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सनातन धर्म में एकादशी व्रत का एक विशेष और पवित्र महत्व है। हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के 11वें दिन पड़ने वाली एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। यह एक ऐसी तिथि है जिस पर पूरे देश में चावल का सेवन वर्जित माना जाता है।
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, एकादशी के दिन चावल खाने से पाप लगता है। लेकिन भारत में एक ऐसा अनोखा धाम है जहां इस नियम को पूरी तरह से उलट दिया गया है।
हम बात कर रहे हैं ओडिशा के विश्व प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर की, जहां एकादशी पर चावल का सेवन वर्जित नहीं है। बता दें कि यहां का प्रसाद यानी महाप्रसाद चावल से ही बनता है और इसे खाने की एक खास परंपरा है।
यह जानकर हर कोई हैरान रह जाता है कि आखिर एक ही धर्म में दो अलग-अलग नियम कैसे हो सकते हैं। तो इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा और कुछ वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। आइए, इस अनोखी परंपरा के पीछे के रहस्यों को गहराई से समझते हैं।
एकादशी पर क्यों नहीं खाते चावल
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, एकादशी (Ekadashi Tithi) पर चावल न खाने के कई कारण हैं। कहा जाता है कि जल तत्व के रूप में एकादशी (एकादशी पर पूजा) के दिन चावल शरीर में अधिक पानी जमा कर सकते हैं जिससे शरीर में भारीपन और आलस आता है।
यह व्रत में ध्यान और एकाग्रता को बाधित कर सकता है। इसके अलावा एक पौराणिक कथा के मुताबिक, माता एकादशी भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थीं।
एक बार जब भगवान विष्णु योग निद्रा में थे तो एकादशी माता ने एक राक्षस का वध कर दिया जिससे वह चावल में समा गया। इसलिए कहा जाता है कि एकादशी पर चावल खाने से उस राक्षस का सेवन होता है। यही कारण है कि देशभर में इस दिन चावल का सेवन वर्जित माना जाता है।
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श्री जगन्नाथ पुरी में क्यों खाते हैं चावल
जगन्नाथ पुरी में एकादशी पर चावल खाने की परंपरा के पीछे एक अनूठी कहानी है, जो इस धाम की विशिष्टता को दर्शाती है।
महाप्रसाद का निरादर: एक प्रचलित कथा के मुताबिक, एक बार एकादशी माता ने भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद का निरादर कर दिया। जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद को भगवान जगन्नाथ का साक्षात स्वरूप माना जाता है और इसका निरादर करना स्वयं भगवान का निरादर करने के बराबर है। इस गलती के लिए, भगवान विष्णु ने उन्हें दंडित किया।
उल्टे लटके हुए हैं एकादशी माता: ऐसी मान्यता है कि दंड स्वरूप एकादशी माता को भगवान ने अपने धाम के पास उल्टा लटका रखा है। इस कारण, यहां एकादशी का नियम उल्टा हो गया है। यानी जहां पूरे देश में लोग एकादशी पर चावल खाने से बचते हैं, वहीं जगन्नाथ पुरी में भक्त भगवान के महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए चावल का सेवन करते हैं। यह एक तरह से भगवान की इच्छा का पालन करना है चाहे वह एकादशी का दिन ही क्यों न हो।
इस कथा के अलावा, यह भी कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद को इतना पवित्र माना जाता है कि इसे ग्रहण करने पर कोई दोष नहीं लगता। भक्तों के लिए यह प्रसाद स्वयं भगवान का आशीर्वाद है और किसी भी नियम से बढ़कर इसका महत्व है।
सिर्फ मंदिर नहीं, एक आध्यात्मिक अनुभव है जगन्नाथ पुरी
श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है बल्कि यह एक ऐसा धाम है जो लाखों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यहां भगवान विष्णु अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं।
मंदिर में दिन में चार बार भोग लगाया जाता है जिसे बेहद खास और पवित्र माना जाता है। इस धाम का एक और चमत्कार यह है कि यहां भगवान को अर्पित होने वाला महाप्रसाद कभी व्यर्थ नहीं जाता, चाहे भक्तों की संख्या कितनी भी हो। यह अपने आप में एक अद्भुत घटना है।
जगन्नाथ धाम का दर्शन करने के साथ-साथ यहां का महाप्रसाद लेना हर भक्त के लिए एक अनिवार्य हिस्सा है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यह प्रसाद न केवल पेट भरता है बल्कि आत्मा को भी तृप्त करता है।
चावल के अलावा, इस महाप्रसाद में दाल, सब्जियां और कई अन्य व्यंजन भी होते हैं जो मंदिर के अनूठे रसोईघर में बनाए जाते हैं। इस रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में से एक माना जाता है जहां एक के ऊपर एक रखे गए बर्तनों में खाना पकता है।
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कैसे पहुंचें जगन्नाथ पुरी
जगन्नाथ पुरी [Jagannath Puri Temple] की यात्रा करना अब बहुत आसान है, क्योंकि यह भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
हवाई मार्ग से: सबसे पास का हवाई अड्डा भुवनेश्वर का बीजू पटनायक इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जो पुरी से लगभग 60 किमी दूर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी, कैब या बस से सीधे पुरी पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग से: पुरी रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों से पुरी के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी केवल 2-3 किमी है, जिसे ऑटो-रिक्शा या साइकिल-रिक्शा से आसानी से तय किया जा सकता है।
सड़क मार्ग से: पुरी, ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। भुवनेश्वर से पुरी की दूरी लगभग 60 किमी है, जिसे निजी वाहन या बस से 1.5-2 घंटे में तय किया जा सकता है।
जगन्नाथ पुरी में क्या-क्या देखें
श्री जगन्नाथ मंदिर: यह मुख्य आकर्षण है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को समर्पित यह मंदिर भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है। यहां का महाप्रसाद और मंदिर की अनोखी परंपराएं जरूर देखें।
पुरी बीच: मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित पुरी बीच एक शांत और सुंदर जगह है। यहां आप समुद्र तट पर टहल सकते हैं, सूर्यास्त का नजारा देख सकते हैं और पारंपरिक कलाकृतियां खरीद सकते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर: पुरी से करीब 35 किमी दूर स्थित यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) है। 13वीं सदी में बना यह मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला और पत्थर पर बनी कलाकृतियों के लिए प्रसिद्ध है।
चिल्का झील: एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील चिल्का पुरी के पास ही है। यहां आप बोटिंग का मजा ले सकते हैं और प्रवासी पक्षियों को देख सकते हैं। यह पक्षी प्रेमियों के लिए एक शानदार जगह है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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