रंगों से नहीं, श्मशान की राख से खेली जाती है मसान होली, जानें इस रहस्यमय त्योहार के बारे में

काशी की मसान होली में रंग नहीं, बल्कि चिता की भस्म उड़ती है, जहां भक्त मृत्यु को भी उत्सव की तरह मनाते हैं। यह अनोखी परंपरा भगवान शिव से जुड़ी है, जो जीवन और मोक्ष का गहरा संदेश देती है।

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Kaushiki
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Masaan Holi: होली भारत में उल्लास, प्रेम और रंगों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस दिन लोग आपसी मतभेद भूलकर एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और खुशी मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, काशी (वाराणसी) में यह त्योहार अपने अनोखे और आध्यात्मिक स्वरूप के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां होली का एक ऐसा अनोखा रूप देखने को मिलता है, जो इसे बाकी जगहों से अलग बनाता है। और वो है- मसान होली...

गुलाल नहीं चिता की राख से खेली जाती है बनारस की मसान होली | varanasi Masan  Holi of Banaras is played with ashes of pyre not gulal - Hindi Nativeplanet

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, यहां रंगभरी एकादशी के अगले दिन, मणिकर्णिका घाट पर चिता की भस्म से होली खेली जाती है, जिसे 'मसान होली' कहा जाता है। ऐसा माना गया है कि, यह परंपरा भगवान शिव और उनके गणों से जुड़ी हुई है और इसका गहरा धार्मिक और पौराणिक महत्व है। माना जाता है कि यह उत्सव जीवन और मृत्यु के चक्र को स्वीकार करने का संदेश देता है। तो चलिए आज हम इस लेख में मसान होली के बारे में, इसकी परंपराओं और इसके आध्यात्मिक संदेश के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे। 

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मसान होली क्या है

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मसान होली वाराणसी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर मनाई जाने वाली अनोखी होली है, जिसमें रंगों की जगह चिता की भस्म (राख) से होली खेली जाती है। यह परंपरा भगवान शिव और उनके गणों से जुड़ी हुई है और मृत्यु तथा मोक्ष का संदेश देती है। ऐसी मान्यता है कि, शिव ने अपने भूत-प्रेत गणों के साथ यहां पहली बार भस्म होली खेली थी, जिससे यह परंपरा शुरू हुई। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, इस दिन भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं, हवन करते हैं और चिता भस्म को एक-दूसरे पर लगाकर "हर-हर महादेव" के जयकारों के बीच शिव तांडव करते हैं। ऐसी मान्यता है कि, इसे खेलने से भय, नकारात्मक ऊर्जा और भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति मिलती है और शिव कृपा प्राप्त होती है।

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काशी में क्यों खेली जाती है चिता की राख से होली

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, काशी (वाराणसी) में मनाई जाने वाली होली को चिता भस्म होली भी कहा जाता है। यह अनोखी होली भगवान शिव को समर्पित है और मृत्यु पर विजय का प्रतीक मानी जाती है। जहां पूरे भारत में होली रंगों से खेली जाती है, वहीं काशी में यह होली मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर चिता की भस्म (राख) से खेली जाती है। इस परंपरा का संबंध भगवान शिव की अद्वितीय भक्ति और मोक्षदायिनी काशी से जुड़ा हुआ है।

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पौराणिक कथा और परंपरा

  • पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब भगवान शिव ने यमराज को पराजित किया, तो उन्होंने चिता की राख को अपने शरीर पर मलकर और अपने गणों के साथ मणिकर्णिका घाट पर भस्म होली खेली थी। यह घटना मृत्यु पर शिव की सर्वोच्चता को दर्शाती है, क्योंकि शिव को संहार और पुनर्जन्म के स्वामी के रूप में जाना जाता है। 
  • इसके अलावा, ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर पहली बार काशी आए, तो उन्होंने रंगभरी एकादशी के दिन गुलाल से होली खेली। लेकिन उनके प्रिय गण – जैसे भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी – इस उत्सव में शामिल नहीं हो पाए। उनकी भक्ति और प्रेम को देखते हुए, शिव ने अगले दिन मणिकर्णिका घाट पर उनके साथ भस्म होली खेली।
  • तब से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल शिव भक्त इसे श्रद्धा के साथ मनाते हैं। शिव के गण, जिन्हें मृत्यु का देवता भी माना जाता है, यहां आकर भगवान शिव के साथ होली खेलते हैं। तभी से यह परंपरा चली आ रही है और आज भी श्रद्धालु इसे पूरी भक्ति और आस्था के साथ निभाते हैं।
  • ये केवल एक अनोखा त्योहार नहीं, बल्कि यह गहरी आध्यात्मिक और दार्शनिक अवधारणा को भी प्रस्तुत करता है।

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ये होली कैसे मनाई जाती है

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, इस होली का आयोजन वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर होता है। इस दिन शिव भक्त, साधु-संत और अघोरी विशेष रूप से एकत्रित होते हैं। आयोजन की प्रक्रिया इस प्रकार होती है:

  • शिव पूजन और हवन – इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और हवन का आयोजन होता है।
  • चिता भस्म से होली – अंतिम संस्कार के बाद बची हुई चिता की राख (भस्म) को श्रद्धालु एक-दूसरे पर लगाते हैं और इसे भगवान शिव की भक्ति का प्रतीक मानते हैं।
  • शिव तांडव और नृत्य – अघोरी और नागा साधु इस दिन विशेष रूप से शिव तांडव नृत्य करते हैं। यह नृत्य शिव की ऊर्जा और उनके रुद्र रूप का प्रतीक होता है।
  • महादेव के जयकारे – पूरे घाट पर 'हर-हर महादेव' के जयकारे गूंजते हैं, जिससे वातावरण पूरी तरह से शिवमय हो जाता है।
  • मुख्य विशेषताएं
  • यह होली सिर्फ वाराणसी में ही देखने को मिलती है।
  • इसमें कोई चमकीले रंग नहीं होते, बल्कि केवल चिता की राख का प्रयोग किया जाता है।

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हर 12 साल में मनाते हैं मसान होली

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मसान होली हर बारह साल में विशेष रूप से इसलिए खेली जाती है क्योंकि यह काशी की धार्मिक परंपराओं और कुंभ के बारह वर्षीय चक्र से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि हर बारह वर्षों में जब कुंभ या महाकुंभ का आयोजन होता है, तब शिवभक्तों और अघोरियों द्वारा मसान होली का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसका संबंध भगवान शिव की तांत्रिक साधना और मृत्यु के रहस्य से भी जोड़ा जाता है।

बारह साल का यह चक्र ज्योतिषीय गणनाओं और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। इसमें माना जाता है कि, इस अवधि के बाद विशेष ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो साधकों को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ाती है। यही कारण है कि सामान्य रूप से मसान होली हर साल खेली जाती है, लेकिन हर बारह वर्षों में इसका आयोजन और भी भव्य और दिव्य रूप में होता है।

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ज्योतिष मान्यताएं

इसके पीछे और भी कई धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। बारह वर्षों का चक्र हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यही अवधि गुरु ग्रह (बृहस्पति) के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की होती है। कुंभ मेले की तरह ही, इस अवधि में काशी की तांत्रिक और शैव परंपराओं में विशेष ऊर्जा का संचार माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयं इस अवधि में अपने गणों के साथ मसान (श्मशान) में होली खेलते हैं, जो जीवन और मृत्यु के रहस्य को उजागर करता है।

इसके अलावा, काशी में अघोरी और तांत्रिक साधकों की एक अलग मान्यता है कि हर बारह वर्षों में आध्यात्मिक साधना का एक नया चरण शुरू होता है, जिसमें मसान होली का विशेष महत्व होता है। इस दौरान कई गुप्त साधनाएं भी संपन्न होती हैं, जो शिव साधना और मोक्ष प्राप्ति से जुड़ी होती हैं। यही कारण है कि बारह वर्षों के अंतराल पर मसान होली का आयोजन विशेष रूप से बड़े स्तर पर किया जाता है।

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आयोजन स्थल और विशेषताएं

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ये होली मुख्य रूप से वाराणसी के मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर मनाई जाती है। ये दोनों घाट हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माने जाते हैं, क्योंकि यहां पर अंतिम संस्कार और मोक्ष प्राप्ति की मान्यता जुड़ी हुई है। इस आयोजन का गहरा आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व है, क्योंकि यह न केवल शिव की भक्ति से जुड़ा हुआ है, बल्कि जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य को भी उजागर करता है।

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मणिकर्णिका घाट: मोक्ष का द्वार

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, मणिकर्णिका घाट वाराणसी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण घाट है। इसे मोक्ष प्रदान करने वाला स्थान माना जाता है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहां अंतिम संस्कार के बाद भस्म में विलीन होता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

मणिकर्णिका घाट की विशेषताएं:

भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी पौराणिक मान्यता: कहा जाता है कि जब माता पार्वती स्नान कर रही थीं, तब उनके कान की मणि (कर्णिका) यहीं गिर गई थी, इसलिए इस घाट को "मणिकर्णिका घाट" कहा जाता है। भगवान शिव ने इस स्थान को मोक्षधाम का रूप दिया।

  • 24x7 जलती हुई चिताएं: मणिकर्णिका घाट पर कभी भी चिताएं बुझती नहीं हैं। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां 24 घंटे शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। यह मानव जीवन की क्षणभंगुरता को दर्शाता है और मृत्यु के सत्य को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है।
  • मसान होली का मुख्य स्थल: यही वह जगह है जहां भगवान शिव ने अपने गणों, भूत-प्रेतों और अघोरियों के साथ चिता भस्म से होली खेली थी। इसलिए हर साल इस घाट पर भक्तगण, साधु-संत और नागा बाबा भस्म होली खेलकर शिव की आराधना करते हैं।
  • महाश्मशान: मणिकर्णिका घाट को हिंदू धर्म में "महाश्मशान" के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान उन साधकों और भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र है, जो मृत्यु के रहस्यों को समझने की साधना में लगे होते हैं।

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हरिश्चंद्र घाट: सत्य और धर्म का प्रतीक

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, हरिश्चंद्र घाट वाराणसी का एक और प्रमुख श्मशान घाट है, जिसका नाम सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम पर रखा गया है। यह घाट भी मसान होली के आयोजन का प्रमुख स्थल है।

हरिश्चंद्र घाट की विशेषताएं:

  • राजा हरिश्चंद्र की कथा: पौराणिक कथा के मुताबिक, राजा हरिश्चंद्र ने सत्य और धर्म की रक्षा के लिए इसी घाट पर अपने जीवन की सबसे कठिन परीक्षा दी थी। उन्होंने इस घाट पर एक दास के रूप में काम किया और अंतिम संस्कार करने वालों से कर वसूला, लेकिन कभी भी सत्य का त्याग नहीं किया।
  • मणिकर्णिका घाट के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण श्मशान: यहां भी 24 घंटे शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है और यह हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है।
  • मसान होली का दूसरा प्रमुख स्थान: मणिकर्णिका घाट की तरह, हरिश्चंद्र घाट पर भी भक्त चिता भस्म से होली खेलते हैं। साधु-संत यहां शिव की स्तुति करते हैं और मृत्यु के रहस्यों को समझने का प्रयास करते हैं।
  • ये होली केवल एक अनोखी होली नहीं, बल्कि यह भगवान शिव की भक्ति, मृत्यु के रहस्य, मोक्ष की कामना और जीवन के अस्थायी स्वरूप को स्वीकार करने का एक माध्यम है। 

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घाटों की विशेष झलक

  • इस दिन पूरे घाट शिवमय हो जाते हैं। हर तरफ ‘हर-हर महादेव’ और ‘जय भोलेनाथ’ के जयकारे गूंजते हैं।
  • अघोरी साधु और नागा बाबा विशेष रूप से इस अनुष्ठान में भाग लेते हैं और शिव की ध्यान साधना में लीन हो जाते हैं।
  • हवन और विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है, जिसमें शिव भक्त अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
  • भक्तगण चिता की भस्म को शरीर पर लगाकर भगवान शिव की भक्ति का अनुभव करते हैं और इस अनोखी परंपरा को निभाते हैं।
  • यह आयोजन श्रद्धालुओं को जीवन, मृत्यु और मोक्ष के गहरे अर्थ को समझने का अवसर प्रदान करता है।

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मृत्यु और मोक्ष का संदेश

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, भस्म होली केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के गूढ़ रहस्यों को समझने का माध्यम भी है। जहां आमतौर पर मृत्यु को दुख और शोक का विषय माना जाता है, वहीं काशी में इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वार समझा जाता है। यह अनोखी होली हमें सिखाती है कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति का मार्ग है।

  • मृत्यु को उत्सव की तरह स्वीकार करने की परंपरा
    हिंदू धर्म में काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है, जहां मृत्यु का स्वागत डर या शोक के बजाय एक आध्यात्मिक यात्रा के पड़ाव के रूप में किया जाता है।
  • मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट पर चिता जलती रहती है और माना जाता है कि यहां अंतिम सांस लेने वाले को मोक्ष प्राप्त होता है।
  • जब शिव भक्त भस्म होली में चिता की राख से होली खेलते हैं, तो वे यह दर्शाते हैं कि मृत्यु का शोक मनाने की बजाय उसे शिव की कृपा और मोक्ष की प्राप्ति का अवसर मानना चाहिए।
  • जीवन और मृत्यु का संतुलन: शिव की दृष्टि में समानता
    भगवान शिव को संहार और पुनर्जन्म का अधिपति माना जाता है। वे मृत्यु के देवता यमराज को भी नियंत्रित करने की शक्ति रखते हैं।
  • शिव की भस्म होली यह दर्शाती है कि मृत्यु और जीवन एक ही चक्र के दो पहलू हैं, और उन्हें समान रूप से स्वीकार करना चाहिए।
  • यही कारण है कि भस्म होली के दौरान, लोग भस्म को अपने माथे पर लगाकर मृत्यु की वास्तविकता को स्वीकार करने और शिव की शरण में जाने का प्रतीक मानते हैं।
  • मृत्यु का भय नहीं, मोक्ष की आशा
  • भस्म होली का एक प्रमुख संदेश यह है कि मृत्यु का भय त्यागकर मोक्ष की ओर बढ़ना चाहिए।
  • काशी में यह मान्यता है कि जो व्यक्ति यहां प्राण त्यागता है, उसे स्वयं भगवान शिव तारक मंत्र देकर मोक्ष प्रदान करते हैं।
  • इस परंपरा के मुताबिक, जब व्यक्ति मृत्यु के भय से मुक्त होकर शिव भक्ति में लीन होता है, तो वह पुनर्जन्म के चक्र से भी मुक्त हो सकता है।

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अघोरी साधना से जुड़ा संदेश

भस्म होली में अघोरी और साधु-संत विशेष रूप से भाग लेते हैं, क्योंकि वे मृत्यु के रहस्य और आत्मा की मुक्ति की साधना करते हैं।
अघोरी साधु चिता की राख को अपने शरीर पर लगाते हैं, जिससे यह संदेश मिलता है कि मृत्यु कोई अपवित्र या डरावनी चीज नहीं, बल्कि आत्मा की परम यात्रा का एक चरण मात्र है।

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मसान होली 2025 की तिथि

मसान होली हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन मनाई जाती है। वर्ष 2025 में भस्म होली 11 मार्च (मंगलवार) को मनाई जाएगी। यह अनोखी होली विशेष रूप से वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है, जहां शिव भक्त भगवान शिव की भक्ति में चिता की भस्म से होली खेलते हैं। इस दिन घाट पर श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और हर-हर महादेव के जयकारों से पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है।

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