिए की जाती है।

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नदी या पोखर में खड़े रहने का वैज्ञानिक कारण

छठ महापर्व में व्रतियों का नदी या पोखर के ठंडे पानी में कमर तक खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देना छठ पर्व का सबसे कठिन और महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सिर्फ तपस्या नहीं है बल्कि इसके पीछे योग विज्ञान और आरोग्य से जुड़ा एक अद्भुत रहस्य छिपा है।

  • सूर्य की ऊर्जा का संचय

    छठ पूजा का महत्व जब सूर्य उदय हो रहा होता है या अस्त हो रहा होता है, तब उनकी किरणें सबसे कम तीव्र होती हैं। इन किरणों को पाराबैंगनी किरणें नहीं माना जाता, बल्कि ये शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होती हैं।

  • जल में स्थिर खड़े रहना: 

    जब व्रती कमर तक पानी में खड़े होते हैं तब उनका शरीर जल तत्व में डूब जाता है और शरीर का ऊपरी हिस्सा वायुमंडल में रहता है। जल में खड़े होने से शरीर का तापमान नियंत्रित होता है और शरीर शांत रहता है। इस स्थिति में, शरीर की ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।

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छठ पर्व क्यों मनाया जाता है?

  • विटामिन D का लाभ

    डूबते और उगते सूर्य की सीधी किरणें शरीर को पर्याप्त जीवनसत्त्व 'डी' प्रदान करती हैं, जो हड्डियों और रोग निरोधक क्षमता के लिए बहुत जरूरी है।

  • ठंडे पानी का प्रभाव

    कार्तिक माह में ठंडे पानी में खड़े रहने से शरीर को एक तरह का ताप मिलता है, जिससे रक्त संचार तेज होता है। इससे शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है और कई तरह के चर्म रोग दूर होते हैं।

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  • मन और बुद्धि की शुद्धि

    पानी में खड़े होकर सूर्य को प्रणाम करने की मुद्रा योग के समान है। इस मुद्रा में व्रती गहरी शांती और एकाग्रता महसूस करते हैं। यह क्रिया मन को शुद्ध करती है, मानसिक तनाव को दूर करती है और जीवन में सकारात्मकता लाती है। इस प्रकार, छठ पर्व में नदी या पोखर में खड़े होने का विधान धर्म, योग और प्राकृतिक विज्ञान का एक अद्भुत मिश्रण है, जो व्रतियों को शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से शक्ति प्रदान करता है।

छठ पर्व में व्रती अपनी संतान के उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए उनकी पूजा करते हैं। इस तरह, यह पर्व सूर्य षष्ठी और छठी मैया की पूजा दोनों के रूप में महत्वपूर्ण रहा है।

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