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गणेश चतुर्थी का पर्व भारत में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र में तो इसकी धूम कुछ अलग ही होती है, जहां गली-गली और घर-घर में गणपति बप्पा विराजते हैं। लेकिन महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक ऐसा गांव है, जहां गणेश उत्सव सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि सामाजिक सौहार्द की एक अनूठी मिसाल है।
यह गांव है गोटखिंडी, जहां पिछले 40 साल से एक मस्जिद के भीतर गणपति बप्पा की स्थापना की जाती है। यह एक ऐसी परंपरा है जिसने धार्मिक और सामुदायिक सद्भाव की मजबूत नींव रखी है। यह कहानी सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान की नहीं, बल्कि मानवता और आपसी भाईचारे की है जो आज के समय में हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
जहां देश के कई हिस्सों में धार्मिक तनाव की खबरें आती हैं, वहीं गोटखिंडी गांव के लोग यह दिखाते हैं कि आस्था किसी सीमा की मोहताज नहीं होती और मिलकर मनाए गए त्योहारों का आनंद ही कुछ और होता है।
आइए, इस अनूठी परंपरा के बारे में विस्तार से जानते हैं, जिसकी शुरुआत एक अप्रत्याशित घटना से हुई थी और जो आज पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है।
कैसे हुई इस अनूठी परंपरा की शुरुआत
गोटखिंडी गांव में मस्जिद में गणपति की स्थापना की यह परंपरा 1980 में शुरू हुई थी। गांव के स्थानीय गणेश मंडल 'न्यू गणेश तरुण मंडल' के संस्थापक अशोक पाटिल बताते हैं कि इस साल मूसलाधार बारिश हो रही थी।
मंडल के सदस्यों ने गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करने के लिए एक सुरक्षित जगह की तलाश शुरू की। गांव के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने मिलकर फैसला किया कि मूर्ति को पास की एक मस्जिद में रखा जाए, जो उस समय निर्माणाधीन थी। यह निर्णय दोनों समुदायों के बीच आपसी विश्वास और सम्मान को दर्शाता है।
उस साल मूर्ति को 10 दिन के लिए मस्जिद में रखा गया और तब से यह परंपरा हर साल उसी तरह निभाई जा रही है। अशोक पाटिल कहते हैं, "तब से यह परंपरा शांतिपूर्वक जारी है और इसमें मुस्लिम समुदाय की सक्रिय भागीदारी है।" इस मंडल के सदस्य केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि गांव के मुस्लिम भाई भी हैं, जो हर साल इस उत्सव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
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सामाजिक सौहार्द का जीवंत उदाहरण
गोटखिंडी गांव में गणेश उत्सव (Ganesh Chaturthi festival) सिर्फ हिंदुओं का त्योहार नहीं है बल्कि यह गांव का एक साझा उत्सव बन गया है। यहां के मुस्लिम समुदाय के लोग न केवल गणेश मंडल के सदस्य हैं, बल्कि वे त्योहार की तैयारियों में भी पूरी तरह से शामिल होते हैं।
प्रसाद बनाने में मदद: मुस्लिम भाई प्रसाद बनाने और बांटने में मदद करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सभी के प्रयासों से त्योहार मनाया जाए।
पूजा-अर्चना में सहयोग: वे पूजा की व्यवस्था करते हैं और अन्य आवश्यक कार्यों में भी मदद करते हैं।
त्योहारों में समन्वय: एक बार जब बकरीद और गणेश चतुर्थी एक साथ पड़े, तो गांव के मुसलमानों ने आपसी सद्भाव बनाए रखने के लिए कुर्बानी न देने का फैसला किया। उन्होंने सिर्फ नमाज अदा कर अपना त्योहार मनाया। यह बताता है कि वे अपने हिंदू भाइयों की भावनाओं का कितना सम्मान करते हैं।
खान-पान में परहेज: अशोक पाटिल ने बताया कि मुस्लिम लोग हिंदू त्योहारों के दौरान मांस खाने से भी परहेज करते हैं, जो उनके आपसी सम्मान और सद्भाव को और मजबूत करता है।
यह दिखाता है कि गोटखिंडी गांव में धर्म कोई दीवार नहीं है बल्कि एक ऐसा पुल है जो लोगों को एक-दूसरे के करीब लाता है। यह गांव सचमुच पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है कि किस तरह आपसी समझ और सम्मान से हम एक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति और सम्मान
इस अनूठी परंपरा (गणपति बप्पा सेलिब्रेशन) के महत्व को समझते हुए स्थानीय प्रशासन भी हर साल इस उत्सव में भाग लेता है। हर साल गणेश मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए स्थानीय पुलिस और तहसीलदार को आमंत्रित किया जाता है।
उनकी उपस्थिति इस बात को और पुख्ता करती है कि यह परंपरा सिर्फ एक गांव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे समाज और प्रशासन दोनों का सम्मान और समर्थन प्राप्त है।
गणेशोत्सव के 10 दिन पूरे होने के बाद, अनंत चतुर्दशी के दिन मूर्ति का विसर्जन गांव के पास के जलाशय में किया जाता है। इस पूरे आयोजन में हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदाय के लोग मिलकर भाग लेते हैं जिससे यह उत्सव और भी खास हो जाता है।
एक गांव, एक परिवार
तो गोटखिंडी गांव की कहानी यह सिखाती है कि धर्म और आस्था लोगों को बांटने के लिए नहीं होते बल्कि जोड़ने के लिए होते हैं। इस गांव के लोग यह साबित करते हैं कि अगर हम एक-दूसरे की मान्यताओं का सम्मान करें तो किसी भी प्रकार का धार्मिक तनाव हमें प्रभावित नहीं कर सकता।
15 हजार की आबादी वाले इस गांव में जहां 100 मुस्लिम परिवार हैं उन्होंने मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाया है जहां हर कोई अपनेपन और सुरक्षा की भावना महसूस करता है।
अशोक पाटिल ने सही कहा है, "पूरे देश को यहां के सामाजिक और धार्मिक सद्भाव के वातावरण से प्रेरणा लेनी चाहिए।" यह गांव न केवल एक धार्मिक स्थल पर गणेश जी की स्थापना की मिसाल है बल्कि यह आपसी प्रेम, भाईचारे और सहिष्णुता का एक जीवंत प्रतीक भी है।
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