आषाढ़ अमावस्या पर कैसे करें तर्पण और पिंडदान, जानें पितृ दोष से मुक्ति पाने के प्रभावी उपाय

दर्श अमावस्या पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनकी आत्मा को शांति देने का महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन तर्पण, पिंडदान और दान-पुण्य से जीवन में सुख-समृद्धि और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

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Kaushiki
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Darsh Amavasya of Ashadh month
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हिन्दू धर्म में दर्श अमावस्या विशेष महत्व रखती है, जो आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को आती है। यह दिन पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने का दिन माना जाता है। विशेष रूप से इस दिन पितृ तर्पण और पिंडदान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

इसे मोक्ष प्राप्ति का दिन भी माना जाता है। इस दिन तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है। यह दिन व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है और जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जाता है।

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दर्श अमावस्या का महत्व

दर्श अमावस्या का नाम दर्श इसलिए पड़ा है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा पूरी रात आकाश में अदृश्य रहता है। यह दिन पितरों की आत्माओं के पृथ्वी पर आगमन और उनके आशीर्वाद के लिए समर्पित है।

इस दिन को लेकर मान्यता है कि इस दिन किए गए कार्यों से व्यक्ति के जीवन के सारे संकट दूर हो जाते हैं और सुख-शांति मिलती है।

कब है आषाढ़ अमावस्या

इस दिन तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मणों को भोजन कराने से पितरों को शांति मिलती है। पंचांग के मुताबिक, आषाढ़ माह की दर्श अमावस्या तिथि 24 जून, बुधवार को शाम 6:59 बजे प्रारंभ होगी।

ये 26 जून, गुरुवार को शाम 4:00 बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के मुताबिक, आषाढ़ माह की दर्श अमावस्या का प्रमुख पर्व और पूजा 25 जून, बुधवार को ही संपन्न होगी। 

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तर्पण और पिंडदान विधि

दर्श अमावस्या के दिन तर्पण और पिंडदान की विधि बहुत जरूरी माना जाता है। इसे सही तरीके से करने से पितरों को शांति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह विधि इस प्रकार है:

  • ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें
    दर्श अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि नदी में स्नान संभव न हो तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • तर्पण के लिए सामग्री तैयार करें
    एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल, काले तिल, जौ और गंगाजल डालें। साथ ही, कुश (पवित्र घास) को अपनी अनामिका उंगली में अंगूठी के रूप में या हाथ में पकड़ें।
  • दक्षिण दिशा की ओर बैठें
    तर्पण के समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें क्योंकि यह पितरों की दिशा मानी जाती है। अपने हाथ में जल, कुश और काले तिल लेकर तर्पण का संकल्प लें।
  • तर्पण विधि
    जल को अंगूठे और तर्जनी (अंगूठे के पास वाली उंगली) के बीच से धीरे-धीरे धरती पर छोड़ें। इसे 'पितृ तीर्थ' कहा जाता है। इसके बाद, अपने पितरों के नाम लेकर तीन बार जल की अंजलियां अर्पित करें। यदि नाम याद न हों तो “ॐ सर्व पितृ देवाय नमः” या “समस्त पितृभ्यो नमः, पितृभ्यो तर्पयामि” कहते हुए जल अर्पित करें।
  • पिंडदान करें
    तर्पण के बाद जौ के आटे, काले तिल और चावल को मिलाकर पिंड बनाएं और उन्हें पितरों को अर्पित करें।
  • दीपक जलाएं
    तर्पण के बाद एक दीपक जलाकर पितरों के नाम से प्रज्ज्वलित करें। यह दीपक पितरों को अर्पित किया जाता है ताकि उनकी आत्माओं को शांति मिले।
  • दान-पुण्य करें
    दर्श अमावस्या के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों, ब्राह्मणों और ज़रूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, काले तिल या धन का दान करें। इसके अलावा, पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं और उसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

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दर्श अमावस्या का लाभ

दर्श अमावस्या का महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन पितरों को श्रद्धा पूर्वक तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। इसके साथ ही, जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके लिए यह दिन विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।

तर्पण और पिंडदान से पितृ दोष के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। यह दिन विशेष रूप से दान-पुण्य करने और पवित्र कार्यों को अंजाम देने का है। इस दिन किए गए कार्यों से कई गुना पुण्य फल मिलता है, जो व्यक्ति को सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करता है।

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