श्रद्धालुओं के लिए खास है अंबा माता मंदिर, 140 किलो सोने से मढ़ा आधा शिखर

अंबाजी मंदिर, जो राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित है, अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्वता के लिए प्रसिद्ध है। यहां की सोने से सजी शिखर और माता के शक्तिपीठ का महत्व विशेष है।

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Nitin Kumar Bhal
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Photograph: (TheSootr)

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भारत में आस्था और भक्ति का अत्यधिक महत्व है, और यह देश विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाले मंदिरों का घर है। इन मंदिरों में से एक प्रमुख और अत्यधिक प्रसिद्ध मंदिर अंबाजी है, जो राजस्थान और गुजरात की सीमा पर स्थित है। इस मंदिर के बारे में भक्तों के बीच असीम श्रद्धा और विश्वास है। अंबाजी मंदिर में भक्तों की आस्था इतनी अथाह है कि इसे भक्तों ने सोने से जड़ दिया। संगमरमर पत्थर से बने 1200 साल से ज्यादा पुराने मंदिर के 103 फीट ऊंचे शिखर के आधे भाग पर 8 साल में 140 किलो सोने की परत चढ़ाई है, जो भक्तों ने मां का भेंट किया है। साथ ही मंदिर पर 358 स्वर्ण कलश स्थापित है।

मंदिर का स्थान और महत्व

अंबाजी मंदिर गुजरात राज्य के बनासकांठा जिले में स्थित है, जो सिरोही से 90 किलोमीटर और आबूरोड से केवल 20 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर विशेष रूप से उन भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो देवी शक्ति की पूजा करते हैं। यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों (Shakti Peethas) में से एक है, जहां माता सती का हृदय गिरा था, जो इसके धार्मिक महत्व को और भी बढ़ाता है।

अंबाजी मंदिर का इतिहास लगभग 1200 साल पुराना है, और यह आज भी श्रद्धालुओं के बीच अत्यधिक पूजनीय है। मंदिर में मौजूद श्री यंत्र की पूजा होती है, और इसकी विशेषता यह है कि यहां माता की कोई मूर्ति नहीं है। इसके बजाय, यहां पूजा जाने वाली श्री यंत्र को नग्न आंखों से देखना मना है, और पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर इसकी पूजा करते हैं। यह एक अत्यधिक अनोखी धार्मिक परंपरा है, जो इस मंदिर को विशिष्ट बनाती है।

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मंदिर का शिखर और सोने की परत

अंबाजी मंदिर की शिखर की ऊंचाई 103 फीट है, जो बहुत ही प्रभावशाली है। मंदिर के शिखर पर भक्तों द्वारा चढ़ाई गई सोने की परत इस मंदिर को और भी आकर्षक बनाती है। इस शिखर पर 140 किलो सोने की परत चढ़ाई गई है, जिसे पूरी तरह से भक्तों ने भेंट किया है। मंदिर प्रशासन ने साल 2013 में शिखर पर सोने की परत चढ़ाने का काम शुरू किया था, और यह कार्य 2021 तक जारी रहा। इस पर 140 किलो सोने की परत चढ़ाने में आठ साल का समय लगा। मंदिर में कुल 358 स्वर्ण कलश स्थापित किए गए हैं, जो मंदिर की भव्यता को और बढ़ाते हैं।

कलक्टर कौशिक मोदी के अनुसार, मंदिर में अब तक 140 किलो सोना लगाया जा चुका है। भक्तों द्वारा लगातार सोने की भेंट चढ़ाई जा रही है, और वर्तमान में मंदिर में 50 से 60 किलो सोना सेफ में सुरक्षित रखा हुआ है। यह सोने की भेंट मंदिर के प्रति भक्तों की श्रद्धा और विश्वास को दर्शाती है।

मंदिर का धार्मिक महत्व

अंबाजी मंदिर का धार्मिक महत्व अत्यधिक है, खासकर भारतीय हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए। यह मंदिर मां के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, यहां माता सती का हृदय गिरा था, जब भगवान शिव माता सती के शव को लेकर भटक रहे थे।

अंबाजी मंदिर में श्री यंत्र की पूजा की जाती है, और इसे बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा जाता है। यहां पर न तो कोई मूर्ति है और न ही कोई प्रतिमा, बल्कि पूजा का माध्यम श्री यंत्र ही है, जिसे नग्न आंखों से देखना मना है। यह अनोखी परंपरा मंदिर को विशिष्ट बनाती है, और इसके प्रति श्रद्धालुओं की श्रद्धा को और गहरा करती है।

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अंबाजी मंदिर क्या है?

  • शक्तिपीठ: अंबाजी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती का हृदय गिरा था।

  • स्थान: यह मंदिर गुजरात के बनासकांठा जिले में, अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है।

  • विशिष्टता: इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। यहां पूजा एक पवित्र 'श्री चक्र' की होती है, जिसे श्रद्धालु आँखों पर पट्टी बांधकर देखते हैं।

  • इतिहास: अंबाजी मंदिर बहुत प्राचीन है और यह श्वेत संगमरमर से बना हुआ है। इसका शिखर 103 फीट ऊंचा है, जो इसकी भव्यता को दर्शाता है।

  • त्योहार: हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के दिन यहां एक विशाल मेला आयोजित होता है, और नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।

  • गब्बर हिलॉक: मंदिर के पास एक गब्बर पहाड़ी है, जिसकी चोटी पर एक पवित्र दीपक जलता है। यहां माँ के पदचिह्न भी बताए जाते हैं, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।

अंबाजी मंदिर की स्थापत्य कला

मंदिर का स्थापत्य कला बहुत ही शानदार और आकर्षक है। यह मंदिर संगमरमर पत्थरों से बना हुआ है, जो अपनी सुंदरता और मजबूती के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का शिखर 103 फीट ऊंचा है, और इसकी डिजाइन एक सुंदर और आकर्षक कला का उदाहरण प्रस्तुत करती है।

मंदिर के भीतर पूजा स्थल भी बहुत सुंदर है, जहां श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ पूजा अर्चना करते हैं। यहां की वास्तुकला, सजावट, और माहौल भक्तों को एक शांति और आस्था का अनुभव कराते हैं।

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अंबाजी मंदिर का इतिहास और प्रतिष्ठा

अंबाजी मंदिर का इतिहास 1200 साल पुराना है, और यह मंदिर समय-समय पर कई बदलावों और सुधारों से गुजर चुका है। यह मंदिर आज भी अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को बनाए हुए है, और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

मंदिर का निर्माण संगमरमर से किया गया था, और यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। अंबाजी मंदिर में पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है, और यहां की पवित्रता से श्रद्धालु अपने जीवन में सकारात्मकता और आस्था की अनुभूति करते हैं।

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FAQ

1. अंबाजी मंदिर कहां स्थित है?
अंबाजी मंदिर गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित है, जो राजस्थान के सिरोही जिले से 90 किलोमीटर और आबूरोड से 20 किलोमीटर दूर है।
2. अंबाजी मंदिर की विशेषता क्या है?
अंबाजी मंदिर की विशेषता यह है कि यहां पर माता की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि श्री यंत्र की पूजा की जाती है, जिसे नंगी आंखों से देखना मना है।
3. अंबाजी मंदिर का शिखर किससे सजा हुआ है?
अंबाजी मंदिर का शिखर 140 किलो सोने से सजा हुआ है, जिसे भक्तों ने भेंट चढ़ाया है।
4. अंबाजी मंदिर का इतिहास कितना पुराना है?
अंबाजी मंदिर का इतिहास 1200 साल से भी अधिक पुराना है, और यह एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है।
5. अंबाजी मंदिर का धार्मिक महत्व क्या है?
अंबाजी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां माता सती का हृदय गिरा था, और यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।

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