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narmada jayanti 2025
नर्मदा नदी भारत की एक प्रमुख और पवित्र नदी मानी जाती है, जिसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वता अत्यधिक है। इसे "मातृ नदी" के रूप में पूजा जाता है। भारत में हर साल नर्मदा जयंती मनाई जाती है। ये दिन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह हमारे पर्यावरण, संस्कृति और आस्थाओं का एक प्रतीक है। यह दिन हमें नर्मदा नदी की महिमा को समझने और उसकी पवित्रता को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
इसका महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह हमारे समाज के लिए एक साथ आने और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने का संदेश भी देता है। यह त्योहार खासकर मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार नर्मदा जयंती 4 फरवरी को मनाई जा रही है। तो ऐसे में आइए, विस्तार से जानते हैं नर्मदा जयंती के इतिहास के बारे में...
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नर्मदा नदी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
नर्मदा नदी को भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान दिया गया है। यह नदी प्राचीन काल से ही भारतीय धर्म और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। नर्मदा नदी को एक पवित्र नदी माना जाता है और इसे ‘शिव की वरदानी’ के रूप में पूजा जाता है।
हिंदू धर्म में इसे एकमात्र ऐसी नदी माना जाता है, जो केवल दक्षिण से उत्तर की दिशा में बहती है। इसके अलावा, नर्मदा नदी का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है, जहां इसे ‘पुण्यभूमि’ के रूप में सम्मानित किया गया है।
ऐतिहासिक महत्व
नर्मदा नदी का इतिहास भी बहुत पुराना है। इसे लेकर कई किवदंतियां और कथाएं भी प्रचलित हैं। एक कथा के मुताबिक, नर्मदा नदी का प्रकट होना शिवजी के आशीर्वाद से हुआ था। यह नदी एक विशेष समय पर भगवान शिव के आशीर्वाद से प्रकट हुई थी।
कहा जाता है कि शिवजी ने नर्मदा नदी को पृथ्वी पर भेजा ताकि वह मानवता को शांति और समृद्धि प्रदान करे। इसे ‘नर्मदा’ नाम भगवान शिव के साथ जुड़ा हुआ है, क्योंकि इसे ‘शिव के आशीर्वाद’ से उत्पन्न माना जाता है।
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पुण्य कमाने का पर्व
ये पर्व नर्मदा नदी के जन्म के दिन मनाया जाता है। भारतीय पंचांग के मुताबिक, यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। विशेष रूप से इस दिन नर्मदा नदी के किनारे स्थित मंदिरों में पूजा-अर्चना और भव्य स्नान की परंपरा है।
इस दिन श्रद्धालु नर्मदा नदी में स्नान करने के लिए जुटते हैं और साथ ही नदी के किनारे स्थित शिव मंदिरों में भगवान शिव की पूजा करते हैं। यह दिन उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है जो अपनी आस्थाओं और विश्वासों के मुताबिक, नर्मदा नदी के तट पर आकर पुण्य कमाने की इच्छा रखते हैं।
धार्मिक अनुष्ठान
इस दिन विशेष रूप से उन स्थानों पर जहां नर्मदा नदी बहती है, भारी संख्या में श्रद्धालु नदी के किनारे पूजा-अर्चना करते हैं। लोग नर्मदा नदी के पवित्र जल में स्नान करते हैं, जिससे उन्हें पापों से मुक्ति और आत्मिक शांति मिलती है। इसके बाद लोग मंदिरों में जाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।
इस दिन को मनाने का एक और विशेष कारण है - "नर्मदा की परिक्रमा"। यह परिक्रमा नर्मदा नदी के आस-पास के क्षेत्रों में की जाती है, जो एक धार्मिक और शारीरिक चुनौती दोनों है। नर्मदा परिक्रमा को करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। कुछ लोग इस दिन विशेष रूप से नर्मदा नदी के किनारे स्थित सिद्ध तीर्थ स्थलों पर जाते हैं और वहां पूजा करते हैं।
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विशेष पूजा विधि
इस दिन विशेष पूजा विधियों का पालन किया जाता है। श्रद्धालु दिनभर उपवासी रहते हैं और रातभर जागरण करते हैं। सुबह के समय नर्मदा नदी में स्नान करने के बाद, लोग नर्मदा और शिवजी की पूजा करते हैं। इस दिन विशेष रूप से नर्मदा व्रत, नर्मदा गंगा व्रत, और शिव पूजा का आयोजन किया जाता है। साथ ही, मंत्रोच्चारण और शंख ध्वनि से वातावरण को शुद्ध किया जाता है।
नर्मदा नदी के प्रमुख तीर्थ स्थल
इस दिन विशेष रूप से इन तीर्थ स्थानों पर श्रद्धालुओं की भीड़ होती हैं:
- महेश्वर: महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे स्थित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो भगवान शिव से जुड़ा हुआ है।
- खंडवा: खंडवा में नर्मदा नदी के किनारे भगवान शिव का मंदिर है।
- ओंकारेश्वर: ओंकारेश्वर नर्मदा के दो प्रमुख घाटों में से एक है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है।
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पर्यावरणीय महत्व
नर्मदा नदी का पर्यावरणीय महत्व भी बहुत अधिक है। यह नदी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है।ऐसा माना जाता है कि, नर्मदा नदी के जल से न केवल कृषि को फायदा मिलता है, बल्कि इसके आस-पास के क्षेत्रों में जलवायु भी संतुलित रहती है। इस दिन लोग नर्मदा नदी को साफ रखने और उसके जल को प्रदूषित न करने की शपथ भी लेते हैं।
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