आरती हिंदू धर्म में पूजा का एक अभिन्न हिस्सा है, जो भगवान के प्रति श्रद्धा, प्रेम और आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। जब पूजा समाप्त हो जाती है, तो आरती के माध्यम से भगवान के समक्ष घी का दीया घुमाया जाता है। यह क्रिया न केवल धार्मिक है, बल्कि यह वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इसमें उपयोग की जाने वाली कपूर, घी और धूप की सुगंध हमारे वातावरण को शुद्ध करती है, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। मान्यताओं के मुताबिक, आरती के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है और यह पूजा का फल प्राप्त करने के लिए जरूरी होती है। आरती से भगवान की उपस्थिति को महसूस किया जाता है और साथ ही यह भक्तों के मन को शुद्ध भी करती है।
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आरती शब्द का धार्मिक अर्थ
‘आरती’ शब्द संस्कृत के ‘आरात्रिक’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है अंधकार का नाश करने वाली क्रिया। जब पूजा के अंत में आरती की जाती है, तो भगवान के समक्ष दीपक, कपूर या घी का दीपक घुमाया जाता है। इसे भगवान के स्वागत और विदाई का प्रतीक माना जाता है। यह क्रिया भक्त के हृदय से गहरे प्रेम और श्रद्धा को दर्शाती है।
पुराणों में आरती का महत्व
पुराणों में आरती को भगवान की सेवा का एक श्रेष्ठ रूप बताया गया है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण और भागवत पुराण जैसे शास्त्रों में इसे ईश्वर के प्रति भक्ति का एक श्रेष्ठ तरीका माना गया है। इन शास्त्रों के मुताबिक, आरती भगवान की उपस्थिति को स्थिर करती है और भक्तों के दिलों को शुद्ध करती है। पूजा के बाद आरती करने से न केवल पूजा की पूर्णता होती है, बल्कि यह भक्त के मन को भी शांत करता है और उसकी आंतरिक भावना को प्रकट करता है।
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आरती के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
धार्मिक दृष्टिकोण से
आरती को भगवान का स्वागत और विदाई दोनों माना जाता है। यह प्रक्रिया पूजा के समापन को दर्शाती है और भक्त की आस्था को भगवान तक पहुंचाती है। यह भगवान की ज्योति का दर्शन करने का एक शुभ समय होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ऐसा माना जाता है कि, आरती में उपयोग होने वाले कपूर, घी और दीपक से निकलने वाली सुगंध और धुआं वातावरण को शुद्ध करने का कार्य करते हैं। इसके अलावा, घंटी या शंख की ध्वनि से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और नकारात्मकता दूर होती है।
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आरती कैसे की जाती है
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, आरती की शुरुआत कपूर, घी या तेल के दीपक को थाली में जलाकर भगवान की प्रतिमा या तस्वीर के सामने घुमाने से होती है। यह दीपक पहले चार बार भगवान के चरणों में, फिर दो बार नाभि के पास और एक बार मुख में घुमाया जाता है। इसके बाद सात बार पूरे शरीर के चारों अंगों के पास दीपक घुमाया जाता है। शंख और घंटी की ध्वनि के साथ यह प्रक्रिया और भी शुभ बन जाती है। आरती के बाद दीपक की लौ को सिर में घुमा कर, उसे माथे से लगाना भी शुभ माना जाता है।
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