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चरणामृत हिंदू धर्म में एक पवित्र परंपरा है, जिसमें भगवान के चरणों से गिरा जल लिया जाता है। यह जल विशेष रूप से अमृत माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक चरणामृत का उपयोग केवल जल के रूप में नहीं बल्कि पंचामृत के रूप में भी किया जा सकता है।
इसमें दूध, दही, घी, शहद और शक्कर शामिल होते हैं। पूजा के समय भगवान की मूर्ति पर यह अमृत चढ़ाया जाता है और फिर भक्तों को चरणामृत के रूप में दिया जाता है, जो बहुत ही पवित्र माना जाता है।
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चरणामृत की धार्मिक मान्यता
चरणामृत भगवान के चरणों से प्राप्त जल होता है, जो बहुत पवित्र माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक, भगवान विष्णु के चरणों से गंगा का पानी निकलता है, जिसे सभी तीर्थों से भी पवित्र माना जाता है।
इसी तरह, शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव के अभिषेक से मिले जल भी मोक्ष देने वाला होता है। इसलिए चरणामृत को पवित्रता, आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर की कृपा का प्रतीक माना जाता है। इसे विशेष सम्मान के साथ ग्रहण किया जाता है।
इसे पीने के धार्मिक लाभ
शास्त्रों में इस अमृत को पीने के कई लाभ कथित हैं:
समस्त तीर्थों का फल
शास्त्रों में कहा गया है कि चरणामृत पीने से वह पुण्य मिलता है, जो तीर्थयात्रा, गंगा स्नान या यज्ञ में भाग लेने से मिलता है। यह पुण्यदायक जल कम प्रयास में अधिक पुण्य देता है।
पापों का नाश
इस अमृत की शक्ति के बारे में कहा जाता है कि इसमें पापों को नष्ट करने की क्षमता होती है। "चरणामृतं पानं पावनं पापनाशनम्" इस श्लोक के मुताबिक, इस अमृत को पीने से सभी पाप नाश हो जाते हैं।
मन और शरीर की शुद्धि
इस अमृत के तत्व जैसे दूध, घी, शहद, दही और शक्कर, आयुर्वेद के दृष्टि से अत्यंत गुणकारी होते हैं। ये शरीर को पोषण और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ मानसिक शांति और सात्त्विकता की अनुभूति कराते हैं।
ईश्वर कृपा की प्राप्ति
इस अमृत को श्रद्धा के साथ ग्रहण करने से भक्त के जीवन में ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्यक्ति की दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकता है।
घर में सुख-शांति का आगमन
यह माना जाता है कि जो घर नियमित रूप से चरणामृत का सेवन करते हैं, वहां सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और अशांति, रोग और कलह का नाश होता है।
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इसे ग्रहण करने के नियम
इस अमृत ग्रहण करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी होता है:
- स्नान या हाथ-पैर धोकर ग्रहण करें: इस अमृत को ग्रहण करने से पहले शुद्धता का ध्यान रखें। स्वच्छता बहुत ही जरूरी है।
- दाहिने हाथ से लें: हमेशा दाहिने हाथ से इस अमृत ग्रहण करें, क्योंकि यह शुभ और पवित्र माना जाता है।
- श्रद्धा के साथ पीएं: इसे श्रद्धा और भक्ति से ग्रहण करना चाहिए, न कि हल्के में।
- गिरे हुए पंचामृत को न लें: यदि ये गिर जाए तो उसे ग्रहण करना वर्जित माना जाता है, क्योंकि यह अशुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- ग्रहण के बाद मौन धारण करें: इसे ग्रहण करने के बाद कुछ समय तक मौन रहकर भगवान का स्मरण करना लाभकारी होता है। इससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।
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