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हर साल जब भी जन्माष्टमी आती है तो पूरे देश में एक अलग ही उत्साह और भक्ति का माहौल बन जाता है। इस दिन आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है। चारों ओर जय कन्हैया लाल की के नारे गूंजते हैं और भक्त अपने लड्डू गोपाल के स्वागत की तैयारियों में जुट जाते हैं।
क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि कई जगहों पर कान्हा का जन्म कराने के लिए डंठल वाले खीरे का इस्तेमाल किया जाता है? यह एक ऐसी अनोखी और खूबसूरत परंपरा है, जिसके पीछे एक गहरा धार्मिक और भावनात्मक कारण छिपा है।
बहुत से लोग इस खास रस्म को देखकर हैरान रह जाते हैं कि आखिर खीरे से जन्म क्यों कराया जाता है, क्या है इसका धार्मिक महत्व और इस पूरी प्रक्रिया को करने का सही तरीका क्या है। तो आज हम इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे और आपको बताएंगे कि कैसे एक साधारण सा खीरा इस महान पर्व का एक अभिन्न अंग बन जाता है।
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खीरे से क्यों कराते हैं श्रीकृष्ण का जन्मखीरे से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कराने की इस परंपरा का संबंध मां देवकी से है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब एक बच्चे का जन्म होता है तो उसे उसकी मां से अलग करने के लिए गर्भनाल काटी जाती है। ठीक उसी तरह, जन्माष्टमी पर डंठल वाले खीरे को भगवान श्रीकृष्ण की गर्भनाल माना जाता है। कुछ जगहों पर, भक्त खीरे को बीच से काटकर उसके अंदर से सारा गूदा निकाल लेते हैं। फिर उसके अंदर लड्डू गोपाल की छोटी सी मूर्ति रखकर उसे बंद कर देते हैं। रात 12 बजे, खीरा खोलकर मूर्ति को बाहर निकालते हैं, जिसे भगवान का जन्म माना जाता है। यह भी इस रस्म को निभाने का एक तरीका है। |
नाल छेदन की अनोखी रस्म
खीरे के डंठल को उसके फल से अलग करने की प्रक्रिया को नाल छेदन के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रतीकात्मक रस्म है, जो भगवान श्रीकृष्ण (कब है जन्माष्टमी) को उनकी मां देवकी के गर्भ से अलग करने का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस रस्म को आधी रात को ठीक 12 बजे किया जाता है, जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
इस समय, एक सिक्के की मदद से खीरे के डंठल को सावधानी से अलग किया जाता है, जिसके बाद ही भगवान के जन्म का जश्न शुरू होता है। यह एक बहुत ही भावनात्मक पल होता है, जिसे लोग बहुत ही श्रद्धा और हर्ष के साथ मनाते हैं।
डंठल वाले खीरे का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस रस्म के लिए सिर्फ डंठल वाले खीरे का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है, इसके पीछे भी यही कारण है। डंठल इस बात का संकेत होता है कि खीरा अभी भी अपने पौधे से जुड़ा हुआ है, ठीक उसी तरह जैसे बच्चा अपनी मां से गर्भनाल के जरिए जुड़ा होता है।
इस डंठल वाले खीरे को काटकर, भक्त इस बात का अनुभव करते हैं कि कैसे मां देवकी ने अपने लाडले को जन्म दिया होगा। यह परंपरा भगवान के भक्तों को उस दिव्य जन्म से और भी गहराई से जोड़ती है।
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खीरे से श्रीकृष्ण का जन्म कराने की सही विधि
अगर आप इस साल जन्माष्टमी पर यह खास रस्म निभाना चाहते हैं, तो आपको इसकी सही विधि पता होनी चाहिए। इसे पूरे मन और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए।
- सही खीरा चुनें: सबसे पहले, एक डंठल वाला खीरा लें। खीरा जितना ताजा और बड़ा होगा, उतना ही अच्छा माना जाएगा। यह सुनिश्चित करें कि डंठल टूटा हुआ न हो।
- पूजा स्थल की तैयारी: रात के 12 बजने से पहले, अपने पूजा स्थल को सजाएं। भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या बाल गोपाल को पालने में स्थापित करें। पूजा की सारी सामग्री जैसे माखन-मिश्री, पंजीरी और खीरे को पूजा में रखें।
- आधी रात का इंतजार: जैसे ही घड़ी में ठीक 12 बजें, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का समय आता है।
- नाल छेदन की रस्म: अब, एक सिक्का लें और उससे बहुत सावधानी से खीरे के डंठल को खीरे से अलग करें। यह प्रक्रिया करते समय, मन में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें।
- शंख बजाएं: जैसे ही डंठल अलग हो जाए, शंख बजाकर भगवान के जन्म का स्वागत करें। यह इस बात का संकेत है कि बाल गोपाल (Bal Gopal) का जन्म हो चुका है।
- प्रसाद वितरण: इस रस्म के बाद, खीरे को प्रसाद के रूप में काट लें और उसे सभी लोगों में बांट दें।
प्रसाद और खीरे का वैज्ञानिक महत्व
जन्माष्टमी पर जो प्रसाद चढ़ाया जाता है, उसका सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी है। यह विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए फायदेमंद होता है, जिन्होंने व्रत (जन्माष्टमी में पूजा विधि) रखा है या जो गर्भवती हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए खीरे का प्रसाद
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव जन्माष्टमी के बाद खीरे का प्रसाद घर की गर्भवती महिलाओं को देना बहुत शुभ माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इसे खाने से उन्हें भगवान श्रीकृष्ण जैसा तेजस्वी और सुंदर बच्चा प्राप्त हो सकता है। यह एक तरह से भगवान से आशीर्वाद मांगने की परंपरा है।
विज्ञान की दृष्टि से खीरा
जिस समय जन्माष्टमी (shri krishna janmashtami) का पर्व आता है, वह अक्सर उमस भरा मौसम होता है। ऐसे में खीरा शरीर को हाइड्रेटेड रखने में बहुत मदद करता है।
खीरा विटामिन सी, ए, के, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन और जिंक का अच्छा सोर्स होता है। यह सभी पोषक तत्व गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होते हैं। इस तरह, भगवान के प्रसाद के जरिए सेहत का भी ध्यान रखा जाता है।
अन्य प्रसाद का भी वैज्ञानिक महत्व
जन्माष्टमी पर माखन-मिश्री, पंजीरी, खीर और पंचामृत जैसे प्रसाद भी चढ़ाए जाते हैं।
- माखन-मिश्री: माखन में विटामिन A, E और K होता है, जो शरीर के लिए अच्छा है। मिश्री पाचन (digestion) में मदद करती है।
- पंजीरी: धनिया से बनी पंजीरी पाचन तंत्र को मजबूत करती है और यह प्रसूता महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है।
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बना पंचामृत शरीर को पोषण देता है और एनर्जी देता है।
तो जन्माष्टमी पर खीरे से श्रीकृष्ण का जन्म कराना एक बहुत ही प्यारी और प्रतीकात्मक रस्म है। यह हमें न सिर्फ भगवान की लीलाओं की याद दिलाती है, बल्कि प्रकृति और स्वास्थ्य के साथ हमारे संबंध को भी दर्शाती है।
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