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दीपावली का त्योहार सभी समाज को एक साथ लाता है। इस दिन सभी मिलजुलकर त्योहार का आनंद लेते हैं। दिवाली के पर्व पर अलग-अलग समाजों की आस्था और परंपराओं के अनेकों रंग देखने को मिलते हैं। आज हम आपको बताएंगे विभिन्न समाजों की दिवाली मनाने की अनोखी और अनूठी परंपराओं के बारे में।
दिवाली की पूजा के बाद कायस्थ समाज में चांदी के सिक्के पर गुड़ और शुद्ध घी लगाकर माता लक्ष्मी की प्रतिमा के माथे पर लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर कुछ देर बाद वह सिक्का गिरता है तो लक्ष्मी जी साल भर धन वर्षा का आशीर्वाद देती हैं।
दीपावली पर जैन समाज के लोग मोक्ष निर्वाण दिवस मनाते हैं। आपको बता दें कि 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का मोक्ष निर्वाण कार्तिक अमावस्या पर ही हुआ था। इसलिए दिवाली के पर्व पर जैन समाज के द्वारा भगवान महावीर की पूजा कर दीपक जलाए जाते हैं और उन्हें निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है।
दिवाली को सिख उनके 6वें गुरु हरगोविंद साहब की रिहाई के जश्न के रूप में मनाते हैं। जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहब को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था। उनकी रिहाई के वक्त कार्तिक मास में अमावस्या की रात थी, तब से ही सिख समाज दिवाली के दिन दाता बंदी छोड़ दिवस मनाता है।
गुजराती समाज में दिवाली के दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के साथ बही-खाता पूजन की जाती है। बही-खाता पूजन को चौपड़ा पूजन भी कहा जाता है।
समाज में हर साल नई प्रतिमा बनाई जाती है और पहली प्रतिमा को कुछ लोग कन्या के हाथों से पूजा घर में रखवाते हैं, तो कुछ लोग दिवाली के दिन प्रतिमा को मंदिर में पूजा के लिए दान कर देते हैं।
माता लक्ष्मी अग्रवाल समाज की कुल देवी हैं। इस दिन अग्रवाल समाज के लोग श्रीयंत्र की पूजा करते हैं और साथ में बही-खाता पूजन करने की परंपरा है।
दीपावली के दिन आमतौर पर माता लक्ष्मी को पूजा जाता है लेकिन, बंगाल में इस दिन मां काली की पूजा की जाती है। बंगाल में माता काली को बहुत माना जाता है। मां काली की पूजा के साथ रातभर जागरण किया जाता है और मंदिरों में दीप प्रज्वलित किए जाते हैं।
चौरसिया समाज में लक्ष्मी पूजन में पान पत्ते की बेल चढ़ाने की परंपरा है। समाज के आराध्य नाग देवता है। इसको नागबेल की तरह माना जाता है। पूजा में बेल चढ़ाते वक्त सुख समृद्धी की कामना की जाती है।
दीपावली पर मलयाली समाज में भगवान अय्यप्पा की पूजा की जाती है। यहां घरों और मंदिरों में दीपक जलाए जाते हैं और रंगोली भी सजाई जाती है।
माना जाता है कि दीपावली पर गौतम बुद्ध के प्रिय साथी अरहंत मुगलयान का निर्वाण हुआ था। गौतम बुद्ध भी दिवाली की तिथि पर ही तपस्या कर लौटे थे, इसलिए बौद्ध समाज में दीपावली पर बुद्ध वंदना कर दीपक जलाए जाते हैं।
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