गणेश चतुर्थी में क्यों लगाया जाता है गणपति बप्पा मोरया का जयकारा, क्या है इसका असली मतलब?

गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के पीछे की कहानी। जानें कैसे गणेश जी को मिला 'बप्पा' का नाम और 'मोरया' शब्द का क्या है ऐतिहासिक और आध्यात्मिक संबंध।

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Kaushiki
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गणेश चतुर्थी का महत्व: पूरे भारत में गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव है जो लोगों को एकजुट करता है।

ढोल-ताशों की गूंज, मोदक की खुशबू और भक्तिपूर्ण भजनों के साथ, हर जगह एक पवित्र और ऊर्जावान माहौल बन जाता है। खासकर, महाराष्ट्र में इसकी भव्यता देखने लायक होती है जहां गलियों और घरों में सजे पंडालों में बप्पा की मनमोहक प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं।

इस उत्सव का सबसे खास हिस्सा है 'गणपति बप्पा मोरया' का जयकारा, जिसे सुनकर हर कोई भक्ति और उमंग से भर जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस जयकारे का क्या महत्व है और इसके पीछे की कहानी क्या है? आइए जानें...

Why is it called Ganpati Bappa Maurya

क्यों कहते हैं गणपति को बप्पा

भारत में भगवान गणेश को प्यार से 'गणपति बप्पा' कहा जाता है। यह नामकरण उनके प्रति लोगों के गहरे स्नेह और सम्मान को दर्शाता है। 'बप्पा' शब्द मराठी भाषा में 'पिता' के लिए उपयोग होता है।

महाराष्ट्र के लोग गणेश जी को केवल एक देवता ही नहीं बल्कि एक संरक्षक और मार्गदर्शक मानते हैं, जो उनके परिवार के मुखिया या पिता के समान हैं।

इसी कारण उन्हें 'बप्पा' कहा जाने लगा। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Lokmanya Tilak) ने जब 1893 में गणेश उत्सव को एक सार्वजनिक त्योहार के रूप में शुरू किया तो इस नाम का प्रचलन और भी बढ़ गया।

उन्होंने इस उत्सव को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट करने का एक तरीका बनाया, जिससे 'गणपति बप्पा' का नाम हर घर और हर समुदाय तक पहुंच गया।

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मोरया नाम की अनूठी कहानी

'गणपति बप्पा' के साथ जुड़ा 'मोरया' शब्द भी अपने आप में एक गहरी कहानी समेटे हुए है। इस शब्द का संबंध एक महान गणेश भक्त से है, जिनका नाम मोरया गोसावी था। माना जाता है कि मोरया गोसावी का जन्म 1375 ईस्वी में महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में हुआ था और उन्हें भगवान गणेश का ही अंश माना जाता था।

मोरया गोसावी की भक्ति इतनी अटूट थी कि हर साल गणेश चतुर्थी पर वे अपने गांव चिंचवाड़ से लगभग 95 किलोमीटर दूर स्थित मयूरेश्वर मंदिर तक पैदल यात्रा करके गणेश जी के दर्शन करने जाते थे। उन्होंने अपनी 117 साल की लंबी उम्र तक इस कठिन यात्रा को जारी रखा।

जब उनकी शारीरिक शक्ति कम होने लगी और वे यात्रा करने में असमर्थ हो गए, तो एक रात भगवान गणेश स्वयं उनके सपने में प्रकट हुए। भगवान ने मोरया से कहा कि अब उन्हें मंदिर आने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे स्वयं उनके पास आएंगे।

अगली सुबह, जब मोरया गोसावी स्नान करके कुंड से बाहर आए, तो उन्होंने देखा कि उनके सामने बप्पा की एक छोटी सी मूर्ति रखी हुई है जैसी उन्होंने सपने में देखी थी। मोरया ने उस दिव्य मूर्ति को अपने गांव चिंचवाड़ में ही स्थापित किया।

धीरे-धीरे उनकी भक्ति और चिंचवाड़ में स्थापित यह मूर्ति दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गई। जो भक्त मयूरेश्वर नहीं जा पाते थे, वे मोरया गोसावी द्वारा स्थापित इस मंदिर में आने लगे।

उनकी भक्ति और आस्था से प्रभावित होकर, लोग गणेश जी का नाम लेते समय मोरया का नाम भी जोड़ने लगे। इसी से 'गणपति बप्पा मोरया' का जयकारा अस्तित्व में आया।

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बप्पा मोरया जयकारे का महत्व

गणेश चतुर्थी पर आखिर क्यों लगाया जाता है ये जयकारा| Why We Chant Ganpati  Bappa Morya|Kyu Ganpati Bappa Morya Kha Jata Hai

'गणपति बप्पा मोरया' (Ganpati bappa moriyaका जयकारा केवल एक नारा नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है।
गणपति: विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता।

  • बप्पा: पिता समान, जो भक्तों की हर बाधा को दूर करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं।
  • मोरया: महान भक्त मोरया गोसावी, जो सच्ची भक्ति और समर्पण का प्रतीक हैं।
  • यह जयकारा हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति और आस्था से भगवान को कहीं भी प्रकट किया जा सकता है। यह भक्त और भगवान के बीच के अटूट रिश्ते को दर्शाता है।
  • आज भी, जब भक्तगण गणेश जी की मूर्ति विसर्जन के लिए ले जाते हैं, तो यह जयकारा पूरे वातावरण को भक्ति से भर देता है। यह इस बात का प्रतीक है कि भक्त भगवान से अगले वर्ष फिर से आने का आग्रह कर रहे हैं। इस जयकारे के बिना बप्पा की पूजा अधूरी मानी जाती है।

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गणेश उत्सव की ऐतिहासिक शुरुआत

लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सव (Ganesh Chaturthi) की शुरुआत ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए की थी। उस समय ब्रिटिश सरकार ने सार्वजनिक सभाओं और राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा रखा था।

तिलक ने गणेश चतुर्थी को एक ऐसा मंच बनाया, जहां लोग बिना किसी रोक-टोक के एकत्र हो सकते थे और देशभक्ति के विचारों का आदान-प्रदान कर सकते थे।

यह एक तरह का अहिंसक प्रतिरोध था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पुणे में इस 10-दिवसीय उत्सव की शुरुआत की जो आज पूरे देश में मनाया जाता है। 'गणपति बप्पा मोरया' का जयकारा सदियों पुरानी परंपरा, आस्था और भक्ति की कहानी को बयां करता है। देश में गणेश चतुर्थी की धूम | गणपति बप्पा सेलिब्रेशन

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