महाभारत के कर्ण और द्रौपदी से क्यों जुड़ी है महापर्व छठ की कहानी, जानें इसकी पौराणिक कथा

लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा सिर्फ एक त्यौहार नहीं बल्कि सदियों पुरानी परंपरा है जिसका सीधा संबंध महाभारत काल से है। सूर्यपुत्र कर्ण का सूर्य को अर्घ्य देने का विधान और द्रौपदी का व्रत पांडवों को राजपाट वापस दिलाने की कहानी है।

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Kaushiki
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Chhath Puja
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Latest Religious News,धार्मिक अपडेट: हिंदू धर्म में छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का पर्व है। यह पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह व्रत किया जाता है, जिसमें व्रती कठिन नियमों का पालन करते हैं।

चार दिनों के इस व्रत में नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य शामिल हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह परंपरा शुरू कैसे हुई? पौराणिक कथाओं में इसके दो सबसे बड़े कारण महाभारत के दो महान पात्रों सूर्यपुत्र कर्ण और द्रौपदी से जुड़े हैं।

ये कहानियां न सिर्फ छठ पूजा के महत्व को बताती हैं बल्कि इस पर्व की गुणवत्ता को भी मजबूत करती हैं। आइए इस महापर्व से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में जानें...

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सूर्यपुत्र कर्ण और अर्घ्य की परंपरा

छठ पूजा के साथ महाभारत का सबसे पहला और मजबूत जुड़ाव सूर्यपुत्र कर्ण से माना जाता है। कर्ण, कुंती और सूर्य देव के पुत्र थे और वे अपने पिता सूर्य देव के परम भक्त थे। महाभारत की कथाओं के मुताबिक, अंगराज कर्ण रोज सुबह कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे।

माना जाता है कि कर्ण घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्य देव का ध्यान करते थे। उनकी इस अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव उन्हें विशेष शक्ति और आशीर्वाद देते थे।

इन्हीं आशीर्वादों से कर्ण एक महान और अजय योद्धा बने। तो छठ पूजा में नदी या तालाब के पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्यदान देने की जो परंपरा है वह सीधे-सीधे कर्ण की इसी उपासना से प्रेरित मानी जाती है।

लोग मानते हैं (Hindu News) कि छठ पूजा की शुरुआत सबसे पहले कर्ण ने ही की थी। ये कथा हमें सिखाती है कि छठ पर्व न सिर्फ भक्ति का प्रतीक है बल्कि शक्ति, वीरता और निस्वार्थता की भावना को भी दर्शाती है। छठ पर्व क्यों मनाया जाता है?

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द्रौपदी का व्रत और पांडवों को राजपाट की वापसी

छठ पूजा का दूसरा बड़ा जुड़ाव महाभारत की नायिका द्रौपदी से है। यह कहानी पांडवों के वनवास के समय की है जब वे हर तरह के दुख और संकट से घिरे थे। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब पांडव जुए में अपना सब कुछ, यहां तक कि अपना राजपाट भी हार गए थे और वन-वन भटक रहे थे तब उनकी स्थिति बहुत खराब थी।

उस समय, पांडवों के पुरोहित धौम्य ऋषि ने द्रौपदी को सूर्य देव और छठी मैया का व्रत करने की सलाह दी। धौम्य ऋषि ने कहा कि इस सूर्य उपासना से पांडवों के कष्ट दूर होंगे और उन्हें खोया हुआ साम्राज्य वापस मिल सकता है। द्रौपदी ने अपने पति पांडवों के उत्तम स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और खोए हुए राजपाट को वापस पाने की कामना से यह कठिन छठ व्रत पूरे विधि-विधान से किया।

कहते हैं कि द्रौपदी के इस व्रत के फलस्वरूप ही पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला और उनके जीवन के संकट दूर हुए। यह कथा छठ पूजा को एक ऐसा महापर्व बनाती है जो जीवन के हर कष्ट को हरने और हर मनोकामना को पूरा करने की शक्ति रखता है।

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सूर्य को धन्यवाद देने का पर्व

छठ पूजा (छठ पूजा का महत्व) जिसे सूर्य षष्ठी (Religious Festivals) भी कहा जाता है केवल एक क्षेत्रीय त्योहार नहीं है। यह प्रकृति के सबसे बड़े देवता सूर्य को धन्यवाद देने का पर्व है जो हमें जीवन, ऊर्जा और आरोग्य देते हैं।

कर्ण और द्रौपदी की कहानियां इस बात की गवाह हैं कि यह व्रत कठिन समय में भी उम्मीद की किरण जगाता है। आज भी छठ व्रत करने वाली हर व्रती अपने परिवार की खुशहाली, संतान सुख और दीर्घायु के लिए यह कठोर तप करती है। छठ पूजा हमें सिखाती है कि प्रकृति और उसके देवताओं के प्रति हमारा सम्मान और विश्वास ही हमारे जीवन का आधार है।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।

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