Holi 2025: रंगों के पर्व में ये जगहें क्यों रहती हैं बेरंग, वजह जानकर चौंक जाएंगे

भारत में जहां होली उमंग और रंगों का त्योहार है। वहीं कुछ जगहें ऐसी भी हैं जहां यह बिल्कुल नहीं मनाई जाती। क्या वजह है कि इन स्थानों पर होली के रंग फीके हैं? जवाब चौंकाने वाला है...

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Kaushiki
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होली, जिसे भारत में रंगों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है, हर साल उमंग और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह एक ऐसा दिन होता है जब लोग गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंगों से सराबोर करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ ऐसे स्थान भी हैं जहां होली नहीं खेली जाती?

इन जगहों पर होली का न मनाया जाना सिर्फ परंपरा या मान्यता से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसके पीछे कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक कारण भी हैं। आइए जानते हैं वे स्थान जहां होली का उत्सव नहीं मनाया जाता और इसके पीछे की वजह क्या है।

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उत्तराखंड के खुरजान और क्विली गांव

बता दें कि, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित खुरजान और क्विली गांव में करीब 150 वर्षों से होली नहीं खेली गई है। यहां के लोगों का मानना है कि उनकी कुल देवी को शोर-शराबा और होली का उल्लास पसंद नहीं। यहां के ग्रामीणों के मुताबिक, अगर होली मनाई जाती है, तो उनकी देवी नाराज हो सकती हैं, जिससे उनके गांव पर कोई विपदा आ सकती है। यही कारण है कि इन गांवों के लोग होली के रंगों से पूरी तरह दूरी बनाए रखते हैं।

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गुजरात के रामसन गांव

वहीं, गुजरात के रामसन गांव में भी 2 सौ वर्षों से होली नहीं मनाई गई। यह स्थान भगवान राम से जुड़ा हुआ माना जाता है, इसलिए इसे रामेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इस गांव में होली न मनाने के दो प्रमुख कारण बताए जाते हैं:
ऐसा कहा जाता है कि, लगभग 2 सौ साल पहले होलिका दहन के दौरान लगी आग ने पूरे गांव को राख में बदल दिया था। तब से इस गांव के लोगों ने होली का त्योहार पूरी तरह से बंद कर दिया।

मान्यता है कि एक बार कुछ साधु-संत गांव वालों से नाराज हो गए थे और उन्होंने श्राप दिया था कि अगर यहां होलिका दहन किया गया, तो पूरा गांव जलकर खाक हो जाएगा। इसी डर से इस गांव के लोग न ही होलिका दहन करते हैं और न ही होली खेलते हैं।

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झारखंड का दुर्गापुर गांव

झारखंड के दुर्गापुर गांव में भी पिछले सौ वर्षों से होली नहीं मनाई जा रही। इसके पीछे एक दर्दनाक घटना जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि गांव के राजा के बेटे की मृत्यु होली के दिन हुई थी, जिससे पूरा गांव शोक में डूब गया था। इसके अगले ही साल राजा की भी होली के दिन मृत्यु हो गई। मरने से पहले राजा ने गांव के लोगों से कहा था कि यह गांव कभी भी होली का त्योहार नहीं मनाएगा। तब से लेकर आज तक यहां के लोग इस दिन को एक सामान्य दिन की तरह ही बिताते हैं और किसी भी तरह का उत्सव नहीं मनाते।

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क्या इन परंपराओं में बदलाव आएगा

समय के साथ कई परंपराएं बदली हैं, लेकिन इन गांवों में आज भी ये मान्यताएं बरकरार हैं। लोगों की आस्था और पुरानी घटनाओं के प्रभाव के कारण यहां होली मनाने की कोई पहल नहीं की गई। हालांकि, देश के बाकी हिस्सों में होली का जश्न उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है।

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