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रंगपंचमी 2025: हिंदू धर्म में रंगपंचमी का त्योहार होली के पांच दिन बाद मनाया जाता है। यह विशेष रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान और मथुरा-वृंदावन जैसे स्थानों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन देवी-देवताओं के पृथ्वीलोक पर आने की मान्यता है, जो रंग खेलते हैं। इसे देव पंचमी और श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
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रंगपंचमी 2025
हिंदू पंचांग के मुताबिक, रंगपंचमी 2025 में 19 मार्च को मनाई जाएगी। यह तिथि 18 मार्च की रात 10:09 बजे से शुरू होकर 20 मार्च की रात 12:37 बजे तक होगी। इस दिन विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त, विजय मुहूर्त और गोधूलि काल में रंग खेला जाता है।
शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के मुताबिक, रंगपंचमी 2025 के शुभ मुहूर्त हैं
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:51 से 5:38 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:30 से 3:54 बजे तक
गोधूलि काल: शाम 6:29 से 6:54 बजे तक
निशिता काल: रात 12:05 से 12:52 बजे तक
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देशभर में कैसे मनाई जाती है रंगपंचमी
- मध्य प्रदेश मध्य प्रदेश में इसकी धूम अलग ही होती है। यहां पर खासतौर पर इंदौर में गेर उत्सव (Fag Yatra) आयोजित किया जाता है। इसमें लोग सड़क पर उतर कर रंगों की बौछार करते हैं और ढोल, नगाड़े और बैंड-बाजों की धुन पर नाचते हैं। इसके अलावा, उज्जैन, महेश्वर और मालवा क्षेत्र के अन्य शहरों में भी रंगपंचमी मनाई जाती है।
- महाराष्ट्र
यहां पर होली के बाद गुलाल और अबीर उड़ाए जाते हैं और श्री कृष्ण और राधा की झांकियां सजाई जाती हैं। - राजस्थान
गुलाल और फूलों से होली खेली जाती है, खासकर मेवाड़ और मारवाड़ में शाही परिवार के साथ। - उत्तर प्रदेश
मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव में विशेष रूप से रंगपंचमी का आयोजन होता है, जहां भगवान श्री कृष्ण को गुलाल और अबीर चढ़ाए जाते हैं।
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रंगपंचमी का महत्व
होली की तरह, रंगपंचमी भी रंगों के खेल का त्योहार होता है। इस दिन अबीर और गुलाल उड़ा कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, इस दिन भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी ने होली खेली थी और देवी-देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की थी। ऐसा माना जाता है कि, इस दिन रंगों की खुशबू से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता का माहौल बनता है।
भगवान कृष्ण ने की थी इसकी शुरुआत
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, रंग पंचमी की परंपरा द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने शुरू की थी। इस दिन, श्रीकृष्ण ने राधा के साथ होली खेली, जिसे देखकर गोपियां भी उनके साथ रंगों के इस उल्लास में शामिल हो गईं। जब देवी-देवताओं ने यह दृश्य देखा, तो वे भी इस आनंद में शामिल होने के लिए गोप-गोपियों का रूप धारण कर ब्रज पहुंचे और राधा-कृष्ण के साथ होली खेली। तभी से रंग पंचमी को देवताओं की होली के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक कथाएं
रासलीला और रंग उत्सव: एक मान्यता यह भी है कि कृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई, और अगले दिन रंगों के साथ उत्सव मनाया गया।
पूतना वध की खुशी: कुछ कथाओं के मुताबिक, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन पूतना का वध हुआ था। इस खुशी में नंदगांववासियों ने पांच दिन तक रंगोत्सव मनाया, जिसमें रंग पंचमी भी शामिल थी।
होलिका दहन के बाद उत्सव: एक अन्य मान्यता के मुताबिक, होलिका दहन के बाद प्रह्लाद के सुरक्षित रहने की खुशी में पांच दिनों तक रंग खेला गया और इसी परंपरा से रंग पंचमी का जन्म हुआ
कामदेव के पुनर्जीवन का आशीर्वाद: भगवान शिव ने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन रति को कामदेव के पुनर्जीवन का वचन दिया था। इस खुशी में देवताओं ने रंग पंचमी पर रंगोत्सव मनाया, इसलिए इसे "देव होली" भी कहा जाता है।
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