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Latest Religious News:हिंदू धर्म में देव दीपावली का पर्व बहुत ही खास माना गया है। यह त्योहार हमारी मुख्य दीपावली के ठीक 15 दिन बाद, कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। पुराणों में बताया गया है कि इस दिन सभी देवी-देवता पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों के साथ दिवाली मनाते हैं।
इस बार एकादशी कब है 4 नवंबर को है या 5 नवंबर को इसे लेकर लोगों में थोड़ी दुविधा है। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक, देव दीपावली 5 नवंबर 2025 बुधवार को मनाई जाएगी।
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क्या है सही तिथि और मुहूर्त
हर साल देव दीपावली (Dev Diwali 2025) का पर्व कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को ही मनाया जाता है।
पूर्णिमा तिथि की शुरुआत: 4 नवंबर 2025 को रात 10 बजकर 36 मिनट पर।
पूर्णिमा तिथि का समापन: 5 नवंबर 2025 को शाम 07 बजकर 48 मिनट पर।
चूंकि देव दीपावली की पूजा शाम को, यानी प्रदोष काल में की जाती है। 5 नवंबर को पूरे दिन पूर्णिमा तिथि रहेगी, इसलिए 5 नवंबर को ही यह पर्व मनाना शुभ और शास्त्र सम्मत रहेगा।
देव दीपावली 2025 पूजन मुहूर्त
पंचांग के मुताबिक,
पूजा का समय: 5 नवंबर को शाम 5 बजकर 15 मिनट से शुरू होकर शाम 7 बजकर 50 मिनट तक रहेगा।
अवधि: पूजन के लिए कुल 2 घंटे 37 मिनट का शुभ समय मिलेगा।
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क्यों मनाई जाती है देव दीपावली
देव दीपावली को त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व के पीछे दो प्रमुख पौराणिक मान्यताएं हैं:
त्रिपुरासुर पर विजय:
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था। इस जीत की खुशी में सभी देवी-देवताओं ने स्वर्ग से उतरकर काशी में दीपक जलाकर खुशियां मनाई थीं, इसीलिए इसे देवों की दीपावली कहा जाता है।
कार्तिकेय का जन्मदिन:
कुछ मान्यताओं के मुताबिक, इस त्योहार को भगवान शिव के पुत्र कार्तिक महाराज के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन देवता अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं, इसलिए यह दिन शिव और विष्णु, दोनों की कृपा पाने के लिए बहुत खास है।
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देव दीपावली की सरल पूजन विधि
देव दीपावली के दिन सही विधि-विधान से पूजा करने से भगवान शिव और विष्णु, दोनों का आशीर्वाद मिलता है।
स्नान और दीप जलाना:
देव दीपावली के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। अगर नदी में न जा सकें, तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर घी या तिल के तेल का एक दीपक जलाएं।
शिव-विष्णु पूजा:
इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा पूरे विधि-विधान से करें। उन्हें फल, फूल, मिठाई अर्पित करें।
पाठ और मंत्र:
पूजा के दौरान शिव चालीसा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। शिव मंत्रों का जाप करना हर इच्छा पूरी करने वाला माना गया है।
दीपदान और आरती:
शाम के समय, पूजा के मुख्य मुहूर्त में, अपने घर के विशेष कोनों में, मंदिर में और तुलसी के पास मिट्टी के दीपक प्रज्वलित करें। अंत में भगवान शिव और विष्णु की आरती करें।
गंगा में दीपदान (वाराणसी विशेष):
यह पर्व वाराणसी (कार्तिक पूर्णिमा उत्सव) में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भक्त पवित्र गंगा में डुबकी लगाते हैं और संध्याकाल में गंगा के सभी घाटों पर लाखों मिट्टी के दीपक जलाते हैं, जिससे पूरा शहर रोशनी से जगमगा उठता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। धार्मिक अपडेट | Hindu News | dharm news today
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