भारतीय संस्कृति में मां को केवल जन्मदात्री नहीं बल्कि जीवन निर्माता के रूप में देखा जाता है। वह हमारे जीवन की पहली शिक्षक, मार्गदर्शक और रक्षक होती है।
मां का मातृत्व केवल भावनात्मक संबंध नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो जीवन को दिशा देता है और आत्मबल, संस्कार व नैतिक मूल्यों की नींव रखता है।
11 मई 2025 को मनाया जाने वाला मातृ दिवस इस निःस्वार्थ प्रेम, त्याग और स्नेह के सम्मान का दिन है। आइए जानें पौराणिक कथाओं से लेकर इतिहास तक, भारतीय माताओं ने अपने बच्चों को केवल जन्म नहीं दिया बल्कि उन्हें जीवन के हर मोड़ पर प्रेरणा दी, उनका आदर्श गढ़ा।
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माता पार्वती
माता पार्वती अपने पुत्र गणेश के प्रति प्रेम, शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। उन्होंने अपने शरीर पर चंदन का लेप कर श्री गणेश को उत्पन्न किया।
जब भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया, तो माता पार्वती ने मां के धर्म का पालन करते हुए गणेश के प्राणों की रक्षा के लिए साहसिक कदम उठाया। यही उनकी ममता और दृढ़ता थी, जिसने भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता बनाया।
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माता यशोदा
श्रीकृष्ण की जन्मदात्री भले ही माता देवकी थीं, लेकिन पालन-पोषण का दायित्व माता यशोदा ने निभाया। उन्होंने कृष्ण को प्रेम, अनुशासन और संस्कारों से सींचा।
जब कृष्ण को मथुरा जाना पड़ा, तब यशोदा ने अपने आंसुओं को छुपा लिया और उन्हें विदा किया, यह उनके त्याग और सच्चे मातृत्व की पराकाष्ठा थी। इसलिए आज भी कृष्ण "यशोदानंदन" कहलाते हैं।
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माता देवकी
माता देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया लेकिन उनकी रक्षा के लिए उन्हें यशोदा को सौंपने का कठिन निर्णय लिया। उनके भाई कंस ने उन्हें बंदी बनाकर उनके कई शिशुओं की हत्या कर दी, फिर भी उन्होंने साहस नहीं खोया।
कृष्ण के जीवन को बचाने और दुनिया को धर्म का मार्ग दिखाने के लिए उन्होंने अपने सारे त्याग सहर्ष स्वीकार किए। उनका जीवन मातृत्व के साहस और तपस्या का जीवंत उदाहरण है।
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माता सीता
सीता माता को एकल मातृत्व का सबसे आदर्श उदाहरण माना जाता है। उन्होंने लव और कुश को अकेले पाला, उन्हें धर्म, आत्मसम्मान और साहस का पाठ पढ़ाया।
जीवन की कठिनाइयों में भी उन्होंने अपने कर्तव्यों से पीछे नहीं हटीं। वह हर उस महिला के लिए प्रेरणा हैं, जो अकेले मातृत्व को गरिमा के साथ निभा रही हैं और बच्चों को आत्मनिर्भर बना रही हैं।
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माता कौशल्या
भगवान राम की माता कौशल्या एक आदर्श मां थीं। जब राम को वनवास मिला, तब उन्होंने अपने व्यक्तिगत दुख को संयम से संभाला और उन्हें धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया।
उनका चरित्र हमें सिखाता है कि एक मां का कर्तव्य केवल पालन-पोषण तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह अपने बच्चों को धर्म, नैतिकता और वचन की मर्यादा का भी पाठ पढ़ाती है।
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