जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल ओडिशा के पुरी में आयोजित होती है और इस साल यह 27 जून से शुरू होगी। इस अवसर पर भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्र को आकर्षक रथों पर सवारी कराई जाती है।
रथ यात्रा के दौरान श्रद्धालु अपने देवता के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में जुटते हैं। इस महापर्व में रथ यात्रा के अलावा, महाप्रसाद का महत्व भी अत्यधिक है, जिसे पुरी के मंदिर में बड़े श्रद्धा भाव से तैयार किया जाता है। आइए जानें...
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महाप्रसाद बनाने की अजीब परंपरा
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में महाप्रसाद बनाने की प्रक्रिया बिल्कुल अद्भुत है। यहां भगवान जगन्नाथ के रसोईघर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है, जहां लगभग 500 रसोइए और 300 सहयोगी मिलकर महाप्रसाद तैयार करते हैं।
इन रसोइयों के द्वारा तैयार किया गया प्रसाद लाखों भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। खास बात यह है कि यहां मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद तैयार किया जाता है और सबसे ऊपर का बर्तन पहले पकता है, जिसके बाद अन्य बर्तन एक के बाद एक पकते हैं।
मुख्य प्रसाद होता है भात
मुख्य प्रसाद का नाम भात (चावल) है। हालांकि यहां 56 प्रकार के भोग बनाए जाते हैं, लेकिन भात को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है।
इस प्रसाद को खासतौर पर मिट्टी के सात बर्तनों में पकाया जाता है। एक कहावत भी है, “जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ” यानी भगवान जगन्नाथ का भात इतना स्वादिष्ट और पवित्र होता है कि हर कोई इसे प्राप्त करने के लिए तत्पर रहता है।
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कैसे पकता है महाप्रसाद
महाप्रसाद पकाने की प्रक्रिया में सात बड़े बर्तन होते हैं, जो एक के ऊपर एक रखे जाते हैं। इन बर्तनों में सबसे ऊपर का बर्तन पहले पकता है और उसके बाद नीचे के बर्तन क्रमशः पकते जाते हैं।
इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह होता है कि भगवान को सर्वोत्तम और पहले प्रसाद चढ़ाया जाए। सबसे ऊपर का बर्तन छोटा और संकरा होता है, जबकि नीचे का बर्तन बड़ा होता है।
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प्रसाद का वितरण
जगन्नाथ मंदिर में रोजाना 20 हजार से 50 हजार लोगों के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है। खासतौर पर रथ यात्रा के दौरान जब बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं, तब भी प्रसाद की कमी नहीं होती है। हर भक्त को प्रसाद मिलता है, जो मां लक्ष्मी की देख-रेख में पकाया जाता है।
महाप्रसाद का धार्मिक महत्व
महाप्रसाद को मां लक्ष्मी के संरक्षण में पकाने की परंपरा है, और इसे पहले विमलादेवी (मां पार्वती) के मंदिर में चढ़ाया जाता है, फिर भगवान जगन्नाथ को अर्पित किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया भगवान के प्रति श्रद्धा, समर्पण और भक्तों के लिए आशीर्वाद का प्रतीक मानी जाती है।
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