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नवरात्रि के पावन पर्व ने देशभर में आस्था और भक्ति का रंग घोल दिया है। हर शहर हर गांव में देवी के जयकारे गूंज रहे हैं और मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। इसी दिव्य वातावरण में मध्यप्रदेश के प्राचीन और धार्मिक शहर उज्जैन में स्थित हरसिद्धि माता मंदिर भी पूरी तरह से भक्तिमय हो चुका है।
यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है बल्कि यह सनातन इतिहास और तांत्रिक परंपराओं का एक अनूठा संगम है। मान्यता है कि इस मंदिर में देवी सती के शरीर का एक अंग गिरा था जिससे यह एक सिद्ध शक्तिपीठ बन गया। लेकिन इस मंदिर की सबसे विशेष पहचान राजा विक्रमादित्य से जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, यह वही पवित्र स्थान है जहां राजा विक्रमादित्य ने मां हरसिद्धि की घोर तपस्या की थी और देवी के आशीर्वाद से उन्हें अद्भुत शक्तियां मिली थीं जिसने उन्हें एक महान और न्यायप्रिय सम्राट बनाया।
आज भी, नवरात्रि के दिनों में यहां की अलौकिक ऊर्जा और तांत्रिक साधनाएं भक्तों को अपनी ओर खींचती हैं जहां आस्था और शक्ति का एक अद्भुत मेल देखने को मिलता है।
हरसिद्धि माता मंदिर की कहानी
हरसिद्धि मंदिर को शास्त्रों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब भगवान शिव अपनी पत्नी देवी सती के जले हुए शरीर को लेकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे तब उनके अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे।
ऐसा माना जाता है कि माता सती की दाहिनी कोहनी उज्जैन की पवित्र शिप्रा नदी के किनारे गिरी थी। तभी भगवान शिव ने इस स्थान पर शक्तिपीठ की स्थापना की, जो बाद में हरसिद्धि माता के नाम से प्रसिद्ध हुई।
इस मंदिर का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यहां तांत्रिक क्रियाओं का विशेष महत्व है। मंदिर के गर्भगृह में माता हरसिद्धि की प्रतिमा के साथ-साथ देवी महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजमान हैं।
यहां एक श्री यंत्र भी प्रतिष्ठित है, जिसके कारण यह स्थान तांत्रिक साधना के लिए एक सिद्धपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस मंदिर की पवित्रता और दिव्यता भक्तों को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।
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राजा विक्रमादित्य और देवी हरसिद्धि का संबंध
हरसिद्धि माता और महान सम्राट राजा विक्रमादित्य का संबंध बहुत गहरा है। स्कंद पुराण में यह उल्लेख है कि देवी ने प्रचंड नामक एक शक्तिशाली राक्षस का वध किया था, तभी से उन्हें हरसिद्धि कहा जाने लगा।
लोक कथाओं और मान्यताओं के मुताबिक, माता हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं। कहते हैं कि विक्रमादित्य ने देवी को प्रसन्न करने के लिए यहां घोर तपस्या की थी।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें श्री यंत्र की सिद्धि प्रदान की। इसी शक्ति और आशीर्वाद के बल पर विक्रमादित्य ने पूरे देश पर शासन किया और एक न्यायप्रिय और महान राजा के रूप में जाने गए।
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मंदिर की अनूठी परंपराएं
हरसिद्धि मंदिर की अपनी कुछ अनूठी परंपराएं और विशेषताएं हैं, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं।
51 फीट ऊंचा दीप स्तंभ:
मंदिर परिसर में 51 फीट ऊंचे दो विशाल दीप स्तंभ स्थापित हैं। ये स्तंभ विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। इनमें एक बार में 1100 दीप प्रज्वलित किए जाते हैं।
इन दीपों को जलाने के लिए लगभग 60 लीटर तेल और 4 किलो रुई की आवश्यकता होती है। भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर या किसी विशेष अवसर पर इन दीपमालाओं को प्रज्वलित कराते हैं। कई बार दीप जलाने के लिए भक्तों को लंबी प्रतीक्षा सूची में भी शामिल होना पड़ता है।
नवरात्रि में नहीं होती शयन आरती
नवरात्रि दुर्गा पूजा के नौ दिनों में हरसिद्धि मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दौरान, माता को अनार के दाने, शहद और अदरक का भोग लगाया जाता है, जिसे बेहद शुभ माना जाता है।
एक विशेष मान्यता के अनुसार, नवरात्रि के इन नौ दिनों में माता शयन नहीं करतीं। इस कारण इस अवधि में मंदिर में शयन आरती नहीं होती, जो कि सामान्य दिनों में होती है। यह परंपरा भक्तों के लिए माता के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है।
उज्जैन का हरसिद्धि माता मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है बल्कि यह एक ऐसा केंद्र है जहां इतिहास, आस्था और तांत्रिक परंपराएं एक साथ मिलती हैं।
नवरात्रि के दौरान यहां का माहौल अद्भुत होता है जब भक्त माता के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि हमें यह भी याद दिलाता है कि सच्ची श्रद्धा और लगन से हम जीवन की हर चुनौती को पार कर सकते हैं।
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