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हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी आयु, खुशहाली और वैवाहिक जीवन में स्थिरता के लिए रखा जाता है।
धार्मिक कथा के मुताबिक, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लिए थे, इसलिए इस दिन का धार्मिक महत्व अत्यंत है।
क्या है शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के मुताबिक, 26 मई 2025 को पड़ने वाला वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त है
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अमृत: प्रातः 05:25 से प्रातः 07:08 तक
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शुभ: सुबह 08:52 बजे से सुबह 10:35 बजे तक
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लाभ: दोपहर 03:45 बजे से शाम 05:28 बजे तक
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सोमवती अमावस्या का संयोग
हिंदू पंचांग के मुताबिक, 26 मई 2025 को पड़ने वाला वट सावित्री व्रत इस बार सोमवती अमावस्या के साथ आ रहा है। पंचांग के मुताबिक, सोमवती अमावस्या वह तिथि होती है, जब अमावस्या सोमवार के दिन पड़ती है।
इस दिन स्नान, दान और पूजा का विशेष फल मिलता है। इसे ‘स्नान-दान और श्राद्ध की अमावस्या’ भी कहा जाता है। यह संयोग व्रत की महत्ता को और भी बढ़ा देता है और इसे रखने वाले लोगों के लिए विशेष लाभकारी होता है।
कृत्तिका नक्षत्र का धार्मिक महत्व
ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, वट सावित्री के दिन कृत्तिका नक्षत्र का होना भी शुभ माना जाता है। यह नक्षत्र धार्मिक अनुष्ठानों में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लेकर आता है।
इस नक्षत्र के प्रभाव से व्रत और पूजा के कार्य अधिक फलदायी होते हैं। इसलिए इस बार का वट सावित्री व्रत धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ और फलदायी माना जा रहा है।
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वट वृक्ष की पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में वट (बरगद) वृक्ष को त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। इसके तने को विष्णु, जड़ों को ब्रह्मा और शाखाओं को शिव का स्वरूप कहा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं क्योंकि यह वृक्ष जीवन की लंबी आयु, स्थिरता और अखंड सौभाग्य का प्रतीक है।
व्रत की विधि
- व्रत के दिन सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें।
- बिना भोजन और जल के कठोर व्रत का पालन करें।
- वट वृक्ष के तने के चारों ओर परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत सात बार लपेटें।
- फल, फूल, अक्षत और दीपक अर्पित करें।
- यमराज की पूजा और सावित्री की कथा सुनें।
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व्रत रखने के लाभ
- पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि।
- वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य का वृद्धि।
- वैवाहिक जीवन के संकटों का निवारण।
- पितरों के आशीर्वाद का प्राप्त होना।
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