चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन विशेष रूप से मां स्कंदमाता के लिए समर्पित है। इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा करने से हर प्रकार की परेशानियां दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। मां स्कंदमाता को कार्तिकेय (स्कंद) की माता के रूप में पूजा जाता है।
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मां स्कंदमाता की कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, तारकासुर नामक एक राक्षस ने देवताओं को बहुत ज्यादा परेशान किया। उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) के हाथों ही संभव था। ऐसे में मां पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप धारण किया। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद, कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया और देवताओं को राहत दी। इस प्रकार, मां स्कंदमाता ने अपने पुत्र की सफलता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसे शक्ति प्रदान की।
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मां की पूजा विधि
मां स्कंदमाता की पूजा के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध करें। इसके बाद, लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां स्कंदमाता की मूर्ति या तसवीर स्थापित करें। पीले फूलों से मां का श्रृंगार करें और फल, मिठाई, लौंग, इलाइची, अक्षत, धूप, दीप, और केले का फल अर्पित करें। इसके बाद, कपूर और घी से मां की आरती करें। पूजा के बाद, क्षमा याचना करते हुए दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। मां स्कंदमाता की पूजा में पीले या सुनहरे रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। उनकी पूजा में पीले फूल और पीले फल चढ़ाना शुभ होता है।
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स्कंदमाता का भोग
मां स्कंदमाता को पीले रंग की चीजें प्रिय होती हैं। आप उन्हें केले, बेसन के लड्डू, केसर की खीर या अन्य पीली मिठाइयाँ अर्पित कर सकते हैं। ये चीजें मां को प्रसन्न करती हैं और आपके जीवन में सुख-समृद्धि लाती हैं।
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मां स्कंदमाता मंत्र
"सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥"
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स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता, पांचवा नाम तुम्हारा आता।
सब के मन की जानन हारी, जग जननी सब की महतारी।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं, हरदम तुम्हे ध्याता रहूं मैं।
कई नामो से तुझे पुकारा, मुझे एक है तेरा सहारा।
कहीं पहाड़ों पर है डेरा, कई शहरों में तेरा बसेरा।
हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये, तेरे भगत प्यारे भगति।
अपनी मुझे दिला दो शक्ति, मेरी बिगड़ी बना दो।
इन्दर आदी देवता मिल सारे, करे पुकार तुम्हारे द्वारे।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये, तुम ही खंडा हाथ उठाये।
दासो को सदा बचाने आई, चमन की आस पुराने आई।
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