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हर साल श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि जयंती मनाने की परंपरा है। यह पावन पर्व भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार, भगवान कल्कि को समर्पित है।
ऐसी मान्यता है कि कलियुग में जब पाप अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाएगा, तब धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान कल्कि का अवतरण होगा।
वे सफेद घोड़े पर सवार होकर आएंगे और अधर्मियों का नाश करेंगे। यह महत्वपूर्ण पर्व आज बुधवार 30 जुलाई को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जा रहा है।
तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के मुताबिक, कल्कि जयंती श्रावण शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। इस बार षष्ठी तिथि का प्रारंभ 30 जुलाई की रात 12 बजकर 46 मिनट पर होगा और इसका समापन 31 जुलाई की रात 02 बजकर 41 मिनट पर होगा। इस दिन भगवान कल्कि की पूजा का शुभ मुहूर्त विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
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पूजन विधि
इस दिन भगवान विष्णु के दसवें अवतार की पूजा-अर्चना बहुत जरूरी मानी जाती है।
- सुबह का स्नान और संकल्प: कल्कि जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ हो जाएं। हल्के और साफ रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद, हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें। यदि आप व्रत नहीं रख रहे हैं, तो भी पूजा का संकल्प अवश्य लें।
- मूर्ति स्थापना: यदि आपके पास भगवान कल्कि की प्रतिमा उपलब्ध नहीं है, तो आप भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित कर सकते हैं। भगवान कल्कि को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा भी मान्य है।
- जलाभिषेक और तिलक: स्थापित मूर्ति या चित्र का पवित्र जल से जलाभिषेक करें। इसके बाद, कुमकुम से श्रीहरि को तिलक लगाएं।
- अक्षत और पुष्प अर्पित करें: भगवान को अक्षत अर्पित करें। ध्यान रहे कि भगवान विष्णु को कभी भी टूटे हुए चावल नहीं चढ़ाने चाहिए, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है। इसके बाद, भगवान को ताजे फल-फूल, अबीर और गुलाल आदि अर्पित करें।
- दीपक प्रज्वलित करें: भगवान के समक्ष तेल या घी का दीपक प्रज्वलित करें। दीपक को पूजा के अंत तक जलते रहने दें।
- आरती और प्रार्थना: भगवान कल्कि की स्तुति करते हुए उनकी आरती उतारें। आरती के बाद, भगवान से अपने जीवन में चल रही परेशानियों को खत्म करने और सुख-शांति बनाए रखने की प्रार्थना करें। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- प्रसाद वितरण: भगवान को चढ़ाए गए फल और मिठाई को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों और जरूरतमंदों में वितरित करें।
कल्कि जयंती का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, कलयुग के अंत में भगवान विष्णु कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे। माना जाता है कि उनका जन्म श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होगा, यही कारण है कि हर वर्ष इस तिथि को कल्कि जयंती के रूप में मनाया जाता है।
यह भगवान विष्णु का ऐसा दिव्य रूप है जिसकी आराधना उनके अवतरण से पहले ही की जाती रही है। इस दिन दान-पुण्य के कार्य करना विशेष फलदायी माना गया है।
कल्कि द्वादशी के दिन अपनी क्षमता के मुताबिक गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या अन्य उपयोगी वस्तुएं दान में देनी चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। यह माना जाता है कि दान से न केवल भौतिक लाभ होता है बल्कि आत्मिक शांति भी मिलती है।
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कल्कि अवतार
भगवान कल्कि के अवतरण की चर्चा विभिन्न पुराणों, जैसे कल्कि पुराण में विस्तार से की गई है। इन ग्रंथों में बताया गया है कि जब पृथ्वी पर पाप और अत्याचार बढ़ जाएंगे, धर्म का पतन होगा और लोग नैतिक मूल्यों से भटक जाएंगे, तब भगवान कल्कि का जन्म होगा।
वे दुष्टों का संहार करेंगे और धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे, जिससे एक नए युग, सतयुग की शुरुआत होगी। कल्कि अवतार को न्याय और धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है।
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