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भारत में चंद्र ग्रहण: आज 7 सितंबर 2025 को लगने वाले पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान दुनियाभर के खगोलशास्त्री और ज्योतिषियों की नजरें आसमान पर टिकी होंगी। इस खगोलीय घटना को ब्लड मून भी कहा जाता है क्योंकि ग्रहण के दौरान चंद्रमा का रंग लाल हो जाता है।
यह साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण है जो भारत में भी दिखाई देगा। भारतीय ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, ग्रहण का समय एक अशुभ काल माना जाता है जिसे सूतक काल कहते हैं। इस दौरान सभी तरह के धार्मिक और मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं और मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं।
हालांकि भारत में कुछ ऐसे अद्भुत मंदिर हैं जहां ये नियम लागू नहीं होते। इन मंदिरों में ग्रहण के दौरान भी पूजा-पाठ और आरती का सिलसिला जारी रहता है। आइए, इन 5 मंदिरों के बारे में विस्तार से जानते हैं जो अपनी अनूठी परंपराओं के लिए जाने जाते हैं।
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सूतक काल क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, सूतक काल ग्रहण से पहले की एक अशुभ अवधि है। सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) के सूतक काल की अवधि 12 घंटे होती है, जबकि चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) के लिए यह 9 घंटे होती है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस अवधि में वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ जाता है जिससे पूजा-पाठ, खाना बनाना और अन्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
गर्भवती महिलाओं और बच्चों को विशेष रूप से सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ग्रहण की समाप्ति के बाद, मंदिरों और घरों को शुद्ध किया जाता है, ताकि नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव खत्म हो सके।
सूतक काल में भी खुले रहते हैं ये मंदिर
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
वाराणसी में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है जिसके मुताबिक यहां ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होता।
मंदिर की परंपरा के मुताबिक, ग्रहण के स्पर्श से लगभग ढाई घंटे पहले कपाट बंद किए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भगवान विश्वनाथ तीनों लोकों, देवी-देवताओं, यक्ष, गंधर्व और असुरों के स्वामी हैं इसलिए उन पर सूतक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
ग्रहण वाले दिन, बाबा विश्वनाथ की आरती समय से पहले संपन्न कराई जाती है। संध्या आरती शाम 4:00 से 5:00 बजे तक होती है, शृंगार भोग आरती शाम 5:30 से 6:30 बजे और शयन आरती शाम 7:00 से 7:30 बजे तक होती है। शयन आरती के बाद ही मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं।
विष्णुपद मंदिर, गया
बिहार के गया में स्थित विष्णुपद मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल और पिंडदान स्थल है। इस मंदिर की एक खास बात यह है कि यहां सूतक काल में भी मंदिर के कपाट बंद नहीं किए जाते। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, ग्रहण के समय इस मंदिर में पिंडदान करना बहुत शुभ माना जाता है।
इसलिए ग्रहण के दौरान भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने पितरों का पिंडदान करने और भगवान विष्णु के चरणों में अर्पित करने के लिए यहां आते हैं। इस अवधि में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे मंदिर की मान्यता और भी बढ़ जाती है।
महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Temple) भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर भी ग्रहण के समय खुला रहता है।
माना जाता है कि यहां स्वयं महाकाल विराजमान हैं। इस मंदिर में ग्रहण काल के दौरान पूजा-पाठ और आरती के समय में बदलाव होता है लेकिन भक्तों के दर्शन पर कोई रोक नहीं लगाई जाती है और न ही मंदिर के कपाट बंद होते हैं। महाकाल को काल का भी स्वामी माना जाता है इसलिए उन पर सूतक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
लक्ष्मीनाथ मंदिर, बीकानेर
राजस्थान के बीकानेर में स्थित लक्ष्मीनाथ मंदिर सूतक काल में भी खुला रहता है। इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा बहुत लोकप्रिय है। एक बार ग्रहण का सूतक लगने पर पुजारी ने मंदिर के कपाट बंद कर दिए थे और संयोग से उस दिन भगवान को न भोग लगा था और न कोई पूजा हुई थी।
माना जाता है कि भगवान लक्ष्मीनाथ एक बालक का रूप धरकर एक हलवाई की दुकान पर गए और उसे एक पाजेब देकर खाने को कहा।
अगले दिन मंदिर से भगवान के पदचिह्न गायब थे। तब से, यह परंपरा बन गई कि किसी भी ग्रहण पर यहां न पूजा-पाठ बंद होता है और न ही कपाट बंद होते हैं।
तिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर, कोट्टायम
केरल के कोट्टायम जिले में स्थित तिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर भी ग्रहण के समय खुला रहता है। यहां की मान्यता है कि ग्रहण के समय मंदिर बंद करने पर भगवान कृष्ण की मूर्ति पतली हो जाती है।
एक बार जब ग्रहण के समय मंदिर बंद कर दिया गया था, तो भगवान की मूर्ति पतली हो गई थी और उनकी कमर-पट्टी नीचे खिसक गई थी।
लोगों का मानना है कि भगवान भूख की वजह से पतले हो जाते हैं इसलिए यहां ग्रहण के समय भी नियम से पूजा-पाठ जारी रहता है ताकि भगवान भूखे न रहें।
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इन नियमों का करें पालन
इस दौरान कोई भी शुभ कार्य न करें।
खाना पकाने और खाने से बचें लेकिन बुजुर्गों, बच्चों और बीमार लोगों पर यह नियम लागू नहीं होता।
भगवान की मूर्तियों और तुलसी के पौधे को न छुएं।
ग्रहण शुरू होने से पहले ही भोजन में तुलसी के पत्ते या कुश डाल दें।
ग्रहण के समय मंत्रों का जाप करें।
सूतक काल (चंद्र ग्रहण सूतक काल) खत्म होने के बाद स्नान करें और घर की साफ-सफाई करें।
ग्रहण के बाद दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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