भगवान श्रीकृष्ण को क्यों चढ़ाया जाता है छप्पन भोग, क्या है इसके पीछे की रोचक कथाएं

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग चढ़ाने की परंपरा भक्तों की अपार श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। यह परंपरा गोवर्धन पूजा और गोपियों के प्रेम से जुड़ी कथाओं से प्रेरित है, जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और समर्पण को दर्शाती है।

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Kaushiki
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सनातन धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है, का विशेष महत्व है। यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन बड़े ही हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है।

इस दिन भक्तजन शालिग्राम या लड्डू गोपाल के रूप में उनकी पूजा करते हैं और कुछ व्रत-उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण से विशेष प्रार्थना करते हैं।

हिंदू धर्मशास्त्रों में चार रात्रियों का विशेष महत्व बताया गया है: शिवरात्रि जिसे महारात्रि कहते हैं, दीपावली जिसे कालरात्रि कहते हैं, होली अहोरात्रि है और कृष्ण जन्माष्टमी को मोहरात्रि कहा गया है।

इस दिन रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करने से जातक को विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। इस बार जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। ऐसे में आइए आज हम जानते हैं कि श्रीकृष्ण को छप्पन भोग ही क्यों चढ़ाते हैं।

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कब है कृष्ण जन्माष्टमी 2025

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पंडित संतोष शर्मा के मुताबिक, अष्टमी तिथि 15 अगस्त 2025 को रात 11 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी और 16 अगस्त को रात 09 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी।

इस साल अष्टमी तिथि के प्रारंभ और रोहिणी नक्षत्र के योग के कारण, कृष्ण जन्माष्टमी [Krishna Janmashtami] का त्योहार दो दिन मनाया जाएगा: 15 अगस्त और 16 अगस्त 2025।

  • जो भक्त 15 अगस्त को जन्माष्टमी व्रत रखेंगे: वे 16 अगस्त को पारण करेंगे
  • जो भक्त 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे: वे 17 अगस्त को व्रत का पारण करेंगे
  • भक्त अपनी मान्यताओं और परंपराओं के मुताबिक, इन दोनों में से किसी भी दिन व्रत रख सकते हैं और भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मना सकते हैं।

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पूजन मुहूर्त

ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, इसलिए इस दिन निशिता पूजा का विशेष महत्व होता है। 

  • 16 अगस्त को निशिता मुहूर्त: सुबह 12 बजकर 09 मिनट से सुबह 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। इस पूजन की कुल अवधि 44 मिनट की है। मध्य रात्रि का क्षण 16 अगस्त को सुबह 12 बजकर 31 मिनट है।
  • 17 अगस्त को निशिता पूजा का समय: रात 12 बजकर 04 मिनट से सुबह 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। इस पूजन की कुल अवधि 43 मिनट की है।
  • भक्त अपनी सुविधा और परंपरा के अनुसार इन शुभ मुहूर्तों में लड्डू गोपाल की पूजा कर सकते हैं।

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श्रीकृष्ण को क्यों चढ़ाते हैं भोग

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जैसे- भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के संयोग मात्र से ही बंदीगृह के सभी बंधन अपने-आप ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए और मां यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठीं।

ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को मोह लेने वाला अवतार माना गया है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने की एक अनूठी परंपरा है।

कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर छप्पन भोग ही क्यों चढ़ाते हैं? जिसका जवाब बहुत कम लोगों को मालूम है। दरअसल, इसके पीछे दो रोचक कथाएं जुड़ी हैं, जिनके बारे में आपको भी जानना चाहिए। आइए जानें 

भगवान श्री कृष्ण को क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग? जानें पौराणिक कथा - why chappan  bhog is offered to lord krishna - News18 हिंदी

छप्पन भोग की परंपरा

छप्पन भोग केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा धार्मिक और भावनात्मक महत्व छिपा है। यह भगवान के प्रति भक्तों की अटूट श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है।

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कथा-1: गोपियों का प्रेम और छप्पन व्यंजन

प्रचलित कथाओं के मुताबिक, एक बार गोकुल की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए एक माह तक लगातार यमुना नदी में स्नान किया और माता कात्यायनी की पूजा की। उनकी एकमात्र इच्छा थी कि श्रीकृष्ण ही उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार करें।

जब यह बात श्रीकृष्ण को पता चली, तो उन्होंने सभी गोपियों को उनकी इच्छा पूरी होने का आश्वासन दिया। श्रीकृष्ण के इस आश्वासन से खुश होकर, गोपियों ने उनके प्रति अपनी असीम भक्ति और प्रेम को व्यक्त करने के लिए, अलग-अलग छप्पन प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाएं और उन्हें प्रेमपूर्वक भोग लगाया। यह उनकी श्रद्धा और आभार का प्रतीक था कि उनके आराध्य ने उनकी मनोकामना पूरी की।

सीख:

यह कथा दर्शाती है कि भगवान के प्रति सच्चा प्रेम और भक्ति किस प्रकार फलदायी होती है। गोपियों का निःस्वार्थ प्रेम और उनकी एकाग्रता उन्हें भगवान के करीब ले आई और बदले में उन्होंने अपने हाथों से तैयार किए गए व्यंजनों का भोग लगाकर अपनी खुशी व्यक्त की। यह परंपरा भक्तों को भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार व्यक्त करने के लिए प्रेरित करती है।

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कथा-2: गोवर्धन पर्वत और इंद्र का अभिमान भंग

सबसे प्रचलित कथा के मुताबिक, माता यशोदा अपने बाल गोपाल, श्रीकृष्ण को रोज आठों पहर यानी दिन में 8 बार भोजन कराती थीं। उनकी मां उन्हें कभी भूखा नहीं रहने देती थीं। लेकिन एक बार श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा कराए जाने पर देवराज इंद्र बृजवासियों से नाराज हो गए।

इंद्र को यह बात अच्छी नहीं लगी कि बृजवासियों ने उनकी पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की। क्रोध में उन्होंने बृज पर घनघोर वर्षा बरसाई, ताकि बृजवासी माफी मांगने पर मजबूर हो जाएं और उनका अभिमान टूट जाए।

बृजवासियों की रक्षा के लिए, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी बृजवासियों को इसी पर्वत के नीचे आने को कहा।

कथा के मुताबिक, श्रीकृष्ण ने लगातार 7 दिनों तक बिना खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा जिससे इंद्र का सारा पानी बेकार चला गया और बृजवासी सुरक्षित रहे। सातवें दिन जब इंद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ, तो उन्होंने खुद क्षमा मांगी और वर्षा रोक दी।

जब बारिश रुकी, तब उनकी मां यशोदा ने बृजवासियों और अन्य भक्तों के संग मिलकर, उन्होंने 7 दिनों के 8 पहर के हिसाब से कान्हा के लिए छप्पन भोग बनाए।

यह भगवान के प्रति उनके प्रेम और चिंता का प्रतीक था, क्योंकि वे चाहते थे कि 7 दिनों तक भूखे रहे कान्हा को एक ही बार में उन सभी पहरों का भोजन मिल जाए जो उन्होंने नहीं किया था। तभी से श्रीकृष्ण की पूजा में उन्हें छप्पन व्यंजनों का महाभोग लगाने की परंपरा चली आ रही है।

सीख: यह कथा कई महत्वपूर्ण सीख देती है:

  • प्रकृति का सम्मान: गोवर्धन पूजा प्रकृति के सम्मान का प्रतीक थी, जिसके लिए इंद्र क्रोधित हुए
  • अहंकार का पतन: इंद्र के अभिमान को श्रीकृष्ण ने अपनी लीला से भंग किया
  • भक्तों की रक्षा: भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं
  • अखंड भक्ति: छप्पन भोग मां यशोदा और बृजवासियों की अखंड भक्ति और प्रेम का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि भक्त अपने भगवान के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

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छप्पन भोग का महत्व

छप्पन भोग केवल व्यंजनों की संख्या नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्तों की अपार श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि हम अपने जीवन में मिले हर वस्तु के लिए ईश्वर का धन्यवाद करें और उसे अर्पित करें।

यह एक प्रकार से अपनी संपूर्णता को भगवान के चरणों में समर्पित करने का भाव है। आज के समय में जहां जीवन शैली बदल गई है, लोग अभी भी इस परंपरा को बड़ी श्रद्धा के साथ निभाते हैं।

चाहे वे सभी 56 व्यंजन स्वयं न बना पाएं, पर वे अपनी सामर्थ्य मुताबिक अलग-अलग तरह के पकवान बनाकर भगवान को भोग लगाते हैं। यह दर्शाता है कि परंपराएं समय के साथ विकसित होती हैं पर उनका मूल भाव, यानी ईश्वर के प्रति समर्पण वही रहता है।

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