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आज 31 जुलाई को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है। ये सावन मास की शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है। तुलसीदास जी न केवल महान संत और कवि थे, बल्कि उनकी रचनाओं, विशेषकर रामचरितमानस, ने भारतीय समाज में एक गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक छाप छोड़ी है।
आज भी उनकी शिक्षाएं हमारे जीवन में अत्यधिक योग्य हैं, क्योंकि वे हमें जीवन जीने के सरल और प्रभावी तरीके बताते हैं। ऐसे में आज तुलसीदास जयंती पर आइए जानते हैं उनकी तीन शिक्षाओं के बारे में, जो आज भी हमें मार्गदर्शन देती हैं।
तुलसीदास जी की शिक्षाएंतुलसीदास जी की रचनाएं और शिक्षाएं न केवल अपने समय के लिए थीं, बल्कि आज के दौर में भी उनकी योग्यता बरकरार है। उनके संदेशों में जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, भक्ति की शक्ति और कर्म की महत्ता को समझाया गया है। इन शिक्षाओं से हमें न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन में स्थिरता और संतुलन भी आता है। तुलसीदास जी की शिक्षाओं का पालन करने से हम एक अच्छे इंसान बन सकते हैं और जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं। |
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धैर्य और संयम का महत्व
तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथ रामचरितमानस में लिखा है:
"धीरज धरम मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी।"
(अर्थ: धैर्य, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा विपत्ति के समय होती है।)
तुलसीदास जी के मुताबिक, जीवन में कठिन समय आता है, लेकिन यही समय हमारे धैर्य और संयम को परखने का होता है। जब व्यक्ति विपत्ति के समय धैर्य बनाए रखता है, तो वह अपने सत्य को साबित करता है।
वे यह भी कहते हैं कि संकट के समय में न केवल धैर्य बनाए रखना महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारी नैतिकता की भी परीक्षा होती है। यदि हम विपरीत परिस्थितियों में संयम रखते हैं, तो हम जीवन के हर कठिन संघर्ष से पार पा सकते हैं।
आज के समय में यह शिक्षा और भी ज्यादा जरूरी हो गई है, क्योंकि मानसिक तनाव और अनिश्चितता का सामना हम सभी को करना पड़ता है। धैर्य और संयम ही हमें मानसिक शांति और समाधान की ओर मार्गदर्शन करते हैं।
भक्ति में ही है सच्चा समाधान
तुलसीदास जी ने लिखा:
"भव भय भंजन राम नामु सुख दायक नहिं आन।"
(अर्थ: संसार के भय और दुःखों से मुक्ति केवल प्रभु राम के नाम और भक्ति में है।)
तुलसीदास जी के मुताबिक, भक्ति ही संसार के सभी भय और दुःखों का समाधान है। आजकल की दुनिया में मानसिक तनाव और असंतोष बढ़ते जा रहे हैं, लेकिन तुलसीदास जी के मुताबिक, भगवान के नाम में भक्ति और विश्वास से मन की शांति प्राप्त की जा सकती है।
यह भक्ति किसी भी रूप में हो सकती है - ध्यान, पूजा, या राम नाम का जाप। उनकी यह शिक्षा आज के समय में भी बहुत प्रभावी है, क्योंकि जब हम भगवान में विश्वास रखते हैं, तो हमें किसी भी समस्या का हल मिल जाता है और हम मानसिक शांति प्राप्त करते हैं।
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कर्म से करें भाग्य का निर्माण
तुलसीदास जी ने लिखा:
"कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा॥"
(अर्थ: इस संसार की रचना कर्मों के आधार पर हुई है। जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है।)
तुलसीदास जी मानते थे कि हमारे भाग्य का निर्माण हमारे कर्मों द्वारा होता है। वे कहते हैं कि जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। यह सिद्धांत आज के समाज में बहुत ही ज्यादा जरूरी है, क्योंकि हम अक्सर अपनी परिस्थितियों या किस्मत को दोष देते हैं।
लेकिन तुलसीदास जी का कहना है कि हमारे कर्म ही हमारे भविष्य का निर्धारण करते हैं। इसलिए, हमें अपने कर्मों को सही दिशा में रखना चाहिए और सकारात्मक कार्य करने चाहिए।
तो तुलसीदास जी की यह शिक्षा हमें यह सिखाती है कि हम अपनी किस्मत को अपनी मेहनत और कार्यों से आकार दे सकते हैं। हमें अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि हम अपने जीवन में सफलता और संतोष प्राप्त कर सकें।
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धर्म ज्योतिष न्यूज | सावन महीना