विक्रम संवत का मध्य प्रदेश से है खास रिश्ता, इस सम्राट ने की थी शुरुआत, जानें इतिहास

विक्रम संवत, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया हिंदू नव वर्ष है। जानें विक्रमादित्य, उनके नवरत्न और सिंहासन बत्तीसी की रोचक कहानियों के बारे में।

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Kaushiki
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विक्रम संवत 2025
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यूं तो पूरी दुनिया में नया साल 1 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन भारतीय संस्कृति के मुताबिक हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से होती है। यह तिथि हर साल बदलती है और इस साल हिंदू नववर्ष 30 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। यह दिन धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की भी शुरुआत होती है।

हिंदू नववर्ष को हिंदू नव संवत्सर या नया संवत के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदू नववर्ष क्यों मनाया जाता है और इसकी शुरुआत कब से हुई? अगर नहीं, तो आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

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विक्रम संवत 2025 | विक्रम संवत 2082 | हिंदू नव वर्ष 2025

विक्रम संवत क्या है

हिंदू नववर्ष विक्रम संवत के आधार पर मनाया जाता है और इसकी शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने की थी। यह संवत अंग्रेजी कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है। इसे गणितीय दृष्टि से सबसे सटीक काल गणना माना जाता है और ज्योतिषी भी इसे ही मानते हैं। इसमें कुल 354 दिन होते हैं और हर तीन साल में एक अतिरिक्त माह (अधिक मास) जोड़ा जाता है, ताकि समय का संतुलन बना रहे। यह संवत भारत के अलग-अलग राज्यों में गुड़ी पाड़वा, उगादि जैसे नामों से जाना जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, इस साल संवत 2082 की शुरुआत इस साल 30 मार्च 2025 को होगी और इस साल इसके राजा और मंत्री दोनों ही सूर्यदेव होंगे।    

Chaitra Navratri 2022 विक्रम संवत क्या है, हिन्दू नववर्ष से जुड़े पौराणिक  तथ्य जानिए | What Is Vikram Samvat Hindu Calendar: Lesser Know Facts Abut  India New Year - Hindi Careerindia

क्यों महत्वपूर्ण है ये दिन

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। यही कारण है कि इस दिन को नवसंवत्सर के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वहीं, राम नवमी भी इसी महीने में आती है, जो भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है।

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Ujjain emperor Vikramaditya started Vikram Samvat, history is 2080 years  old - News18 हिंदी

क्या है इतिहास

विक्रम संवत, जिसे विक्रम कैलेंडर भी कहा जाता है, भारत के मध्यप्रदेश के उज्जैन से शुरू हुआ था। यह हिंदू कैलेंडर का सबसे प्रमुख संवत है, जो हर साल गुड़ी पड़वा के दिन प्रारंभ होता है। मान्यताओं के मुताबिक, राजा विक्रमादित्य ने 2082 साल पहले इस संवत की शुरुआत की थी, जब उन्होंने शकों को हराकर उनके कैलेंडर, शक संवत की जगह विक्रम संवत को लागू किया।

इस दिन को हिंदू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। इसमें हर महीने का नाम और उसकी तारीखें अलग होती हैं, जो हिंदू धार्मिक आयोजन और पर्वों के हिसाब से निर्धारित होती हैं। इस कैलेंडर का पहला महीना चैत्र और आखिरी महीना फाल्गुन होता है। इसका उपयोग भारत में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए किया जाता है, जो विशेष रूप से हिंदू धर्म से जुड़े होते हैं।

Vikram Samvat History: उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य ने की थी विक्रम संवत की  शुरुआत, 2080 साल पुराना है इतिहास । Vikram Samvat History: hidu new year  was started by Ujjain emperor ...

विक्रमादित्य और उनकी महानता

राजा विक्रमादित्य का नाम भारत के सबसे महान सम्राटों में लिया जाता है। उनका साम्राज्य एशिया के विशाल हिस्से में फैला हुआ था, जिसमें आधुनिक चीन, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ हिस्से भी शामिल थे। विक्रमादित्य का साम्राज्य अपने समय का सबसे बड़ा साम्राज्य था और ऐसा माना जाता है कि उनके बाद किसी भी भारतीय शासक के पास इतना बड़ा साम्राज्य नहीं था।

विक्रमादित्य ने अपने साम्राज्य में न्याय, धर्म और समृद्धि को बढ़ावा दिया था।विक्रमादित्य की विशेषता यह थी कि उन्होंने अपनी अदालत में नौ रत्नों का एक समूह रखा था, जो सभी अपने-अपने क्षेत्रों में अति दक्ष थे। इन नवरत्नों के विचारों और कृतित्वों ने विक्रमादित्य को एक महान शासक बनाया और उनकी अदालत को भी लोकप्रियता दिलाई।

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विक्रमादित्य के नवरत्न

विक्रमादित्य के दरबार में नौ रत्नों का समूह था, जिन्हें उनके दरबार में विशेष सम्मान दिया गया था। ये नवरत्न अपने-अपने क्षेत्र के माहिर थे और विक्रमादित्य के शासन को मार्गदर्शन देने का काम करते थे। इन नवरत्नों में शामिल थे:

  • कालिदास – महान कवि, जिनके महाकाव्य भारतीय साहित्य का अभिन्न हिस्सा बन गए।
  • वराह मिहिर – प्रसिद्ध ज्योतिषी, जिनकी ज्योतिष विद्या आज भी प्रासंगिक है।
  • धन्वंतरि – आयुर्वेदाचार्य, जिन्होंने आयुर्वेद के महत्व को बढ़ाया।
  • अमर सिंह – अमरकोश के लेखक, जिनकी शब्दकोश आज भी उपयोगी मानी जाती है।
  • बेताल भट्ट – धार्मिक गुरु, जिन्होंने धर्म के सिद्धांतों को स्थापित किया।
  • शंकु – नीतिज्ञ, जिनकी नीतियां आज भी प्रेरणादायक हैं।
  • घटकर्पर – संस्कृत विशेषज्ञ, जिन्होंने संस्कृत साहित्य को समृद्ध किया।
  • वररुचि – कवि, जिन्होंने शेरो-शायरी और कविता के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया।
  • क्षणपक – जैन संत, जिन्होंने धर्म और नैतिकता पर महत्वपूर्ण विचार दिए।
  • ये नवरत्न न केवल महान थे, बल्कि उन्होंने अपनी विद्या और कला से विक्रमादित्य के साम्राज्य को एक नया दिशा दी।

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सिंहासन बत्तीसी और बेताल पचीसी की कहानी

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, सिंहासन बत्तीसी और बेताल पचीसी राजा विक्रमादित्य से जुड़ी दो प्रमुख कहानियां हैं। सिंहासन बत्तीसी के बारे में किवदंती है कि विक्रमादित्य का सिंहासन 32 मुखों वाला था, जो उन्हें न्याय करने में सहायता करता था। जब विक्रमादित्य ने इस सिंहासन पर बैठकर न्याय किया, तो हर मुख ने उसकी न्यायप्रियता की सराहना की।

इस सिंहासन को बाद में राजा भोज ने खोजा, और यह कहानी न्याय, समृद्धि और विक्रमादित्य के गुणों का प्रतीक बन गई। वहीं, बेताल पचीसी में बेताल विक्रमादित्य को न्याय के सिद्धांतों की परीक्षा लेने के लिए 25 कहानियां सुनाता है। इन कहानियों के दौरान, विक्रमादित्य को अपने न्याय की कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता था और हर बार उसे अपनी सूझबूझ से सही निर्णय लेना होता था। विक्रमादित्य की न्यायप्रियता और उनकी सूझबूझ इस कहानी में उजागर होती है।

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हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र नवरात्र से ही क्यों

हिंदू पंचांग में नया साल चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है, और इसके पीछे एक खास कारण है। फाल्गुन पूर्णिमा के बाद चैत्र माह की शुरुआत होती है, लेकिन उस समय कृष्ण पक्ष होता है। सनातन परंपरा हमेशा अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने में विश्वास रखती है, इसलिए जब चैत्र शुक्ल पक्ष शुरू होता है, तभी से नववर्ष मनाया जाता है। यह समय नई ऊर्जा और आशा का प्रतीक होता है।

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हिंदू नववर्ष से जुड़ी खास बातें

  • चैत्र महीना हिंदू कैलेंडर का पहला महीना होता है और यह होली के बाद शुरू होता है।
  • इस माह की शुक्ल प्रतिपदा से ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। 
  • इसी माह में नवरात्रि शुरू होती है और भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।
  • हिंदू नववर्ष से ही नए संवत्सर की शुरुआत होती है।
  • सभी चारों युगों में सबसे पहले सतयुग की शुरुआत भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही हुई थी।
  • इसे सृष्टि के कालचक्र का पहला दिन माना जाता है।
  • इसी दिन भगवान श्रीराम ने वानरराज बाली का वध किया था और वहां की प्रजा को उसके अत्याचार से मुक्त कराया था। जिसकी खुशी में प्रजा ने अपने-अपने घरों पर ध्वज फहराए थे।
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