/sootr/media/media_files/2025/10/04/karwa-chaut-2025-2025-10-04-10-46-10.jpg)
करवा चौथ 2025:हिन्दू धर्म में, करवा चौथ व्रत को सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक माना जाता है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। वैदिक पंचांग के मुताबिक, वर्ष 2025 में चतुर्थी तिथि की शुरुआत 9 अक्टूबर से हो रही है।
करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय
चतुर्थी तिथि का आरंभ:
- तिथि : 9 अक्टूबर 2025, गुरुवार
- समय : रात 10:54 बजे
चतुर्थी तिथि का समापन:
- तिथि: 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार
- समय: शाम 7:38 बजे
वैदिक पंचांग के मुताबिक, करवा चौथ 2025 का व्रत उदय तिथि में रखा जाता है और चतुर्थी तिथि 10 अक्टूबर को पूरे दिन रहेगी।
ये खबर भी पढ़ें...
शरद पूर्णिमा 2025: पूर्णिमा की वो रात जो देती है स्वास्थ्य, धन और संतान सुख का संपूर्ण वरदान
क्यों किया जाता है ये व्रत
करवा चौथ का पर्व केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते, समर्पण और अटूट प्रेम का प्रतीक है।
पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य
इस व्रत का प्राथमिक उद्देश्य पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करना है। महिलाएं सुबह सूर्योदय से लेकर रात को चंद्रमा दर्शन तक निर्जला व्रत रखती हैं, जो उनकी तपस्या और पति के प्रति गहरे प्रेम को दर्शाता है।
चंद्रमा की पूजा का महत्व
करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा का विशेष विधान है। चंद्रमा को शांति, शीतलता, समृद्धि और मन की स्थिरता का प्रतीक माना जाता है।
ज्योतिषीय कारण: चंद्रमा मन और वैवाहिक जीवन का कारक ग्रह है। चंद्रमा की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द बना रहता है, साथ ही मन शांत और स्थिर होता है।
पारंपरिक मान्यता: चंद्रमा को लंबी आयु का आशीर्वाद देने वाला भी माना जाता है। इसलिए, उन्हें अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।
ये खबर भी पढ़ें...
करवा चौथ की पूजन विधि
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, करवा चौथ व्रत में सबसे कठिन नियम है चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलना। कई बार खराब मौसम, बादल या अत्यधिक धुंध के कारण चंद्रमा नजर नहीं आता, जिससे व्रती महिलाएं परेशान हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में व्रत को खंडित होने से बचाने के लिए धर्मग्रंथों में कुछ उपाय बताए गए हैं:
शिवजी के मस्तक पर विराजित चंद्रमा को अर्घ्य
चंद्रोदय के निर्धारित समय के बाद, अपने पास के किसी शिव मंदिर में जाए। भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा हमेशा विराजमान रहते हैं। शिव जी के मस्तक पर लगे चंद्रमा का दर्शन करें और उन्हें अर्घ्य दें। अपनी मनोकामना मन में दोहराएं। ऐसा करने से व्रत का संपूर्ण पुण्यफल मिलता है और आप पारण कर सकती हैं।
चांदी के सिक्के से चंद्र-प्रतिरूप पूजा
अगर आप मंदिर नहीं जा सकती हैं या शिव मंदिर दूर है। चंद्रोदय के समय के बाद, चांदी का एक सिक्का या गोल टुकड़ा लें। चांदी को चंद्रमा का शुभ धातु मानकर, उसे चंद्रमा का प्रतिरूप समझकर विधिवत पूजा करें और अर्घ्य दें। पूजा के बाद अपनी सास या पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
चावल या आटे से चंद्रमा का निर्माण
यदि आपके पास चांदी का सिक्का उपलब्ध न हो। एक थाली में चावल या आटा लें और उसमें चंद्रमा का गोल आकार बनाएं। इस बने हुए गोल आकार को साक्षात चंद्रमा मानकर पूजा करें और अर्घ्य दें। पूजा के बाद इस चावल या आटे को किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दें या किसी गाय को खिला दें।
चंद्रमा के मंत्रों का जाप
(करवा चौथ की कथा) यदि ऊपर दिए गए कोई भी उपाय संभव न हों तो आप चंद्रोदय के समय के बाद छत पर या किसी खुली जगह पर जाएं। "ॐ सोम सोमाय नमः" या "ॐ चंद्राय नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें। मंत्र जाप से व्रत का संकल्प पूरा होता है और आप अपने पति के दर्शन के बाद व्रत का पारण कर सकती हैं।
ये खबर भी पढ़ें...