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सावन मास में पड़ने वाले प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है जो देवी मंगला गौरी यानी मां पार्वती को समर्पित है। यह व्रत हिंदू धर्म में स्त्रियों के लिए अत्यंत फलदायी और मंगलकारी माना जाता है। विशेष रूप से सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की मंगलकामना हेतु यह व्रत करती हैं।
अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए और संतान की इच्छा रखने वाली महिलाएं संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत रखती हैं। ऐसे में सावन मास का चौथा मंगला गौरी व्रत आज 5 अगस्त को पड़ रहा है।
यह दिन उन सभी महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है जो इस पवित्र व्रत का पालन कर रही हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
मंगला गौरी व्रत की महिमा
मंगला गौरी व्रत का उल्लेख प्राचीन पुराणों में भी मिलता है, जो इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व को दर्शाता है। मान्यता के मुताबिक यह व्रत नवविवाहित स्त्रियां करती है, जिससे उन्हें सुखी दाम्पत्य जीवन का वरदान मिलता है। देवी गौरी को स्त्री सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। इस व्रत से देवी गौरी की असीम कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में आनंद, प्रेम और सुख-शांति बनी रहती है।
यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है। जिस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, उसी प्रकार इस व्रत को करने से स्त्रियों को अपने वैवाहिक जीवन में सुख और स्थायित्व प्राप्त होता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी जीवन में सौभाग्य, सुख और समृद्धि को सुनिश्चित करने का एक माध्यम भी है।
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पूजा सामग्रीमंगला गौरी व्रत की पूजा के लिए कुछ जरूरी सामग्री की पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए:
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मंगला गौरी व्रत पूजा विधि
चौथे मंगला गौरी व्रत के लिए कुछ विशेष नियम और पूजा विधि का पालन करना जरूरी है ताकि व्रत का पूर्ण फल मिल सके।
व्रत के दिन क्या करें:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ कपड़े पहनें। यह शुद्धता और पवित्रता का पहला कदम है।
- पूजा स्थान को साफ करें और एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। लाल रंग शुभता और शक्ति का प्रतीक है।
- माता मंगला गौरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। यदि प्रतिमा न हो तो आप प्रतीकात्मक रूप से चावल से गौरी जी को स्थापित कर सकते हैं।
- व्रत का संकल्प लें। मन में अपनी कामना दोहराते हुए व्रत का दृढ़ संकल्प लें।
- माता गौरी को 16 श्रृंगार की सामग्री (जैसे सिंदूर, बिंदी, चूड़ी, मेहंदी आदि), सूखे मेवे, फल, मिठाई, फूल, कुमकुम, पान, सुपारी, लौंग, इलायची और सोलह दीये अर्पित करें। यह सभी वस्तुएं देवी पार्वती को अत्यंत प्रिय हैं।
- मंगला गौरी व्रत कथा का पाठ करें और "ओम गौरी शंकराय नमः" मंत्र का 108 बार जप करें। मंत्र जप से मन एकाग्र होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- विधि-विधान से माता गौरी की आरती करें। आरती के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है।
- व्रत में फलाहार करें और नमक का सेवन न करें। आप दूध, फल और कुछ विशिष्ट सात्विक चीजें जैसे कुट्टू का आटा, समा के चावल आदि का सेवन कर सकते हैं।
व्रत में क्या न करें
- व्रत में अनाज और दालों का सेवन न करें।
- तला-भुना भोजन न करें।
- नमक का सेवन न करें।
- क्रोध, ईर्ष्या और द्वेष जैसी नकारात्मक भावनाओं से बचें। मन को शांत और शुद्ध रखें।
- काले कपड़े न पहनें। काले रंग को अशुभ माना जाता है।
- तामसिक चीजों का सेवन न करें (जैसे प्याज, लहसुन, मांस, शराब आदि)।
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व्रत के लाभ
मंगला गौरी व्रत के अनेक लाभ हैं, जो इसे स्त्रियों के लिए एक बहुत जरूरी व्रत बनाते हैं:
- विवाहित महिलाओं के लिए:
यह व्रत पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए रखा जाता है। यह वैवाहिक संबंधों में मधुरता और स्थायित्व लाता है। - अविवाहित महिलाओं के लिए:
जो लड़कियां अच्छे वर की कामना करती हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। मान्यता है कि इससे मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। - संतान की कामना करने वाली महिलाओं के लिए:
संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है। माता गौरी संतान प्रदान करने वाली देवी के रूप में भी पूजी जाती हैं।
व्रत की कथा और उद्यापन
इस व्रत की कथा में बताया गया है कि कैसे एक निर्धन ब्राह्मण की बहू ने यह व्रत करके अपने पति को अकाल मृत्यु से बचाया था। यह कथा व्रत के महत्व और माता गौरी की कृपा को दर्शाती है। यह व्रत श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। विशेषकर उत्तर भारत और महाराष्ट्र में इस व्रत का अत्यधिक महत्व है।
पहला व्रत विवाह के बाद के पहले सावन में किया जाता है और उसके बाद लगातार 5 वर्षों तक यह व्रत करने की परंपरा है। पांच वर्षों तक यह व्रत नियमित रूप से करने के बाद उद्यापन किया जाता है, जिसमें सुमंगली स्त्रियों को भोजन करवा कर उन्हें वस्त्र और श्रृंगार सामग्री भेंट की जाती है। यह उद्यापन व्रत की पूर्णता का प्रतीक है और इससे व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।
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