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कांवड़ यात्रा, जो मुख्य रूप से सावन महीने में होती है, भारतीय धार्मिक परंपराओं का अहम हिस्सा है। शिव भक्त इस समय अपने विश्वास और श्रद्धा के साथ यात्रा करते हैं। कांवड़ यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस साल ये यात्रा 11 जुलाई 2025 से शुरू हो रही है।
यह यात्रा 9 अगस्त 2025 तक चलेगी। इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु गंगाजल या अन्य पवित्र नदियों का जल कांवड़ में भरकर अपने पास के शिव मंदिरों में भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। विशेष रूप से ये उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर यात्रा पर निकलते हैं।
ऐसा माना जाता है कि, इस यात्रा की शुरुआत भगवान परशुराम ने की थी और तब से यह परंपरा लगातार चलती आ रही है। आइए जानते हैं इस यात्रा से जुड़ी कुछ जरूरी बातें।
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कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड़ यात्रा के समय कुछ जरूरी नियमों का पालन करना जरूरी होता है। इन नियमों का उल्लंघन करने पर यात्रा अधूरी मानी जाती है। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा के कुछ खास नियम:
नशा न करें:
यात्रा के दौरान नशा करना सख्त मना है। शराब, सिगरेट, तंबाकू या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। यह पवित्र यात्रा का हिस्सा है और नशे से बचना जरूरी है।
कांवड़ को जमीन पर न रखें:
एक बार कांवड़ कंधे पर उठाने के बाद, उसे जमीन पर नहीं रखा जा सकता। अगर ऐसा किया तो यात्रा अधूरी मानी जाएगी। अगर यह गलती हो जाए तो फिर से कांवड़ में जल भरकर यात्रा शुरू करनी होती है।
स्नान के बाद कांवड़ को छुएं:
यदि आपको नित्यक्रियाओं के लिए जाना है, तो कांवड़ को किसी ऊंचे स्थान पर रखना चाहिए और स्नान करने के बाद ही उसे छूना चाहिए।
चमड़ा स्पर्श न करें:
यात्रा के दौरान चमड़ा स्पर्श करना मना है। कांवड़ को सिर के ऊपर नहीं रखना चाहिए और न ही इसे किसी चमड़े की वस्तु से छूना चाहिए।
विश्राम के दौरान कांवड़ को किसी और को देना:
यदि आपको विश्राम करना हो तो कांवड़ को किसी अन्य शिव सेवक को देना होता है और इसे जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
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कांवड़ के बारे में 7 दिलचस्प बातें
ये यात्रा न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। आइए जानते हैं कांवड़ से जुड़ी सात जरूरी बातें।
कांवड़ यात्रा की शुरुआत
कांवड़ यात्रा का इतिहास बहुत पुराना है। धार्मिक कथाओं के मुजाबिक, भगवान परशुराम ने पहले महादेव के नियमित पूजन के लिए इस यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने गंगाजल भरकर इसे भगवान शिव के अभिषेक में अर्पित किया।
एक बार जब भगवान शिव ने परशुराम को दर्शन दिए, तो उन्होंने यह कहा कि अगर कोई भक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर मेरे शिवलिंग का पूजन करेगा, तो वह विशेष आशीर्वाद प्राप्त करेगा। इस कथन के बाद परशुराम ने इस यात्रा की परंपरा को शुरू किया, जो अब हर साल लाखों भक्तों द्वारा श्रद्धा से निभाई जाती है।
यात्रा का वैज्ञानिक महत्व
इस यात्रा का वैज्ञानिक महत्व भी है। पैदल यात्रा करने से पर्यावरण का सकारात्मक प्रभाव हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
यात्रा के दौरान ओस की बूंदें और ठंडी हवा मन को शांति और शरीर को ठंडक देती हैं। इसके अलावा, सूर्य की किरणें शरीर को रोगमुक्त बनाती हैं।
कांवड़ यात्रियों के वस्त्र
यात्रा में लोग अक्सर केसरिया रंग के वस्त्र पहनते हैं। केसरिया रंग को धार्मिक दृष्टि से शक्ति, साहस और आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह रंग न केवल व्यक्ति की आस्था को बढ़ाता है, बल्कि शरीर को भी ऊर्जा प्रदान करता है।
कांवड़ यात्रा के प्रकार
इस यात्रा के कई रूप होते हैं, जैसे झूला कांवड़ और खड़ी कांवड़। झूला कांवड़ में गंगाजल से भरे मटके दोनों ओर लटके होते हैं, जिन्हें यात्रा के दौरान टांगा नहीं जाता। वहीं खड़ी कांवड़ को कंधे पर रखा जाता है, और इसे न तो टांगा जा सकता है और न ही रखा जा सकता है।
झांकियों वाली कांवड़
कुछ कांवड़ यात्रियों के पास ट्रक, जीप या अन्य गाड़ियां होती हैं, जिनमें शिव भगवान की बड़ी-बड़ी तस्वीरें और रंगीन लाइट्स होती हैं। ये झांकियां संगीत के साथ चलती हैं और अक्सर लोग इन्हें देखने के लिए इकट्ठा होते हैं।
डाक कांवड़
डाक कांवड़ एक विशेष प्रकार की यात्रा होती है, जिसमें कांवड़िये ट्रकों या जीपों में बैठकर यात्रा करते हैं और फिर 36 घंटे या 24 घंटे के भीतर मंदिर तक पहुंचने के लिए दौड़ते हैं। यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण यात्रा होती है।
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यात्रा में धार्मिक अनुष्ठान
इस यात्रा के दौरान यात्री विशेष रूप से शिव मंदिरों में जल चढ़ाने के लिए जाते हैं। इस यात्रा के दौरान यात्री आस्था और विश्वास से भरे होते हैं और हर कदम पर भगवान शिव का ध्यान करते हैं।
कांवड़ यात्रा न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक और शारीरिक यात्रा भी है। यह भक्तों को भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का मौका देती है।
इस यात्रा में भाग लेने वाले भक्तों को सभी नियमों का पालन करते हुए इस यात्रा का पुण्य प्राप्त करना चाहिए और अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए।
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